Adani: कोई और सहारा नहीं, अडानी पर अटकी कांग्रेस

उसी दिल्ली को राहुल गांधी ने क्या इस बार भी आम आदमी पार्टी की झोली में डालने का मन बना लिया और ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि दिल्ली में इस बार जो चुनाव होंगे तो खुद केजरीवाल और उनके कई नेता भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिरे हैं। 

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-योगेश कुमार सोनी

Adani: महाराष्ट्र (Maharashtra) और झारखंड (Jharkhand) के बाद अब बारी दिल्ली विधानसभा चुनाव (Delhi Assembly Elections) की है। अब इसमें को दोराय नहीं कि यहां दो बार से लगातार जीतती आ रही आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) इस बार भी चुनाव रणनीति (Election Strategy) से लेकर प्रचार के मामले में भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) और कांग्रेस (Congress) दोनों पर बढ़त बनाए हुए है।

लेकिन यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि राहुल गांधी (Rahul Gandhi) कांग्रेस को मजबूत बनाने के लिए कश्मीर से कन्याकुमारी की खाक छानते हैं लेकिन उनकी नाक के नीचे दिल्ली में जहां कभी शीला दीक्षित की अगुवाई में कांग्रेस ने 15 साल तक राज किया, उसी दिल्ली को राहुल गांधी ने क्या इस बार भी आम आदमी पार्टी की झोली में डालने का मन बना लिया और ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि दिल्ली में इस बार जो चुनाव होंगे तो खुद केजरीवाल और उनके कई नेता भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिरे हैं।

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भाई-बहन के पास कोई मुद्दा नहीं!
ऐसे में भाजपा के साथ ही कांग्रेस के लिए एक मौका है। लेकिन लगता है कि कांग्रेस ने एक रणनीति के तहत केजरीवाल के सामने अचानक सरेंडर कर दिया है। मौजूदा स्थिति में कांग्रेस केवल अडानी के मुद्दे पर ही अटक सी गई है। कांग्रेस किसी भी स्तर के चुनाव के लिए संबंधित राज्य या अन्य किसी घटनाक्रम पर कोई चर्चा नहीं कर रही। यदि दिल्ली के परिवेश में चर्चा करें तो अब भी कांग्रेस ने दिल्ली की समस्याओं से संबंधित या चुनावी रणनीति के तहत अब तक कोई बयान नहीं दिया। राहुल गांधी के साथ अब लोकसभा में वायनाड से चुनाव जीतकर एंट्री करने वाली प्रियंका गांधी भी आक्रामक शैली अपनाती रही हैं लेकिन समस्या यह है वह भी केवल अडाणी के मुद्दे पर ही बात कर रही हैं। यहां दोनों नेताओं को यह समझना पड़ेगा कि देश में आम जनता को अपने से जुड़े मुद्दे समझ में आते हैं।

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नाम मात्र बची कांग्रेस
अडानी के मामले से किसी आमजन को किसी भी प्रकार का सरोकार नहीं है और किसी भी घटनाक्रम की सीमा होती है। हर रोज प्रेस कॉन्फेंस में या भाषण में एक ही बात को करना जनता को समझ नहीं आ रहा। दरअसल, पिछले तीन वर्षों में कांग्रेस ने जिस ऊर्जा के साथ कोई भी राज्य या लोकसभा चुनाव लड़ा है, वह दिल्ली के माहौल में नजर नहीं आ रही है। इस बात को लेकर हर कोई आश्चर्यचकित है कि कांग्रेस ऐसा क्यों कर रही है।

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जनता की आंखों में धूल झोंकना
राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी मानना है कि यह चुनाव कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का अघोषित गठबंधन भी हो सकता है। यहां अघोषित गठबंधन से अभिप्राय यह है कि वह खुले तौर पर एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे लेकिन कांग्रेस केवल नाम मात्र के लिए ही चुनाव लड़ेगी। आज के दौर में इसका सबसे बड़ा उदाहरण मायावती के रूप में देखा जा सकता है।

