बिहार चुनाव: छोटे दलों की सियासत, क्या खोया? क्या पाया?

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पटना। मतदान के ऐलान के साथ ही बिहार विधान सभा चुनाव के लिए सियासत चरम पर पहुंच गई है। घोषित तौर पर यहां मुख्य मुकाबला जेडीयू सु्प्रीमो और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तथा आरजेडी नेता तथा पार्टी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के उत्तराधिकारी तेजस्वी यादव के बीच ही है। इनमें एनडीए की ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा नीतीश कुमार हैं, जबकि महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा तेजस्वी यादव हैं। इन दोनों ही पार्टियों में कुछ क्षेत्रीय पार्टियां भी शामिल हैं, जिनकी वजह से उनके जाति-समाज और समर्थकों का वोट एनडीए तथा महागठबंधन को मिलने का भरोसा है। इसलिए इस चुनाव में उन पार्टियों की भूमिका महत्वपू्र्ण होने से इनकार नहीं किया जा सकता।
लोक जनशक्ति पार्टी
लोक जनशक्ति पार्टी पिछले कई सालों से एनडीए का हिस्सा रही है। बिहार के दलित नेता रामविलास पासवान ने इस पार्टी की स्थापना की है। फिलहाल उनकी तबीयत ठीक नहीं है और वे दिल्ली के हॉस्पिटल में भर्ती में हैं। इसलिए इस बार लोजपा की पूरी जिम्मेदारी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और रामविलास पासवान के सुपुत्र चिराग पासवान के कंधों पर आ गई है। चिराग युवा और अपने पिता रामविलास पासवान के उत्तराधिकारी हैं। लोजपा का भविष्य उनके हाथ में है। इस विधान सभा चुनाव के पहले से ही कई मुद्दों पर उन्होंने अपनी ही सरकार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को घेरने की कोशिश करते रहे हैं। इस वजह से स्वाभाविक तौर पर नितिश कुमार उनसे नाराज चल रहे हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि उन्हें हैसियत बताने के लिए ही नीतीश कुमार ने हिंदुस्तान अवामी मोर्चा के नेता और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को ऐन चुनाव से पहले एनडीए में शामिल कर लिया है। जीतन राम मांझी महादलित समाज से आते हैं और इस वजह से दलित वोटों को लेकर राजनीति करनेवाली पार्टी लोजपा के लिए मुश्किलें पैदा हो गई हैं। क्योंकि जो मतदाता लोजपा के हैं, वही हम के भी हैं। चिराग ने नीतीश कुमार को घेरने का काम शायद अपना अलग वजूद बनाये रखने और अपनी पार्टी के लिए ज्यादा से ज्यादा सीटों का सौदा करने के लिए किया होगा, लेकिन सियासयत के अनुभवी खिलाड़ी नीतीश कुमार के सामने उनकी चाल नहीं चल सकी और उनके लिए एनडीए में बने रहना मुश्किल हो गया। लेकिन उन्हें भारतीय जनता पार्टी के नेताओं पर भरोसा है। हालांकि सीटों को लेकर बातचीत अभी भी नहीं हुई है, लेकिन बताया जा रहा है कि भाजपा उन्हें अपने कोटे से सीटें देने के लिए राजी हो गई है। वैसे वर्तमान में देखें तो एनडीए में उनकी पार्टी के दो विधायक हैं और चिराग पासवान खुद जमुई लोकसभा क्षेत्र से सांसद हैं। हालांकि 2015 के विधान सभा चुनाव में उनकी पार्टी ने 42 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन जीत सिर्फ दो ही सीटों पर हुई। एनडीए ने उन्हें दलित वोटों के लिए अपने साथ रखा है और निश्चित रुप से उनकी वजह से एनडीए के दूसरे उम्मीदवारों को भी दलित और महादलित वोट मिलते रहे हैं। इस पार्टी की स्थापना 28 नवंबर 2000 में चिराग पासवान के पिता रामविलास पासवान ने किया है। रामविलास पासवान को राजनीति का मौसस ज्ञानी कहा जाता है। क्योंकि जब कांग्रेस की सरकार थी तो वे कांग्रेस के साथ थे और मंत्री थे और जब एनडीए सत्ता में आई तो एनडीए के साथ हैं और केंद्रीय मंत्री हैं।
हिंदुस्तान अवाम मोर्चा
हिंदु्स्तानी अवामी मोर्चा के संस्थापक बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी हैं। इससे पहले वे जनता दल यूनाइटेड में थे और नीतीश कुमार के खास माने जाते थे। 2014 में उनकी ही कृपा से मांजी मुख्यमंत्री बने और बाद में जब नीतीश ने उन्हें पद छोड़ने को कहा तो वे अड़ गए। फरवरी 2015 में फ्लोर टेस्ट में वे बहुमत साबित नहीं कर पाए और पद छोड़ना पड़ा। इस पूरे ड्रामे से नाराज नीतीश कुमार ने उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया। वे एनडीए सरकार में अनुसूचित जाति और जनजाति मंत्री भी रह चुके हैं। महादलित समाज से आनेवाले मांझी की पार्टी हिंदुस्तान अवामी मोर्चा ने अबतक बिहार की राजनीति में कोई खास जगह नहीं बना पाई है। हालांकि 2018 में उन्होंने महागठबंधन का दामन थामकर सियासत में अपनी साख बचाने की कोशिश की थी लेकिन 2019 के आम चुनाव में उनकी पार्टी का खाता भी नहीं खुल सका। लेकिन महादलितों के नेता के रुप में मांझी स्थापित जरुर हो गए । एक बार फिर वो बिहार चुनाव से पहले एडीए में शामिल हो गए हैं। नीतीश कुमार ने ऐलान भी कर दिया है कि वे मांझी को जेडीयू के कोटे से सीट देंगे। इस तरह एनडीए को मांझी के आने के कारण फायदा हो सकता है, लेकिन इतने दिन अलग रहकर शायद मांझी भी समझ गए हैं, कि नीतीश कुमार के साथ रहने में ही उन्हें सियासत की मलाई मिल सकती है।
