स्वातंत्र्यवीर सावरकर की जन्मस्थली नासिक में इस बार का 94वां अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन होने जा रहा है। इसके गीत का अनावरण सोमवार को किया गया, जिसमें स्वातंत्र्यवीर का उल्लेख भी नहीं है। इसे लेकर वीर सावरकर की जन्मस्थली की जनता में रोष है। 23वें साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता करनेवाले स्वातंत्र्यवीर सावरकर के ऋण को स्वतंत्र भारत के वह साहित्यकार भूल रहे हैं, जो शिक्षा के विकास पर दिये जाने अनुदानों से पूरित शिक्षा प्रणाली का लाभ लेकर शिक्षित हुए हैं।
12 वर्ष की आयु में पहला ‘फटका’ (मराठी लोक साहित्य) लिखनेवाले, 15 वर्ष की आयु में भारत को स्वतंत्र कराने की शपथ लेनेवाले, 1857 के समर को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहने की हिम्मत दिखाते हुए उस पर ग्रंथ लिखनेवाले, मातृभूमि पर जयोस्तुते का मंगलगीत रचनेवाले, स्वातंत्र्यवीर सावरकर को आज के साहित्यकार भूल गए। स्वातंत्र्यवीर सावरकर की जन्मस्थली नासिक में होनेवाले 94वें साहित्य सम्मेलन के गीत में उनका कोई उल्लेख नहीं है। यह इस भूमि की शिक्षा प्रणाली और उस विद्वत् परिषद पर बड़ा प्रश्न है, जो अपने पूर्वजों के इतिहास को भूल गया है।
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वे क्रांति प्रणेता, वे साहित्यकार, वे समाज उद्धारक थे…
स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने 15 वर्ष की आयु से क्रांतिकार्यों का आरंभ किया था। इसके पश्चात यह अविरत् चलता गया। बेड़ियों से निकलकर अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांतिकार्य कर पाएं, इसके लिए मार्सेलिस बंदरगाह के अथाह सागर में कूद पड़े, अपने पारिवारिक जीवन को त्याग दिया, प्रतिज्ञा पत्र न देकर अपनी बैरिस्टर की डिग्री त्याग दी। 1857 के स्वातंत्र्य समर पर पहला ग्रंथ लिखा, सागरा प्राण तळमळला, जयोस्तुते जैसी कालजयी कविताएं देश को दीं, इसके अलावा कई निबंध, नाटक, फटके, काव्य आदि से साहित्य और भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास को विभूषित किया। अपने स्थानबद्धता काल का उपयोग स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने जातिभेद के निर्मूलन के लिए किया। ऐसे क्रांति प्रणेता की जन्मस्थली पर होनेवाले साहित्य सम्मेलन में उनका उल्लेख न होना साहित्य जगत और ऐसे साहित्यकारों के विचारों की क्षीणता नहीं तो क्या है?