बंगाल में ओवैसी ‘इन’ तो कौन हो सकता है ‘आउट’?

पश्चिम बंगाल में अगले साल चुनाव हैं। तृणमूल तीसरे टर्म की सत्ता के लिए लड़ेगी। जिसके लिए तैयारी उसने काफी समय पहले से शुरू कर दी है। इसी प्रकार बीजेपी ने लोकसभा चुनावों में अप्रत्याशित सफलता प्राप्त करके सबकों चौंका दिया है। इस स्थिति में एआईएमआईएम की एंट्री मुस्लिम वोट बैंक पर बड़ा प्रभाव छोड़ सकती है।

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पश्चिम बंगाल के चुनावों में असदुद्दीन ओवौसी की पार्टी का कूदना वहां के मुस्लिम वोट बैंक पर आधारित पार्टियों के लिए सिरदर्द हो सकता है। लंबे समय से तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी के बीच राजनीतिक लड़ाई चल रही है। इसमें यदि एआईएमआईएम कूदती है तो मुस्लिम वोट बैंक इधर-उधर हो सकते हैं। जिसमें तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियां जो मुस्लिम वोट बैंक के बल पर सीटें हासिल करती हैं उनके लिए एमआईएम का ‘इन’ होना कुछ हद तक ही सही उनको सकारात्मक परिणामों से ‘आउट’ तो कर ही सकता है।

पश्चिम बंगाल में अगले साल चुनाव हैं। तृणमूल तीसरे टर्म की सत्ता के लिए लड़ेगी। जिसके लिए तैयारी उसने काफी समय पहले से शुरू कर दी है। इसी प्रकार बीजेपी ने लोकसभा चुनावों में अप्रत्याशित सफलता प्राप्त करके सबकों चौंका दिया है। वहां की राजनीति में तृणमूल और बीजेपी के बैर ने राजनीति को दो ध्रुवों के बीच खड़ा कर दिया है। इस बीच कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियां भी अपने जोड़तोड़ में लगी हुई हैं। इस स्थिति में एआईएमआईएम की एंट्री मुस्लिम वोट बैंक पर बड़ा प्रभाव छोड़ सकती है।

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पश्चिम बंगाल में मुस्लिम जनसंख्या का 27.01 प्रतिशत वोट किसी भी दल के लिए परिणाम उलटफेर करनेवाला हो सकता है। राज्य में कुल 19 जिले हैं। इनमें से 3 जिले मुस्लिम बाहुल्य है। जिसमें मुर्शिदाबाद, मालदाह और उत्तर दिनाजपुर है।

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जब तृणमूल चूक गई…

2019 के लोकसभा चुनाव में बड़ा उलटफेर देखने को मिला। राज्य में अपनी शक्ति का लोहा मनवाने वाली तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को बड़ी चपत लगी। कुल 42 लोकसभा सीटों में से टीएमसी का आंकड़ा 22 पर आकर टिक गया जबकि बीजेपी ने अप्रत्याशित रूप से 18 सीटों पर जीत दर्ज की। इस चुनाव में कांग्रेस को 2 सीटों पर संतोष करना पड़ा जबकि लेफ्ट पार्टियों का सूपड़ा साफ हो गया। जानकारों के अनुसार लोकसभा चुनाव परिणाम राष्ट्रीय मुद्दों पर दृष्टिगत होते हैं। इसलिए बीजेपी की साख वहां अन्य दलों की अपेक्षा बहुत अच्छी थी।

यदि कुल वोट शेयर की बात करें तो इन चुनावों में टीएमसी को 43.69 प्रतिशत वोट मिले, जबकि बीजेपी को 40.64 प्रतिशत, कांग्रेस को 5.67 प्रतिशत, लेफ्ट पार्टियों को 6.34 प्रतिशत मत मिले। इस चुनाव में मत प्रतिशत के हिसाब से भी बीजेपी सबसे अधिक लाभ में रही उसका मत प्रतिशत 22 प्रतिशत बढ़ा। जिसने बीजेपी को 2 सीटों से 18 संसदीय सीटों पर पहुंचा दिया। जबकि टीएमसी 3.48 मत प्रतिशत अधिक बटोर पाई। इस चुनाव में कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों को बड़ी हानि हुई। कम्यूनिस्ट पार्टी को 16 प्रतिशत का नुकसान उठाना पड़ा।

एमआईएम का गणित

बिहार में पार्टी ने पांच सीटों पर जीत दर्ज की। ये सभी सीटें आरजेडी (राष्ट्रीय जनता दल) की थीं। इसके अलावा करीब 10 सीटों पर आरजेडी की हार में बड़ी भूमिका निभाई। बिहार में 16 प्रतिशत यादव-कुर्मी वोट बैंक है जिसके बल पर आरजेडी लंबे समय तक राज्य में सत्ता में रही तो लगभग 17 प्रतिशत मुस्लिम वोट बैंक है। जिसमें सेंध लगाकर एआईएमआईएम ने बड़ा उलटफेर कर दिया।

अब पश्चिम बंगाल में मुस्लिम मतदाता 27 प्रतिशत हैं। ऐसे में एआईएमआईएम नेताओं का मानना है कि जब 17 प्रतिशत मुस्लिम वोट बैंक के बल पर इतना उलटफेर कर सकते हैं तो बंगाल के 27 प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं के बल पर पार्टी सत्ता के समीकरण में निर्णायक भूमिका निभा सकती है। इसी को लेकर ओवैसी की पार्टी बंगाल चुनावों में आर-पार की लड़ाई लड़ने के मूड में हैं।

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किसको नुकसान

पश्चिम बंगाल में मुस्लिम वोट बैंक अब तक कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों के बीच बंटा रहा है। कांग्रेस की प्रदेश में जीत के पीछे मुस्लिम मतदाताओं की बड़ी भूमिका है। अधीर रंजन चौधरी बेरहामपुर से चुनाव जीते हैं। उनका जन्म मुर्शिदाबाद में हुआ है। ये वो जिले हैं जहां मुस्लिम बाहुल्य है। अब यदि एआईएमआईएम चुनावों में उतरती है तो कांग्रेस को इन सीटों पर हानि उठानी पड़ सकती है। इसके अलावा तृणमूल कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों के अल्पसंख्यक वोट भी छिटक जाएंगे। इस स्थिति में इसका सीधा फायदा बीजेपी को हो सकता है। इसीलिए टीएमसी की ओर से ओवैसी को लेकर वोट कटुआ, बीजेपी की टीम बी जैसे बयान आने भी शुरू हो गए हैं।

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