राष्ट्रीय लोक समता पार्टी
राष्ट्रीय लोक समता पार्टी की स्थापना उपेंद्र कुशवाहा ने ही की है। 2014 के आम चुनाव में कुशवाहा एनडीए के साथ थे। तब काराकाट संसदीय सीट से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। मोदी सरकार में मंत्री बने। दिसंबर 2018 में सीट बंटवारे को लेकर अनबन हुई तो 2019 लोकसभा चुनाव से पहले उनकी पार्टी एनडीए से बाहर हो गई। कुशवाहा राजद के नेतृत्व वाली महागठबंधन में शामिल हो गए। तब महागठबंधन में राजद के साथ कांग्रेस, रालोसपा, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) थी। 2019 के चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा दो सीटों काराकाट और उजियारपुर पर लड़े,लेकिन दोनों हार गए। कुशवाहा कोइरी जाति से आते हैं, जिनकी जनसंख्या बिहार की कुल आबादी का 8 प्रतिशत है। वैसे तो उनकी पार्टी महागठबंधन के साथ है, लेकिन उन्होंने हाल ही में नीतीश कुमार के सामने मुख्यमंत्री के रुप में यशस्वी यादव को कमजोर बताकर अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली है। इसके बाद लग रहा था नीतीश कुमार उन्हें एनडीए में एक बार फिर शामिल कर लेंगे लेकिन हाल ही में उन्होंने परोक्ष रुप से कुशवाहा के लिए एनडीए में नो एंट्री का बोर्ड लगा दिया है। इस हालत में अगर कुशवाहा अपनी पार्टी के बैनर तले चुवानी समर में उतरते हैं तो उनके लिए एक बार फिर अपनी पार्टी की साख बचानी मुश्किल हो जाएगी और उनकी पार्टी वोटकटवा पर्टी बनकर जाएगी।
जन अधिकार पार्टी
जन अधिकार पार्टी के मुखिया राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव पांच बार सांसद रह चुके हैं। वो 1991, 1996, 1999, 2004 और 2014 में सांसद चुने गए थे, लेकिन 2019 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इससे पहले 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी 40 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, लेकिन एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। उनकी पार्टी को तब सिर्फ 2 फीसदी वोट मिला था। इस बार के चुनाव में भी उनकी पार्टी अकेले ही चुनाव लड़ेगी क्योंकि पप्पू यादव न तो एनडीए के और न ही महागठबंधन के करीबी हैं। यादव समाज से आनेवाले पप्पू यादव के लिए इस बार भी चुनावी जंग काफी मुश्किल लग रही है। क्योंकि जिस समाज से लालू यादव आते हैं उसी समाज से इनके भी आने के कारण यादव इन्हें वोटकटवा पार्टी समझ सकते हैं।
विकासशील इंसान पार्टी
बॉलीवुड में बतौर सेट डिजाइनर काम कर चुके मुकेश सहनी बिहार की राजनीति में जाना-पहचाना नाम बन चुके हैं। सहनी दरभंगा जिले के सुपौल गांव के हैं। वो गांव छोड़कर मुंबई भाग गए थे। वहीं नाम और पहचान बनाई। वो मशहूर फिल्म देवदास का सेट बना चुके हैं। वो 2014 में बिहार वापस चले आए, तब के लोकसभा चुनाव में उन्होंने बीजेपी के लिए कैंपेन किया था। 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी वो बीजेपी के लिए प्रचार करते दिखे थे। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने खुद की पार्टी बना ली। नाम रखा विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी)। पार्टी 3 सीटों पर चुनाव लड़ी, लेकिन कहीं भी जीत नहीं मिली। सन ऑफ मल्लाह के नाम से मशहूर सहनी निषाद जाति से आते हैं।
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल-मुस्लिमीन
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल-मुस्लिमीन के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी भी बिहार चुनाव में अपनी किस्मत आजमाने उतरंगे। ओवैसी की नजर मुस्लिम वोट बैंक पर है। बिहार में मुसलमानों की जनसंख्या कुल आबादी का 16.9 फीसदी है। बात चाहे 2014 के लोकसभा चुनाव की करें या फिर 2019 के चुनाव की, दोनों मौके पर मुसलमानों का वोट राजद, कांग्रेस और जदयू के बीच बंट गया था। अक्टूबर 2019 में उपचुनाव जीतकर एआईएमआईएम ने बिहार की राजनीति में एंट्री मारी है। तब किशनगंज से कमरूल होडा ने बीजेपी की स्वीटी सिंह को हराया था। बिहार की राजनीति में एआईएमआईएम की एंट्री से राजद और कांग्रेस को बड़ा नुकसान हो सकता है।

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