Bihar: बिहार में क्यों नहीं आ रही है विकास की बहार?

पार्टी सांसदों के साथ ही एनडीए की सहयोगी पार्टियों को संतुष्ट रखकर भाजपा नेताओं ने तीसरी बार ऐसे सरकार बनाई, जैसे यह उनके लिए कभी मुश्किल था ही नहीं।

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महेश सिंह

कांटों से गुजर जाता हूं दामन को बचा कर
फूलों की सियासत से मैं बेगाना नहीं हूं…

Bihar: यह शेर प्रधानमंत्री मोदी (Prime Minister Modi) पर बिलकुल सही बैठता है। तीसरी बार एनडीए (NDA Government) की सरकार और फिर मोदी का प्रधानमंत्री बनना भाजपा की सधी हुई राजनीति का हिस्सा है। 240 सीटों पर सिमट गई भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) के लिए बहुमत का आंकड़ा 272 जुटाना मुश्किल भी हो सकता था, लेकिन पार्टी के अनुभवी शीर्ष नेताओं ने इस कठिन काम को आसान बना दिया।

ऐसा लगा ही नहीं कि यह आंकड़ा जुटाना मुश्किल भी हो सकता था। पार्टी सांसदों के साथ ही एनडीए की सहयोगी पार्टियों को संतुष्ट रखकर भाजपा नेताओं ने तीसरी बार ऐसे सरकार बनाई, जैसे यह उनके लिए कभी मुश्किल था ही नहीं। कहने वाले यह भी कहते हैं कि ये गठबंधन युग है, यहां कोई भी ‘शेर’ अकेला नहीं चलता।

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दो बाबुओं की महत्वपूर्ण भूमिका
भाजपा की एनडीए के रूप में तीसरी बार वापसी में जिन सहयोगी पार्टियों ने महत्वपूर्ण निभाई, उनमें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की तेलगु देशम पार्टी काफी महत्वपूर्ण हैं। जेडीयू के 12 और टीडीपी के 16 सांसदों ने भाजपा के लिए सत्ता में आने की राह आसान कर दी। अब जब सरकार ने काम शुरू कर दिया है और सब कुछ ठीकठाक चल रहा है, तो इन सहयोगियों ने अपने राज्य के विकास के लिए केंद्र सरकार से अपना हिस्सा मांगना शुरू कर दिया है।

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बिहार में बहार क्यों नहीं?
सवाल यह है कि क्या बिहार को केंद्र सरकार की मदद मिलने से प्रदेश का भला हो जायेगा। जवाब कठिन है,लेकिन बिहार की वर्तमान स्थिति को देखते हुए कहा जा सकता है कि प्रदेश में विकास की बहार लाने के लिए सबसे प्रमुख जरुरत है रोजगार सृजन करने की। प्रदेश के लिए यह बड़ी चुनौती है। क्योंकि सड़क, पानी और बिजली की उचित व्यवस्था होने के बावजूद प्रदेश में रोजगार की कोई बड़ी व्यवस्था नहीं है। प्रदेश में उद्योग-धंधे शुरू किए जाने की जरुरत है लेकिन इस बारे में किसी तरह के प्रयास किए जाने के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं। नीतीश सरकार ही नहीं बिहार की अब तक की सभी सरकारों की यह बड़ी विफलता रही है। बिहार में रोजगार पैदा करने के लिए कोई विशेष काम नहीं किया गया।

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बुनियादी साधन उपलब्ध
वर्तमान में बिहार में उद्योग धंधों के लिए सड़क,पानी और बिजली सभी संसाधन उपलब्ध हैं। फिर भी यहां रोजगार सृजन करने की दिशा में न सरकार की ओर से कोई बड़े और कारगर कदम उठाए जा रहे हैं और न ही केंद्र सरकार इसके लिए उत्साहित दिख रही है। देश के बड़े उद्योगपति भी इस प्रदेश में उद्योग-धंधे लगाने के लिए उत्सुक नहीं दिखते हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं, लेकिन दो कारण महत्वपूर्ण हैं- पहला प्रदेश सरकार की उदासीनता और राजनीति तथा स्थानीय लोगों की खराब मानसिकता।

