उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा तैयार किए गए जनसंख्या नियंत्रण विधेयक के मसौदे पर विश्व हिंदू परिषद और कुछ अन्य पॉप्युलेशन एक्सपर्ट संस्थानों ने प्रश्न उठाए हैं। इस विधेयक के अनुसार दो से अधिक बच्चे वाले लोगों को सरकारी नौकरियों और योजनाओं से वंचित कर दिया जाएगा। इसके साथ ही दो से कम बच्चे वाले लोगों को इंसेटिव देने की भी बात कही जा रही है। विहिप के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा कि एक बच्चे की नीति से समाज में आबादी संतुलन बिगड़ सकता है। आलोक कुमार ने कहा कि सरकार को इस बारे में फिर से सोचना चाहिए।
दर्ज कराई लिखित आपत्ति
वीएचपी ने 12 जुलाई को उत्तर प्रदेश के विधि आयोग को इस बारे में अपनी आपत्ति लिखित में सौंपी है। इसमें विधेयक के ड्राफ्ट से एक बच्चे वाले लोगों को इंसेटिव देने का प्रावधान हटाने की मांग की गई है। वीएचपी के साथ ही जनस्वास्थ्य के विशेषज्ञों ने भी सरकार के विधेयक पर सवाल उठाए हैं। पॉप्यूलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की एग्जीक्युटिव डायरेक्टर पूनम मुतरेजा ने कहा कि देश या दुनिया का कोई भी डेटा यह नहीं कहा है कि भारत या फिर उत्तर प्रदेश में जनसंख्या विस्फोट हो रहा है।
टोटल फर्टिलिटी रेट में कमी
मुतरेजा ने कहा कि देश में टोटल फर्टिलिटी रेट में कमी आई है। 1992-93 में भारत में फर्टिलिटी रेट 3.4 था, जो 2015-16 में घटकर 2.7 ही रह गया है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार देश भर का औसत 2.2 था, जबकि यूपी का 2.7 था। यह देश भर के मुकाबले अधिक है। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि अगले कुछ वर्षों में उत्तर प्रदेश में आबादी ग्रोथ औसत राष्ट्रीय स्तर के बराबर हो जाएगा।
महिलाओं की नसबंदी बढ़ने से स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव
पूनम मुतरेजा ने कहा कि सरकार की सख्ती का ज्यादा असर महिलाओं पर ही पड़ेगा। इस नीति को लागू करने के बाद पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में नसबदी बढ़ सकती है और इसका उनके स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ेगा। उन्होंने कहा कि यूपी में जनसंख्या नियंत्रण के तमाम उपायों के बावजूद महिलाओं के मुकाबले पुरुषों की नसबंदी का औसत 1 प्रतिशत कम है।