… और चीन भी भारतीय पुलिस से डरने लगा

जनवरी 1960 में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पुलिस महानिरीक्षकों का वार्षिक सम्मेलन हुआ था। इसी सम्मेलन में लद्दाख में शहीद हुए उन वीर पुलिसकर्मियों और साल के दौरान ड्यूटी पर जान गंवाने वाले अन्य पुलिसकर्मियों को सम्मानित करने का फैसला लिया गया।

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पुलिस स्मृति दिवस पर देश ने दी शहीद पुलिस कर्मियों श्रद्धांजलि। पुलिस स्मृतिस्थल पर जाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रद्धांजलि अर्पित की। 21 अक्टूबर 1959 को 10 पुलिसकर्मियों ने चीन से सीमा रक्षा करने में अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था। तब तिब्बत के साथ भारत की 2,500 मील लंबी सीमा की निगरानी की जिम्मेदारी भारत के पुलिसकर्मियों की थी।

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने शहीद पुलिस कर्मियों के बलिदान को याद करते हुए पुलिस स्मृति स्थल पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।

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महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने मुंबई के दादर स्थित नायगांव पुलिस मैदान पर जाकर शहीद पुलिस बलों श्रद्धांजलि अर्पित की।

इस घटना से एक दिन पहले 20 अक्टूबर, 1959 को तीसरी बटालियन की एक कंपनी को उत्तर पूर्वी लद्दाख में हॉट स्प्रिंग्स नाम के स्थान पर तैनात किया गया था। इस कंपनी को 3 टुकड़ियों में बांटकर सीमा सुरक्षा की बागडोर दी गई थी। लाइन ऑफ कंट्रोल में ये जवान गश्त के लिए निकले। आगे गई दो टुकड़ी के सदस्य उस दिन दोपहर बाद तक लौट आए। लेकिन तीसरी टुकड़ी के सदस्य नहीं लौटे। उस टुकड़ी में दो पुलिस कॉन्स्टेबल और एक पोर्टर शामिल थे।


अगले दिन फिर सभी जवानों को इकट्ठा किया गया और गुमशुदा लोगों की तलाश के लिए एक टुकड़ी का गठन किया गया। इसमें करीब 20 पुलिसकर्मी थे। जब ये टुकड़ी अपने लापता साथियों की तलाश कर रही थी, उस वक्त चीनी सैनिकों ने पहाड़ी से गोलियां चलाना शुरू कर दिया। भारतीय पुलिसकर्मी निहत्थे थे। इस हमले में 10 पुलिसकर्मी शहीद हो गए। जबकि 7 जख्मी हुए थे। भारतीय पुलिस बल की इस वीरता के कारण चीनी सेना भारतीय सेना से तो खौफ खाती ही है लेकिन वो पुलिसवालों की जाबांजी से भी डरने लगी।

जनवरी 1960 में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पुलिस महानिरीक्षकों का वार्षिक सम्मेलन हुआ था। इसी सम्मेलन में लद्दाख में शहीद हुए उन वीर पुलिसकर्मियों और साल के दौरान ड्यूटी पर जान गंवाने वाले अन्य पुलिसकर्मियों को सम्मानित करने का फैसला लिया गया।

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