उत्तर प्रदेश में बसपा ने चुनावी शंख नाद कर दिया है। इसके लिए मंच पर शंख, त्रिशूल, मंत्रोच्चार और गणपति जी की मूर्ति को लाया गया है। राज्य में अगले वर्ष विधान सभा चुनाव हैं, ऐसे में बसपा के सोशल इंजीनियरिंग का नया नारा है ब्राम्हण शंख बजाएगा, हाथी बढ़ता जाएगा।
बहुजन समाज पार्टी अपने नए-नए समीकरणों के लिए पहचानी जाती है। इसी के अनुरूप पार्टी के नारे भी बदलते रहते हैं। पिछले चुनावों तक ‘हाथी नहीं गणेश हैं ब्रम्हा विष्णु महेश हैं’ का नारा अबकी बार ‘ब्राम्हण शंख बजाएगा, हाथी बढ़ता जाएगा’ के रूप में बदल गया है। बहुजन समाज पार्टी प्रबुद्ध वर्ग संवाद, सुरक्षा, सम्मान विचार गोष्ठी से ब्राम्हणों को अपने साथ लाने की कोशिश कर रही है। इसके लिए बसपा प्रमुख मायावती ने सतीशचंद्र मिश्रा को सेनापति नियुक्त किया है।
ये भी पढ़ें – इन गणेशोत्सव मंडलों में बप्पा के दर्शन नहीं कर पाएंगे श्रद्धालु!
राज्य में सोशल इंजीनियरिंग रही है सफल
- उत्तर प्रदेश में कभी ‘तिलक, तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार’ के नारे से दलित वोट बैंक साधनेवाली बसपा ने राज्य में बड़े समय तक सत्ता का स्वाद चखा है। लेकिन समय बदलने के साथ ही इसमें बदलाव भी किये गए। जब पार्टी को लगा कि मात्र दलित मतदाताओं के साथ उसकी नैया आगे नहीं बढ़ेगी तो उसने सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला अपनाया। जो 2007 में सफल रहा। बसपा ने ब्राम्हण समाज को साथ 2007 के विधान सभा चुनाव में साथ लिया और 86 ब्राम्हण उम्मीदवारों को चुनाव में उतारा था, जिसमें से 41 उम्मीदवार विजयी रहे। इसका परिणाम यह हुआ कि 403 सीटों वाली विधान सभा में बसपा को 206 सीटें प्राप्त हुईं और मायावती मुख्यमंत्री बनीं।
- वर्ष 2012 में समाजवादी पार्टी ने भी सोशल इंजीनियरिंग को साधा था। इस चुनाव में सपा के 21 ब्राम्हण उम्मीदवार विधायक बनने में सफल रहे थे।
- वर्ष 2017 के विधान सभा चुनाव में भाजपा ने एक सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला अपनाया था, जिसमें सवर्ण के साथ गैर जाटव दलित, गैर यादव ओबीसी को अपने साथ लिया था। इस चुनाव में 403 सीटों में से 325 सीटें प्राप्त की और योगी अदित्यनाथ के नेतृत्व में सरकार बनी।