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राहुल को न्याय यात्रा से लगाव नहीं?
इसके अलावा कांग्रेस के बड़े चेहरे भी आप व भाजपा में शामिल हुए। कांग्रेस के दिल्ली के पूर्व अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली का भाजपा में शामिल होना एक बड़ा घटनाक्रम माना जा रहा है। लवली कांग्रेस की रीढ़ की हड्डी माने जाते थे। राहुल गांधी के करीबी दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष देवेंद्र यादव करीब एक महीने से न्याय यात्रा निकाले हुए हैं, लेकिन राहुल ने अब तक इसमें हिस्सा ही नहीं लिया है। जबकि इस न्याय यात्रा को लेकर कांग्रेस ने शुरुआत में खूब हवा बनाई थी। जैसे-जैसे समय बीत रहा है कांग्रेस जमीन पर कुछ खास करती हुई नजर नहीं आ रही है।

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मुसलमानों को लुभाने में लगी कांग्रेस!
दरअसल इस बार के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने पहले से अच्छा प्रदर्शन किया था और माना गया कि मुस्लिम मतदाताओं का रुझान कांग्रेस की ओर बढ़ रहा है और जहां तक बात दिल्ली में मुस्लिम मतदाताओं की है तो वो करीब 11-12 फीसदी हैं और 70 विधानसभा सीटों में से आठ तो मुस्लिम बाहुल्य हैं, वह 35 से 60 फीसद तक हैं। आप के उदय से पहले यहां कांग्रेस जीतती रही है। ऐसे में इस बार कांग्रेस को फिर से वापसी का प्रयास करना चाहिए था। उसे कामयाबी भी मिल सकती थी, क्योंकि 2015 और 2020 के चुनाव में कांग्रेस को शून्य सीटें मिली थी। ज्ञात हो कि यह वही कांग्रेस और आदमी पार्टी है जो 1993 के विधानसभा चुनाव में एक-दूसरे को गाली देते हुए लड़े और जब लगा कि भाजपा सत्ता में आ सकती है तो दोनों एक हो गए लेकिन इनका साथ 50 दिन तक भी नहीं चला। तब कांग्रेस को 24 फीसदी से अधिक वोट मिले थे।

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गौर करने वाला आंकड़ा
2015 में कांग्रेस का वोट फीसद दस के करीब रहा और 2020 में कांग्रेस का आंकड़ा गिरकर पांच फीसदी के करीब आ गया। इधर भाजपा का वोट प्रतिशत तीस फीसदी या उससे ज्यादा बना हुआ है। जबकि आप का वोट फीसदी 53 प्रतिशत से ज्यादा हो चुका है। देखा जाए तो क्या दिल्ली में भाजपा को दूर रखने के लिए कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी के साथ डील कर ली है। ऐसी डील पहले भी होती रही है और लोकसभा चुनाव में भी दोनों ने दिल्ली में मिलकर लड़ा था। हालांकि, दोनों को एक भी सीट नहीं मिल पाई थी।

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विदेशी चालें खेलती है कांग्रेस
भाजपा के सांसदों ने कांग्रेस और विपक्ष के नेता पर विदेशी हस्तक्षेप को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है। सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने ओसीसीआरपी का मुद्दा जमकर उठाया और विपक्ष पर कई गंभीर आरोप भी लगाए। उन्होंने कहा कि जब भी संसद का सत्र चल रहा होता है, उसी समय विदेशों में कोई ना कोई रिपोर्ट सामने आ जा जाती है। इसमें कांग्रेस की कोई चाल नजर आती है। बहरहाल, दिल्ली विधानसभा चुनाव में किस तरह के किरदार अपनी उपस्थिति दर्ज करवाएंगे, यह तस्वीर अभी साफ नहीं है। अंतिम समय में क्या परिस्थिति बनती है यह समय बताएगा।

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