दुनिया में अनेक तरह की खतरनाक बीमारियां हैं और उन पर खर्च होने वाले राशि लाखों करोड़ों में है। लेकिन इनमें सबसे ज्यादा महंगा उपचार स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी का है। यह चार प्रकार की होती है, जिनका उपचार काफी महंगा है। इसका खर्च आम आदमी ही नहीं, मध्य वर्गीय लोगों के लिए भी काफी ज्यादा है और देश के 70 प्रतिशत लोग अपनी आय के अनुसार इस बीमारी का उपचार नहीं करा सकते। इसके लिए उन्हें फंड क्राउडिंग का रास्ता अपनाना पड़ता है। इसके उपचार को लेकर इसी बात से अंदाजा लगाया जाता है कि इसके एक इंजेक्श की कीमत लगभग 16 करोड़ है।
खतरनाक है बीमारी
बॉम्बे हॉस्पिटल, मुंबई के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. निर्मला सूर्या का कहना है कि एसएमए चार प्रकार की स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी में से एक है। इनमें पहला सबसे गंभीर है। यह छह महीनों तक के बच्चों में पाया जाता है। इसमें शरीर की तंत्रिकाएं निर्जीव हो जाती हैं। इस वजह से शरीर के किसी भाग के बारे में दिमाग को कुछ भी पता नहीं चल पता है। मस्तिष्क की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं और अंत में काम करना बंद कर देती हैं। इस स्थिति में बच्चे को बचाना मुश्किल हो जाता है। आज भी इसका कोई सही उपचार संभव नहीं है।
2019 में जोल्गेनस्मा थेरेपी को अनुमति
इस बीमारी के उपचार के लिए अमेरिका में 2019 में जोल्गेनस्मा थेरेपी को अनुमति दी गई। यह उपचार दो साल से कम उम्र के बच्चों पर किया जाता है। हालांकि इसके माध्यम से पूरे नुकसान को ठीक नहीं किया जा सकता, लेकिन काफी हद तक बच्चा ठीक हो जाता है और शरीर की तंत्रिकाएं काम करना शुरू कर देती हैं।
ऐसे काम करती है दवा
16 करोड़ रुपए के जोल्गेनेस्मा इंजेक्शन को देने के बाद शरीर में तंत्रिकाओं का निष्क्रिय होना बंद हो जाता है। कमजोर मांसपेशियों को दिमाग से फिर संकेत मिलने लगते हैं और वे धीरे-धीरे मजबूत होने लगती हैं। बच्चा बड़ा होकर चलने-फिरने लायक हो जाता है। यह उपचार काफी महंगा है लेकिन असरदार है। यह इंजेक्शन एक बार ही देना होता है। शरीर में प्रोटीन बनना बंद हो जाता है। इस कारण शरीर की कोशिकाएं कमजोर और निर्जीव होने लगती हैं।
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सभी बच्चों को उपलब्ध नहीं हो पाती है दवा
महंगा होने के कारण यह सभी बच्चों को उपलब्ध नहीं हो पाता। कई दवा कंपनियां अपने कारपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी में इन दवाओं को उपलब्ध कराती हैं, लेकिन वहां से इसका मिलना लकी ड्रा निकलने जैसा होता है, जबकि हर किसी को जीने का अधिकार है। कोई भी मां-बाप अपने बच्चे को अपनी आंखों के सामने मरते नहीं देखना चाहता। इस स्थिति में इस बीमारी से पीड़ित कई बच्चों के माता-पिता इसके लिए सरकार से पहल करने का अनुरोध करते हैं, ताकि इस बीमारी से ग्रस्त बच्चों को जीने का अधिकार मिल सके।
ब्रिटेन में यह बीमारी ज्यादा
ब्रिटेन में यह बीमारी ज्यादा है। वहां हर साल 60 बच्चे इस बीमारी से ग्रसित पैदा होते हैं। लेकिन वहां इसकी दवा नहीं बनती। इस इंजेक्शन का नाम जोल्गेनेस्मा है। ब्रिटेन में इस इंजेक्शन को उपचार के लिए अमेरिका, जर्मनी और जापान से मंगाया जाता है। इसे बीमारी से ग्रसित मरीज को एक ही बार दिया जाता है। इसी वजह से यह इतना महंगा है। यह इंजेक्शन उन तीन जीन थेरेपी में से एक है, जिसे यूरोप में इस्तेमाल करने की अनुमति दी गई है।
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तीन साल पहले तक संभव नहीं था उपचार
तीन साल पहले तक इस बीमारी का उपचार भी संभव नहीं था। लेकिन 2017 में काफी रिसर्च और टेस्टिंग के बाद इसका इलाज संभव हो पाया और दवा का उत्पादन शुरू किया जा सका। वर्ष 2017 में 15 बच्चों को यह दवा दी गई।
कुछ और दवा भी उपलब्ध
यह उन पहली जीन थेरेपीज में से एक है, जो खतरनाक बीमारी के इलाज का दावा करती है। इस बीमारी की कई दवाएं मार्केट में आ चुकी हैं, जिनका सलाना खर्चा सैकड़ों, हजारों डॉलर है, जबकि कुछ की कीमत एक मिलियन डॉलर से पार है। जैसे 2016 में अप्रूव की गई दवा स्पिनरजा की कीमत 5 करोड़ 20 लाख है। इसके बाद साल भर का खर्चा 2 करोड़ 60 लाख है। इस तरह अगर 10 साल यह दवा ली जाए तो इस पर करीब 28 करोड़ का खर्च आता है।
बीमारी का नामः स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी
1-
अयांश-हैदराबाद- उम्र- 3 साल
9 जून को इंजेक्शन लगाया गया
पिता-योगेश गुप्ता, माता- रुपल गुप्ता
हैदराबाद, रेनबो हॉस्पिटल में चल रहा उपचार
फंड का स्रोतः क्राउड फंडिंग और भारत सरकार द्वारा टैक्स माफी
2-
बच्चा- धैर्यराज–पांच महीना
पिता- राजदीप सिंह राठौड़
गुजरात के अस्पताल में उपचार
3
तीरा कामत- 5 महीना
एसएमए-टाइप 1 बीमारी
पिता का नामः मिहिर, माता- प्रियंका
मुंबई के एक अस्पताल में उपचार
4
बच्चे की उम्रः 10 माह
जबलपुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में उपचार