भारतीय जनता पार्टी में खुशी है। असम में बड़ी विजय, पुदुच्चेरी में सरकार और बंगाल में सत्ता में न आने के दुख के बाद भी ये उसकी प्रचंड विजय ही है। बंगाल के रोशोगुल्ला की चासनी में तरबतर हुए ढोकले के साथ थाली में 77 भोज जो हैं। इस जीत की कई माएं हैं। लेकिन एक ऐसा भी नेता भाजपा में था जो हार का पिता बनने का माद्दा रखता था। वे थे अटल बिहारी वायजपेयी के लक्ष्मण यानी प्रमोद महाजन।
वर्ष था 2004 का मई महीना। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अपने लक्ष्मण की बात मानकर लोकभा चुनाव समय से पहले ही करा रहे थे। इसका परिणाम बुरा रहा। सत्ता चली गई इंडिया शाइनिंग का उसका नारा औंधे मुंह गिर गया था।
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भाजपा के खेमे में निराशा थी। कोई हार पर कुछ बोलने को तैयार नहीं था और सहसा प्रमोद महाजन सामने आए। उन्होंने उस हार की नैतिक जिम्मेदारी ली और कहा
सफलता की कई माएं होतीं हैं लेकिन असफलता का पिता एक ही होता है। और वह एक पिता मैं हूं, इस हार को मैं स्वीकार करता हूं।
भारतीय जनता पार्टी का यह नेता उस काल में अपने समकालीन सभी नेताओं से अलग विलक्षण प्रतिभाओं का धनी था। प्रमोद महाजन एक मात्र ऐसे नेता थे जो 80 के दशक में आडवाणी के साथ और 90 के दशक में अटल बिहारी वाजपेयी के सबसे नजदीकी बन गए। यह दो नाव पर सवार होने से कम खतरनाक नहीं था। लेकिन लालकृष्ण आडवाणी के संगठानत्मक गुण और अटल बिहारी वाजपेयी के वाकचातुर्य में निपुण यह लक्ष्मण भारतीय जनता पार्टी की नैया का खेवैय्या बन गया था। पार्टी के लिए पैसे इकट्ठा करने की जिम्मेदारी संभालने के योग्य उस काल में ऊपर से नीचे तक कोई नहीं था। जिसकी जिम्मेदारी का निर्वहन प्रमोद महाजन बहुत ही निपुणता से कर रहे थे।
वैसे, प्रमोद महाजन की राजनीतिक सूझबूझ का एक बड़ा प्रमाण 1990 में लालकृष्ण आडवाणी की राम रथ यात्रा में देखने को मिला। इस यात्रा से प्रमोद महाजन की राजनीतिक प्रतिष्ठा बढ़ी और भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय राजनीति में एक चेहरे के रूप में सामने आए। सोमनाथ से आयोध्या के बीच निकलनेवाली इस रथ यात्रा के औपचारिक कार्यक्रम की घोषणा 13 सितंबर 1990 को नरेंद्र मोदी ने की थी। भाजपा के लिए यह रथ यात्रा उत्तर में उसके उदय का मार्ग प्रशस्त कर गई। लेकिन इस सफलता ने उसे एक उपनाम दे दिया कि भाजपा यानी काऊ लैंड की पार्टी।
राजनीतिक प्रतिद्वंदियों के उस उपहासात्मक उपनाम को भाजपा के लक्ष्मण यानी प्रमोद महाजन ने तोड़ दिया। जनसंघ की समाप्ति से उत्पन्न भारतीय जनता पार्टी की आयु 1989 में मात्र नौ वर्ष थी और महाराष्ट्र में उसकी वैचारिक सोचवाली पार्टी शिवसेना भी 23 वर्ष की युवा के रूप में विकसित होकर भगवा रंग में रंग चुकी थी। भाजपा को काऊ लैंड पार्टी के तमगे से निकालने के लिए रणनीतिकार प्रमोद महाजन शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे के पास 1989 में एक प्रस्ताव लेकर पहुंचे। इस पर बालासाहेब ने एक निर्णय में स्पष्ट कर दिया कि विधान सभा की कुल 288 सीटों में से 88 सीटें वे भाजपा को दे सकते हैं। इस पर सहमति बनी। वैसे इसके पहले 1984 में शिवसेना के उम्मीदवार भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ चुके थे, क्योंकि शिवसेना के पास अपना कोई चुनाव चिन्ह नहीं था। राम मंदिर आंदोलन और वैचारिक समानताओं के कारण भारतीय जनता पार्टी और शिवेसेना की नजदीकियां बढ़ीं और इस मणि को जोड़नेवाले शिल्पकार थे प्रमोद महाजन।
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महाराष्ट्र की सत्ता में महाजन और गडकरी युति सरकार की नीतियों को राज्य के विकास में रूप देने लगे तो बालासाहेब ठाकरे उसका संचालन कर रहे थे। इस सफलता से काऊ लैंड की पार्टी भाजपा महाराष्ट्र में सत्ता स्थापना में भागीदार बन चुकी थी तो दूसरी मुंबई, ठाणे और कोंकण तक सीमित शिवसेना भी राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों तक पैर पसार चुकी थी। भारतीय जनता पार्टी के प्रचार प्रसार और विकास में एक प्रमुख रत्न थे प्रमोद महाजन, जिनकी राजनीतिक सूझबाझ, संबंधों को बनाने और निभाने का कोई सानी नहीं था।
प्रमोद वेंकटेशन महाजन का जन्म 30 अक्टूबर 1949 को तेलंगाना के महबूब नगर में हुआ था। वे देशहस्थ ब्राह्मण परिवार से थे। वेंकटेश महाजन अपने परिवार के साथ महाराष्ट्र के अंबाजोगाई में स्थानांतरित हो गए थे। यहीं के स्वामी रामानंद तीर्थ कॉलेज में पढ़ते थे, जहां उनकी भेंट गोपीनाथ मुंडे से हुई। प्रमोद महाजन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में बचपन से ही सक्रिय थे। 1970 में वे संघ के मराठी अखबार तरुण भारत में उप संपादक के रुप में जुड़े। देश में इंदिरा गांधी सरकार ने जब आपातकाल लगाया तो प्रमोद महाजन को नासिक जेल में डाल दिया गया। जहां से वह 1977 में रिहा हुए।
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