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निवेश के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं
गुजरात, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जैसे प्रदेश जहां उद्योग धंधे लगाने के लिए रोड शो और निवेशकों को लुभाने के लिए तमाम के लिए कार्यक्रम करते हैं, वहीं बिहार की नीतीश सरकार इस ओर अधिक ध्यान देने की जरुरत नहीं समझती। ऐसी स्थिति में प्रदेश के लोग देश के दूसरे शहरों में पलायन करने को मजबूर हैं। इसलिए देश के अधिकांश कल-कारखानों में बिहार के श्रमिक काम करते पाए जाते हैं। गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब और हरियाणा सहित अन्य प्रदेशों में कल कारखानों को बिहार के श्रमिक चलाते हैं। इस स्थिति में उनके साथ कई बार मारपीट और अन्याय तथा अत्याचार जैसी घटनाएं भी की घटती हैं। इसके बावजूद उनके सामने और कोई रास्ता नहीं बचता।

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स्वार्थ की राजनीति जिम्मेदार
बिहार में उद्योग नहीं लगने के पीछे स्थानीय लोगों की मानसिकता और राजनीति मूल रूप से जिम्मेदार है। जो मजदूर दूसरे राज्यों में सर झुकाकर और अन्याय तथा अत्याचार सहकर भी काम करते हैं, वे ही अपने प्रदेश में काम करने में कोई ज्यादा दिलचस्पी नहीं रखते। वे स्थानीय राजनीति में पड़कर बिना काम किए वेतन लेना चाहते हैं। कंपनी द्वारा नहीं दिए जाने पर वे गुंडागिरी करने पर उतर आते हैं और कंपनी के लिए हर तरह की समस्या खड़ी करते हैं। इसके साथ ही राजनीतिक पार्टियों द्वारा रंगदारी मांगने और नहीं देने पर तरह-तरह की धमकियां देने तथा मारपीट तक करने की मानसिकता भी खतरनाक है।

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बदनामी भी एक कारण
इसके साथ ही अन्य तरह की समस्याएं भी प्रदेश में है। पुलिस और प्रशासन में रिश्वतखोरी और गलत मानसिकता के कारण भी प्रदेश में उद्योग-धंधों को चला पाना आसान नहीं है। इस कारण प्रदेश में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है। इस वजह से प्रदेश की बदनामी हो रही है और बिहार देश के पिछड़े राज्यों में प्रायः ही पहले पायदान पर रहता है।

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मानसिकता बदलने की जरुरत
बिहार में विकास की वास्तविक बहार लानी है, तो सरकार के साथ ही लोगों को भी मानसिकता बदलनी होगी। निवेशकों के लिए रेड कार्पेट बिछाना होगा और उनके लिए सही माहौल तैयार करना होगा। उनकी सुरक्षा का प्रबंध करना होगा और उनकी हर तरह की जरुरतों को पूरा करने के लिए सरकार तथा प्रशासन को तैयार रहना होगा।

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आंध्र के बाद अब बिहार की बारी
मोदी सरकार को पता है कि उसे गठबंधन का धर्म निभाना होगा। इसलिए उसने हाल ही में आंध्र प्रदेश में 60 हजार करोड़ की परियोजनाएं शुरू करने की घोषणा की हैं। आंध्र के बाद अब बारी बिहार की है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित अन्य नेता भी प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की उम्मीद लगाए बैठे हैं, हालांकि केंद्र सरकार उनकी इस मांग को मांगेगी या नहीं, इस बारे में कुछ कहना मुश्किल है, लेकिन यह बात भी तय है कि उसे बिहार को किसी न किसी रूप में कृतज्ञ करना ही होगा। वह नीतीश बाबू को नाराज नहीं कर सकती है। वरना उन्होंने एक बार फिर पलटी मार दी तो देश की राजनीति में उथल-पुथल मच जाएगी।

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