चातुर्मास पर विशेष : 10 जुलाई से चार माह भगवान शिव के हाथ में सत्ता

चातुर्मास का सम्बंध देवशयन से है। इसलिए वर्षाकाल के चार महीने का उपवास ही चातुर्मास व्रत है। कुछ श्रद्धालु इस व्रत को आषाढ़ शुक्ल एकादशी से शुरू करते हैं, जबकि कुछ द्वादसी या पूर्णिमा से अथवा उस दिन से प्रारम्भ करते हैं जब सूर्य कर्क राशि में प्रविष्ट होता है।

147

हिन्दी कैलेंडर के चार माह-सावन, भादों, अश्विन (क्वार) और कार्तिक बड़े ही महत्वपूर्ण हैं। यह परिवर्तन का कालखण्ड है। इस अवधि में न केवल प्रकृति में परिवर्तन होता है बल्कि सूर्य-चन्द्रमा के तेज में भी बदलाव नजर आता है। सर्वाधिक ध्यान योग्य यह है कि इस कालावधि में सत्ता का भी हस्तान्तरण हो जाता है। भगवान श्री हरि विष्णु इन चार महीनों के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं और त्रैलोक का पूरा प्रभार भगवान शिव के पास आ जाता है। वह ही पालनकर्ता भगवान विष्णु का भी काम देखते हैं। यही कारण है सावन में भगवान शिव की विशेष पूजा होती है। चार माह का यह कालखण्ड ‘चातुर्मास’ कहलाता है।

चातुर्मास प्रतिवर्ष आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष की एकादशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी के बीच पड़ता है। इस वर्ष यह 10 जुलाई से चार नवंबर तक है। आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता है। कहीं-कहीं इस तिथि को ‘पद्मनाभा’ भी कहते हैं। सूर्य के कर्क राशि में आने पर यह एकादशी आती है। इसी दिन से चातुर्मास का आरंभ माना जाता है।

आचार्य डा. ओमप्रकाशचार्य ने बताया कि पुराणों में वर्णित है कि देवशयनी एकादशी के दिन से भगवान श्री हरि विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं और फिर लगभग चार माह बाद तुला राशि में सूर्य के जाने पर वह उठते हैं। उस दिन को देवोत्थानी एकादशी कहा जाता है। बीच का अंतराल ही चातुर्मास है। इस काल में यज्ञोपवीत संस्कार, विवाह, दीक्षाग्रहण, यज्ञ, गृहप्रवेश, गोदान, प्राण प्रतिष्ठा जैसे शुभ कार्य नहीं सम्पन्न किये जाते हैं। भविष्य पुराण, पद्म पुराण तथा श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार हरिशयन को योगनिद्रा कहा गया है।

चार्तुमास के दौरान बादल और वर्षा के कारण सूर्य-चन्द्रमा का तेज क्षीण हो जाता है। यह भगवान विष्णु के शयन का ही द्योतक है। इस समयावधि में पित्त स्वरूप अग्नि की गति शांत हो जाने के कारण शरीरगत शक्ति क्षीण या सो जाती है। आधुनिक युग में वैज्ञानिकों ने भी खोजा है कि चातुर्मास में विविध प्रकार के कीटाणु अर्थात सूक्ष्म रोग जंतु उत्पन्न हो जाते हैं, जल की बहुलता और सूर्य-तेज का भूमि पर अति अल्प प्राप्त होना ही इनका कारण है। चूंकि इस कालावधि में त्रैलोक की सत्ता भगवान शंकर के हाथों रहती है, इसलिए इन चार महीनों में शिव के गणों (विशेषकर बिच्छू, गोजर, सांप आदि जन्तुओं) की सक्रियता बढ़ जाती है।

डा. ओमप्रकाशचार्य के अनुसार पुराणों में बताया गया है कि राजा बलि ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया। घबराए इंद्र ने जब भगवान विष्णु से सहायता मांगी तो विष्णु ने वामन अवतार लिया और राजा बलि से दान मांगने पहुंच गए। वामन भगवान ने दान में तीन पग भूमि मांगी। भगवान ने पहले पग में संपूर्ण पृथ्वी, आकाश और सभी दिशाओं को ढक लिया। दूसरे पग में सम्पूर्ण स्वर्ग लोक ले लिया। तीसरे पग में बलि ने अपने आप को समर्पित करते हुए सिर पर पग रखने को कहा। बलि के दान से भगवान ने प्रसन्न होकर उसे पाताल लोक का अधिपति बना दिया और वर मांगने को कहा। बलि ने वर मांगते हुए कहा कि भगवान आप मेरे महल में नित्य रहें। बलि के बंधन में बंधा देख भगवान विष्णु की भार्या लक्ष्मी ने बलि को भाई बना लिया और भगवान को मुक्त करने का अनुरोध किया। भगवान अपने भक्त को निराश नहीं करना चाहते थे इसलिए बलि को वचन दिया कि वह हर साल आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक पाताल लोक में निवास करेंगे। इसीलिए इन चार महीनों में भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं और वामन रूप में उनका अंश पाताल लोक में होता है।

एक अन्य कथा के अनुसार शंखचूर नाम के असुर से भगवान विष्णु का लंबा युद्ध चला और अंत में असुर मारा गया। युद्ध करते हुए भगवान विष्णु बहुत थक गए तो भगवान शिव को त्रिलोक का काम सौंपकर वह योगनिद्रा में चले गए। इसीलिए इन चार महीनों में भगवान शिव ही पालनकर्ता भगवान विष्णु के काम भी देखते हैं। यही कारण है कि सावन में भगवान शिव की विशेष पूजा होती है।

यह भी पढ़ें-मुंबईः इस भाजपा विधायक के घर के पास मिला सोने-चांदी से भरा बैग, पुलिस को है इस बात का शक

चार्तुमास का प्रारम्भ
दरअसल चातुर्मास का सम्बंध देवशयन से है। इसलिए वर्षाकाल के चार महीने का उपवास ही चातुर्मास व्रत है। कुछ श्रद्धालु इस व्रत को आषाढ़ शुक्ल एकादशी से शुरू करते हैं, जबकि कुछ द्वादसी या पूर्णिमा से अथवा उस दिन से प्रारम्भ करते हैं जब सूर्य कर्क राशि में प्रविष्ट होता है। यह चाहे जब प्रारम्भ हो लेकिन इसका समापन कार्तिक शुक्ल एकादशी को ही होता है। संन्यासी लोग सामान्यतः गुरू पूर्णिमा से चातुर्मास का आरम्भ मानते हैं।

Join Our WhatsApp Community
Get The Latest News!
Don’t miss our top stories and need-to-know news everyday in your inbox.