Assembly election results: यह एक लोकप्रिय तर्क है कि मुसलमान हमेशा भाजपा विरोधी ताकतों का समर्थन करना पसंद करते हैं, ताकि भाजपा को सरकार से बाहर रखा जा सके। इस बार इंडी ब्लॉक की सफलता को समझाने के लिए इस तर्क को काफी जोर देकर इस्तेमाल किया गया है। यह दावा किया जाता है कि मुसलमानों ने निर्वाचन क्षेत्र स्तर पर भाजपा उम्मीदवारों को हराने के लिए रणनीतिक मतदान करने का फैसला किया। यह स्पष्टीकरण बिल्कुल भी गलत नहीं है। इसका तजा उदहारण हरियाणा और जम्मू कश्मीर के विधानसभा चुनाव हैं।
हरियाणा के 90 में से चार विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम बहुसंख्यक हैं और हिंदू अल्पसंख्यक हैं। इन सभी चार सीटों पर कांग्रेस को एक तरफ़ा जीत मिली है। इनमें से एक फिरोजपुर झिरका विधानसभा क्षेत्र में, मुसलमानों की आबादी 80 प्रतिशत है और हिंदुओं की आबादी 14 प्रतिशत है और इस मुस्लिम बहुल सीट पर कांग्रेस को सबसे ज़्यादा 72 प्रतिशत वोट मिले हैं।
50 प्रतिशत ज़्यादा वोटों से चुनाव जीता
भाजपा को सिर्फ़ 17.5 प्रतिशत वोट मिले। लेकिन दूसरी तरफ़ हरियाणा के जिस लोहारु विधानसभा क्षेत्र में 99.4 प्रतिशत हिन्दू हैं और सिर्फ़ 0.4 % मुस्लिम हैं। वहां भी हिन्दुओं के वोट जातियों में विभाजित होने के कारण बंट गए और कांग्रेस पार्टी इस सीट पर सिर्फ 792 वोटों से चुनाव जीत गई और इससे यह पता चलता है कि जातियों में विभाजित होने के कारण हिंदुओं के वोट अलग अलग पार्टियों में बंट जाते हैं, लेकिन धर्म के नाम पर मुसलमानों के वोट एकजुट रहते हैं। हरियाणा की जिस पुन्हाना सीट पर 88 प्रतिशत मुसलमान है और नूंह यानी मेवात में 77 प्रतिशत मुसलमान हैं, वहां कांग्रेस ने 50 प्रतिशत ज़्यादा वोटों के साथ चुनाव जीता।
भाजपा उम्मीदवार को सिर्फ़ 3 प्रतिशत वोट मिले
इनमें भी पुन्हाना सीट पर भाजपा ने इस बार एक मुस्लिम उम्मीदवार मोहम्मद इजाज़ खान को टिकट दिया, लेकिन भाजपा के उम्मीदवार को एक लाख छियालीस हज़ार वोटों में से सिर्फ़ पांच हज़ार यानी सिर्फ़ 3 प्रतिशत वोट मिले। भाजपा के उम्मीदवार की जमानत ज़ब्त हो गई, जबकि कांग्रेस को इसी सीट पर लगभग 60 प्रतिशत वोट मिले। यह सिर्फ हरियाणा की बात नहीं है, जम्मू कश्मीर के जिस जम्मू क्षेत्र में 62.6 प्रतिशत हिन्दू हैं और 33.5 प्रतिशत मुस्लिम हैं, वहां भाजपा ने हिंदू बहुल जम्मू की 43 में से 29 सीटों पर चुनाव जीता। जबकि हिंदू बहुल जम्मू में ही फारुख अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस ने भी 7 सीटें जीत ली और कांग्रेस ने भी एक सीट पर चुनाव नहीं जीता। जिस कश्मीर घाटी में मुसलमानों की आबादी 96.4 प्रतिशत है और हिंदुओं की आबादी सिर्फ़ 2.5प्रतिशत है।
धर्म के नाम पर मुसलमानों को एकजुट करने का प्रयास
कश्मीर में भाजपा को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली जबकि भाजपा ने कश्मीर घाटी की 47 में से 19 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन फारूक अब्दुल्ला की पार्टी ने कश्मीर में सबसे ज़्यादा 39 उम्मीदरों में 35 सीटें जीत ली। कांग्रेस ने भी 9 में से 5 सीटें जीत ली और अब जम्मू कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस तथा कांग्रेस की गठबंधन सरकार बनने वाली है।
दो बातोंं का खुलासा
इन आंकड़ों से क्या पता चलता है? दो बातें पता चलती हैं, पहली बात यह कि देश के मुसलमानों में इस बात की बिल्कुल स्पष्टता है कि वो चुनाव में किस पार्टी को अपना वोट देना चाहते हैं? जबकि हिन्दू बंटे होने के कारण आज भी कन्फ्यूज हैं। दूसरा, मुसलमानों में यह स्पष्टता इसलिए भी है क्योंकि मुसलमान अभी धर्म के आधार पर वोट करते हैं और विपक्षी दल भी मुसलमानों को खतरे में बताकर उन्हें धर्म के नाम पर एकजुट करने का प्रयास करते हैं।