श्रावण मास क्यों है भगवान शिव को प्रिय? पौराणिक कथाओं का वर्णन जानिये

श्रावण की महीने में भक्त भगवान शिव की आराधना में विशेष लक्ष्य केंद्रित करते हैं। इस माह में मंदिरों में भीड़ लग जाती है। बारह ज्योतिर्लिंगों के स्थान पर तो लाखो की संख्या में शिवभक्त दर्शन पूजन करते हैं।

763
शिव

हिंदू कालगणना के अनुसार सावन वर्ष का पांचवा माह है, जो ईस्वी कैलेंडर के अनुसार जुलाई या अगस्त के मध्य आता है। श्रावण को सावन या पावस ऋतु भी कहते हैं। श्रावन माह में कई त्यौहार आते हैं, जिसमें ‘हरियाली तीज’, ‘रक्षाबन्धन’, ‘नागपंचमी’ आदि प्रमुख हैं।

शिव की आराधना का माह
श्रावण माह में पड़नेवाले त्यौहारों को अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग रूप में मनाया जाता है, जैसे ‘श्रावण पूर्णिमा’ को दक्षिण भारत में ‘नारियली पूर्णिमा’ व ‘अवनी अवित्तम’, मध्य भारत में ‘कजरी पूनम’, उत्तर भारत में ‘रक्षाबंधन’ और गुजरात में ‘पवित्रोपना’ के रूप में मनाया जाता है। भारत में मनाए जाने वाले त्यौहारों की विविधता ही विशिष्टता और पहचान है। श्रावण मास में भगवान शिव की अराधना का विशेष महत्त्व है। इस माह में पड़ने वाले सोमवार को श्रावणी सोमवार के रूप में जाना जाता है, इस दिन हिंदू जनमानस व्रत, शिव पूजन करते हैं। व्रतियों में स्त्रियाँ तथा विशेषतौर पर कुंवारी युवतियों की संख्या अधिक रहती है।

शिव को प्रिय है सावन
श्रावण मास के विषय में कहा जाता है कि, यह मास भगवान शिव या भगवान शंकर को अधिक प्रिय है। इसके विषय में पौराणिक कथा है, जो इस प्रकार है।

“जब सनत कुमारों ने भगवान शिव से उन्हें सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा तो भगवान शंकर ने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने युवावस्था में सावन महीने में निराहार रहकर कठोर व्रत किया और शिव को प्रसन्न कर उनसे विवाह किया, जिसके बाद ही महादेव के लिए यह विशेष हो गया।

श्रावण मास को लेकर अन्य कथा भी है, ‘मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकण्डेय ने लंबी आयु के लिए सावन माह में ही घोर तप करके भगवान शिव की कृपा प्राप्त की, भगवान शिव से प्राप्त मंत्र शक्तियों के समक्ष मृत्यु के देवता यमराज भी नतमस्तक हो गए।’

धरती पर अवतरित होते हैं शिव
भगवान शिव को सावन का महीना प्रिय होने का अन्य कारण यह भी है कि, भगवान शिव सावन के महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे। वहां उनका स्वागत अर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं। पृथ्वी लोक के वासियों के लिए भगवान शंकर की कृपा पाने का यह उत्तम समय होता है।

श्रावण से जुड़े नीलकंठेश्वर
पौराणिक कथाओं में वर्णन आता है कि इसी सावन मास में समुद्र मंथन किया गया था। समुद्र मथने के बाद जो हलाहल विष निकला, उसे भगवान शंकर ने कंठ में समाहित कर सृष्टि की रक्षा की। परंतु, विषपान से महादेव का कंठ नीलवर्ण हो गया। इसी से उनका नाम ‘नीलकंठ महादेव’ पड़ा। विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया। इसलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने का ख़ास महत्व है। यही वजह है कि श्रावण मास में भोले को जल चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। ‘शिवपुराण’ में उल्लेख है कि भगवान शिव स्वयं ही जल हैं। इसलिए जल से उनकी अभिषेक के रूप में अराधना का उत्तमोत्तम फल है, जिसमें कोई संशय नहीं है।

ये भी पढ़ें –

चौमास के प्रधान देवता हैं शिव
शास्त्रों में वर्णित है कि सावन महीने में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं। इसलिए ये समय भक्तों, साधु-संतों सभी के लिए अमूल्य होता है। यह चार महीनों में होने वाला एक वैदिक यज्ञ है, जो एक प्रकार का पौराणिक व्रत है, जिसे ‘चौमासा’ भी कहा जाता है; तत्पश्चात सृष्टि के संचालन का उत्तरदायित्व भगवान शिव ग्रहण करते हैं। इसलिए सावन के प्रधान देवता भगवान शिव बन जाते हैं।

Join Our WhatsApp Community
Get The Latest News!
Don’t miss our top stories and need-to-know news everyday in your inbox.