ऋतुचर्य प्राचीन आयुर्वेदिक अभ्यास है जो दो शब्दों से मिलकर बना है, पहला है ऋतु जिसका अर्थ है मौसम और चर्या जिसका अर्थ है आहार या अनुशासन। ऋतुचर्य हमें मौसमी परिवर्तनों के कारण होने वाली बीमारियों से लड़ने के लिए अपनी शारीरिक शक्ति और मानसिक क्षमता का निर्माण करने में सक्षम बनाता है। यह बात सैफी अस्पताल के डाइटीशियन प्रियम नाइक ने साझा की है।
आयुर्वेद इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए आवश्यक खाद्य पदार्थों का सेवन करने की सलाह देता है। आज के समय में जब डॉक्टर और पोषण विशेषज्ञ कोरोनोवायरस महामारी से लड़ने के लिए इम्यूनिटी बढ़ानेवाले आहार का सेवन करने और स्वस्थ जीवन शैली जीने की सलाह दे रहे हैं। वहीं ऋतुचर्य जो कि मौसमी आहार के रूप में भी जाना जाता है, स्थानीय और मौसमी खाद्य पदार्थ खाने के लाभों पर जोर देते हैं। हम इस बात से अवगत हैं कि हमारा शरीर बाहरी वातावरण, विशेष रूप से बदलते मौसमों से कैसे प्रभावित होता है और यदि यह किसी मौसम के अनुसार खुद को अनुकूलित करने में असमर्थ है, तो यह शरीर को विभिन्न बीमारियों के लिए अतिसंवेदनशील बनाता है।
खाएं पर मौसम के अुनसार
शरीर को मौसम के अनुकूलन बनाने में मदद करने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि किसी विशेष मौसम के दौरान खाये जाने वाले पदार्थों और आहार की उपेक्षा न करें। यदि हम जो खाते हैं वह प्रकृति के अनुरूप नहीं है, तो इसका परिणाम कमजोर प्रतिरोधक क्षमता, स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक बढ़ता वजन, खराब त्वचा और कमज़ोर बालों के अलावा जीवन शैली से जुड़ी बीमारियों से ग्रस्त होने की संभावना होती है। शोध का दावा है कि ऋतुचर्या आहार ब्लड शुगर, रक्तचाप, बढ़ता वजन, मोटापा, शारीरिक निष्क्रियता, विभिन्न प्रकार के कैंसर इत्यादि जैसे जीवनशैली विकारों का जवाब हो सकता है। आयुर्वेद में माना जाता है कि हम में से प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में वात, पित्त या कफ (या उपरोक्त में से किसी का संयोजन) में से एक का अधिक प्रभाव होता है। वात, वायु और अंतरिक्ष के गुणों से प्रभावित होते हैं। अग्नि और जल से पित्त और जल व पृथ्वी से कफ के प्रकार प्रभावित होते हैं। प्रत्येक मौसम हमारे भीतर इन ऊर्जाओं को शांत या प्रज्वलित करता है, जिसका अर्थ है कि यदि हम अपने शरीर को मौसम के अनुकूल बनाने के लिए उपाय नहीं करते हैं तो हमारा सिस्टम खराब हो सकता है।
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किस मौसम में क्या खाएं?
ऋतुचर्य आहार को ठीक से अपनाने के लिए, आपको इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि पूरे वर्ष प्रत्येक मौसम में किस प्रकार के खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए और कौन से पदार्थों के सेवन से बचना चाहिए।
शुरुआती सर्दी या हेमंत के मौसम में – नवंबर के मध्य से जनवरी के मध्य तक आपको पोषक तत्वों से भरपूर भोजन करना चाहिए। आप अपने आहार में जिन खाद्य पदार्थों को शामिल करते हैं, वे तृप्त करने वाले होने चाहिए, उदाहरण के लिए साबुत अनाज, दूध व डेयरी उत्पाद, दाल, मांस, गन्ना, फर्मेन्टेड उत्पाद, शहद, तिल आदि। इस अवधि के दौरान उपवास से बचें, मसालेदार एवं ठंडे भोजन या पेय और हल्के भोजन का सेवन न करें।
अधिक सर्दी या शिशिर के मौसम में – यह मध्य जनवरी से मध्य मार्च के बीच का समय है – तीखे या कड़वे स्वाद वाले खाद्य पदार्थों से बचना चाहिए। अनाज, दालें, गेहूं का आटा, तिल, मूंगफली, मक्का, गुड़, दूध और अन्य डेयरी उत्पाद, गन्ना और फलों से भरपूर आहार लेने पर ध्यान दें। सोंठ और सूखी लहसुन जैसी जड़ों का भी सेवन करना चाहिए।
वसंत का मौसम – यह मध्य मार्च या मध्य मई के बीच का समय है जिसमें ऐसे खाद्य पदार्थ का सेवन करना चाहिए जो पाचन प्रक्रिया में सहायता कर सकें। जैसे जौ, दाल, चावल, गेहूं, हल्का मांस, शहद आदि। भारी मात्रा में मीठा और खट्टा स्वाद का भोजन न करें।
गर्मी या गृष्म मौसम – यह मध्य मई से मध्य जुलाई के बीच का समय है, जिसमें अपने आहार में आसानी से पचने योग्य खाद्य पदार्थों के साथ-साथ ठंडे, तरल और मीठे पदार्थों को शामिल करने का प्रयास करें। उदाहरण के लिए आम का रस, दाल, चावल, छाछ, फलों का रस, ढेर सारा पानी, दूध, दही आदि। इस मौसम में आपको मक्खनयुक्त, मसालेदार, नमकीन, खट्टे और तेज महक वाले खाद्य पदार्थों के सेवन से बचना चाहिए।
पतझड़ या शरद का मौसम – यह मध्य सितंबर और मध्य नवंबर के बीच का समय है। इस मौसम में आसानी से पचने योग्य खाद्य पदार्थ जिनमें कड़वा, खट्टा या मीठा स्वाद होता है, जैसे कि गेहूं, चावल, गन्ना, आंवला, जौ, शहद, सफेद मीट, हरे चने आदि शामिल करने चाहिए। वसा वाले खाद्य पदार्थों व विभिन्न प्रकार के तेल और सी फूड्स का सेवन न करें।
मानसून या वर्षा का मौसम – मध्य जुलाई से मध्य सितंबर के बीच का समय – जिसमें उन खाद्य पदार्थों से बचने की कोशिश करें जो पाचन तंत्र पर कठोर और भारी हों। ऐसे खाद्य पदार्थ खाएं जो स्वाद में नमकीन, खट्टे और मक्खनयुक्त हों जैसे शहद, गेहूं, चावल, जौ, सूखे और सफेद मांस, सब्जी सूप, ठंडे रस और हर्बल चाय।
याद रहे कि हमेशा की तरह कोई भी नई स्वास्थ्य व्यवस्था शुरू करने से पहले एक योग्य पोषण विशेषज्ञ और अपने निजी चिकित्सक से सलाह लें।
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