बिहार में 2020 में हुए चुनाव के बाद मिली असफलता की वजह से ज्यादातर छोटी पार्टियों का बुरा हाल है। जिन छोटे दलों ने चुनाव से ठीक पहले एनडीए से गठबंधन किया था, उन्हें छोड़ दें तो बाकी ज्यादातर पार्टियों की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। ऐसी पार्टियों में चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी के आलावा उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) और पप्पू यादव की जनाधिकार पार्टी (जाप) आदि शामिल हैं।
फिलहाल ये सभी पार्टियां अपना अस्तित्व बचाने के लिए तरह-तरह के राजनैतिक जुगाड़ लगा रही हैं। जहां तक उपेंद्र कुशवाहा की बात है तो वे अपनी पार्टी की हार से इस तरह टूट चुके हैं, कि उन्होंने अपनी पार्टी को नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड में विलय करने का ऐलान कर दिया है। इसके लिए जेडीयू के वरिष्ठ नेता एवं राज्यसभा सांसद वशिष्ठ नारायण सिंह और उपेंद्र कुशवाहा नियमित रुप से संपर्क में हैं। बताया जा रहा है कि वे जेडीयू से अपनी कुछ शर्तें मनवाने की कोशिश कर रहे हैं।
विलय पर मुहर
वशिष्ट नारायण सिंह के आलावा कुशवाहा सीएम नीतीश कुमार के भी संपर्क में हैं। मिली जानकारी के अनुसार नीतीश कुमार ने उनकी शर्तें मान भी ली है। इस बीच 12 मार्च को कुशवाहा और नीतीश कुमार की मुलाकात भी हुई है। समझा जा रहा है कि इस मुलकात में रालोसपा के जेडीयू में विलय पर अंतिम मुहर लग गई है और अगले कुछ दिनों में रालोसपा का जेडीयू में विलय हो जाएगा।
रालोसपा की बैठक
उपेंद्र कुशवाहा ने 14 मार्च को पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी, प्रदेश कार्यकारिणी तथा सभी जिलाध्यक्षों की बैठक बुलाई है। इस बैठक में वे पार्टी के जेडीयू में विलय के साथ ही उसकी तारीख का भी ऐलान कर सकते हैं।
कुशवाहा को बड़ा झटका
इस बीच उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी के 30 से अधिक राज्य एवं जिला स्तर के पदाधिकारियों ने लालू यादव की पार्टी आरजेडी का दामन थाम लिया है। रालोसपा की बैठक से मात्र दो दिन पहले यानी 12 मार्च को यह राजनैतिक भूचाल देखने को मिला। विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव की मौजूदगी में आरजेडी में शामिल होनेवाले इन पार्टी नेताओं में राज्य के कार्यकारी अध्यक्ष वीरेंद्र कुशवाहा भी शामिल हैं।
2019 से ही बुरा हाल
अगर मौजूदा समय की बात करें तो उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी का हाल बेहाल है। जहां 2019 में वे खुद लोकसभा चुनाव हार गए थे, वहीं इस बार के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी का एक भी उम्मीदवार जीत हासिल करने में सफल नहीं हुआ। इस वजह से उनकी पार्टी के पास न तो कोई सांसद है और न ही कोई विधायक।
कई पार्टियों के साथ मिलकर लड़ा चुनाव
बता दें कि कुशवाहा की पार्टी 2020 का विधानसभा चुनाव ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम, मायावती की पार्टी बहुजन समाज पार्टी और पप्पू यादव की जनाधिकार पार्टी के साथ मिलकर लड़ी थी। इनमें से जहां औवैसी की पार्टी के पांच उम्मीदवारों ने जीतकर बिहार में अपनी बेहतर मौजूदगी दर्ज कराई, वहीं सपा एक सीट पर जीतने में सफल रही थी, वहीं पप्पू यादव की पार्टी का खाता भी नहीं खुल सका।
पहले से ही लग रहे हैं झटके
उपेंद्र कुशवाहा के बुरे दिन की शुरुआत 2019 से ही हो गई थी। उन्होंने यह लोकसभा चुनाव एनडीए से अलग होने के बाद महागठबंधन में शामिल होकर लड़ा था। इसमें उनकी पार्टी को एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हुई थी। 2019 में उनकी पार्टी की दुर्गति का नतीजा ये हुआ था कि रालोसपा के तीन विधायकों ललन पासवान, सुधांशु शेखर और विधानपरिषद सदस्य संजीव सिंह श्माम जेडीयू शामिल हो गए थे।
भाजपा को ग्राम पंचायत चुनाव में हो सकता है फायदा
