बिहार के चुनाव प्रचार में सभी पार्टियां एड़ी-चोटी का जोर लगा रही हैं। लेकिन जिन छोटी पार्टियों को एनडीए और महागठबंधन ने “वोटकटवा” समझकर भाव नहीं दिया, वे अब अपना दम दिखा रही हैं। इस वजह से दोनों ही गठबंधनों की चिंता बढ़ गई है। एनडीए जहां लोक जनशक्ति पार्टी( लोजपा) ने त्रस्त है, वहीं महागठबंधन लोजपा के साथ रालोसपा के नेतृत्व में बने गठबंधन से लेकर पप्पू यादव की जनाधिकार पार्टी जैसी छोटी पार्टियों के वोट काटने की क्षमता से चिंतित है। विधान सभा चुनाव में मतों के बंटवारे से बचने के लिए एनडीए और महागठबंधन ने चुनाव प्रचार में आक्रामक रणनीति अपनाने का निर्णय लिया है।
कई सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला
फिलहाल चुनाव प्रचार का जोश और जुनून चरम पर है और सभी पार्टियां अपनी पूरी ताकत झोंक रही हैं। बिहार में चुनावी अभियान का संचालन कर रहे एक कांग्रेस के वरिष्ठ रणनीतिकार ने बताया कि एनडीए भले ही अपनी जीत का दावा करे, लेकिन सच तो यह है कि चुनाव में कांटे का टक्कर है। इस चुनाव में एंटी इंकंबेसी फैक्टर अहम रोल निभाएगा और इसका पायदा महागठबंधन को मिलेगा। लेकिन छोटी पार्टियों के जिन बड़े नेताओं को बड़ी पार्टियों ने टिकट नहीं दिया है, उन नेताओं को कई सीटों पर छोटे दलों द्वारा उम्मीदवार बनाने से मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है।
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लोजपा जेडीयू के साथ महागठबंधन का भी बढ़ा रही है टेंशन
कांग्रेस-आरजेडी को अनुमान है कि जिन सीटों पर चुनावी मुकाबला त्रिकोणीय होगा, वहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को 15 साल से सत्ता से खफा मतों का बंटवारा होना तय है। इसके साथ ही लोजपा महागठबंधन को भी कई सीटों पर चिंता बढ़ा रही है। महागठबंन ने सर्वे के आधार पर अनुमान लगाया है कि लोजपा उम्मीदवार जेडीयू को ज्यादा नुकसान पहुंचा सकते हैं लेकिन जातीय और सामाजिक समीकरणों के कारण कई सीटों पर वह कांग्रेस तथा आरजेडी की उम्मीदों पर भी पानी फेर सकती है।
छोटे दलों से हमदर्दी नहीं
इस वजह से महागठबंधन ने छोटे दलों से किसी भी प्रकार की हमदर्दी न दिखाते हुए सीधा हमला करने की रणनीति बनाई है। आरजेडी नेता और महागठबंधन के सीएम का चेहरा तेजस्वी यादव ने इसी रणनीति के तहत अभी तक के चुनाव प्रचार में बिना नाम लिए लोजपा समेत सभी छोटी पार्टियों को वोट कटवा बताया है और उन्हें वोट न देने की अपील की है। यही रणनीति एनडीए ने भी अपनाई है।
जीडीएसएफ से महागठबंधन चिंतित
रालोसपा के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा की अगुआई में बनी ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्यूलर फ्रंट में शामिल बीएसपी और असद्दुदीन ओवैसी की एमआईएम भी कई सीटों पर अपना प्रभाव बढ़ाने में जुटी हैं। रालोसपा का कुशवाहा समाज पर अच्छी पकड़ है। वहीं महागठबंधन के लिए माई यानी मुसलमान- यादव फार्मूला अब तक संजीवनी का काम करता रहा है लेकिन इस चुनाव में यह फार्मूला फेल होता नजर आ रहा है।