अगर कुशवाहा की ताकत की बात करें तो उनकी अपनी जाति कुशवाहा समाज के साथ ही कुछ अन्य पिछड़ी जातियों में अच्छी पकड़ है। उनके जेडीयू में शामिल होने से उनके समाज का वोट जेडीयू के खाते में जा सकता है और इसका फायदा पार्टी को अप्रैल में होनेवाले त्रिस्तरीय ग्राम पंचायत चुनाव में हो सकता है।
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बसपा भी बेहाल
रालोसपा के साथ मिलकर चुनाव लड़नेवाली एक और महत्वपूर्ण पार्टी मायावती की बहुजन समाज पार्टी थी। इस पार्टी का प्रदर्शन बहुत अच्छा तो नहीं रहा था लेकिन एक उम्मीदवार जमा खान जीतने में सफल हुए थे। लेकिन फिलहाल बसपा में कोई भविष्य नहीं देखते हुए उन्होंने भी जेडीयू का दामन थाम लिया है। इससे पहले 2019 के लोकसभा चुनाव में भी बसपा ने कई सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली थी।
पप्पू यादव भी हो गए हैं पैदल
तीसरी पार्टी पप्पू यादव की जनाधिकार पार्टी है। इस पार्टी का भी 2019 के लोकसभा चुनाव से ही बुरा हाल है। इस चुनाव में खुद पप्पू यादव खुद भी हार गए थे, वहीं 2020 के विधानसभा चुनाव में भी उनकी पार्टी की स्थिति नहीं सुधरी और सभी उम्मीदवार बुरी तरह हार गए।
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विधानसभा में भी हार गए पप्पू
2020 में पूर्व सांसद पप्पू यादव मधेपुरा विधानसभा से मैदान में उतरे थे और वे आरजेडी उम्मीदवार चंद्रशेखर यादव से बुरी तरह हार गए थे। इससे पहले चंद्रशेखर यादव यहां से 2010 और 2015 में भी जीत चुके हैं। चार बार सांसद रहे पप्पू यादव 2019 में अपनी सीट बरकरार नहीं रख पाए थे। यहां तक कि वे विधानसभा चुनाव भी हार गए। इससे पहले उन्होंने 1991, 1996, 1999 और 2004 के लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की थी।
चिराग बुझ रहे हैं
इनके आलावा चिराग पासवान की पार्टी राष्ट्रीय जनशक्ति पार्टी की स्थिति भी बेहद खराब है। 2015 के चुनाव में जहां उनकी पार्टी के दो उम्मीदवार जीत दर्ज करने में सफल हुए थे, वहीं 2020 के चुनाव में उनकी पार्टी मात्र एक सीट पर जीत हासिल करने में सफल हुई। फिलहाल पार्टी के इकलौते विधायक राजकुमार सिंह भी जनता दल यूनाइटेड का दामन थामकर एनडीए का हिस्सा बन चुके हैं।
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ऐसे पहुंचा पार्टी को नुकसान
चुनाव से पहले जिस तरह से चिराग पासवान ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ रिश्ते बिगाड़े और फिर एनडीए से बाहर होकर अपने दम पर चुनाव लड़ा, उससे उनकी पार्टी को काफी नुकसान पहुंचा तथा मात्र एक सीट पर उनकी पार्टी जीत दर्ज कर सकी। लेकिन फिलहाल पार्टी के इकलौते विधायक राजकुमार सिंह ने भी जेडीयू में शामिल होकर लोजपा को विधायक विहीन कर दिया है। उनके साथ ही पार्टी की इकलौती एमएलसी नूतन सिंह भी चिराग पासवान को बाय-बाय कर चुकी हैं। हाल ही में वे भाजपा में शामिल हो गई हैं।
पार्टी के एक मात्र सांसद चिराग
2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो चिराग पासवान अपनी पार्टी के एक मात्र जमुई लोकसभा क्षेत्र से जीते हुए सांसद हैं। उनके पिता स्व. रामविलास पासवान भाजपा और जेडीयू की वजह से राज्यसभा के सदस्य थे और अपने निधन तक वे केंद्रीय मंत्री थे। वर्तमान में चिराग अपनी पार्टी के अकेले सांसद हैं।
जेडीयू में शामिल हो रहे हैं लोजपा के नेता
पार्टी की हार के बाद अबतक कम से कम उनकी पार्टी के पांच सौ ज्यादा नेता-कार्यकर्ता लोजपा को बाय-बाय कर चुके हैं और इसका सबसे ज्यादा फायदा जेडीयू को हुआ है।
जेडीयू के साथ ही भाजपा की भी बढ़ रही है ताकत
2020 के चुनाव में भले ही भारतीय जनता पार्टी 74 सीट प्राप्त कर आरजेडी ( 75) के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी रही हो, लेकिन पिछले कुछ महीनों में नीतीश की पार्टी जेडीयू ने अपनी ताकत तेजी से बढ़ाई है। उसने चुनाव में 43 सीटों पर जीत दर्ज की थी, लेकिन अब उसके पास कई और विधायकों की ताकत है। जेडीयू के साथ ही भाजपा ने भी अपनी ताकत बढ़ाई है। हाल ही में लोजपा के दो सौ से ज्यादा नेता-कार्यकर्ता भाजपा में शामिल हुए हैं।