बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल यूनाइटेड के नेता नीतीश कुमार पिछले कुछ महीनों से काफी जोश में दिख रहे हैं। वे विपक्ष को एकजुट करने के लिए एड़ी चोटी एक कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने 23 जून को पटना में बैठक बुलाई है। बैठक में 19 विपक्षी दलों के नेताओं के शामिल होने की उम्मीद है। लेकिन भाजपा नीतीश कुमार के साथ ही विपक्ष की सभी गतिविधियों पर पैनी नजर रखे हुए है।
बिहार में भाजपा के सामने बड़ी चुनौती
भाजपा को पता है कि उसे 2024 में हर प्रदेश में वहां की राजनीतिक स्थिति के अनुसार रणनीति बनानी होगी। जहां तक बिहार की स्थिति है, तो यहां भाजपा को बड़ी लड़ाई लड़नी होगी। इसका कारण यह है कि बिहार में आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस के साथ आने से राजनीतिक समीकरण बिगड़ गया है। इन तीनों बड़ी पार्टियों के साथ आने से भाजपा के सामने एक ही रास्ता बचता है कि वह प्रदेश की छोटी पार्टियों को साथ लेकर चले।
महागठबंधन को मझधार में छोड़ गए मांझी
भाजपा बिहार की राजनीतिक स्थिति से अच्छी तरह अवगत है। इसलिए उसने 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए रणनीति बनाने में पूरी ताकत से जुट गई है। इसी रणनीति के तहत अप्रैल के बाद 21 जून को भी अमित शाह ने हम पार्टी सुप्रीमो जीतनराम मांझी से मुलाकात की थी। उसके बाद मांझी ने महागठबंधन को मझधार में छोड़कर अपने और अपनी पार्टी के भविष्य को बेहतर बनाने में जुटे हुए हैं। मांझी के साथ ही उनके बेटे संतोष सुमन मांझी ने भी नीतीश मंत्रिमंडल से त्याग पत्र देकर मांझी के इरादे को पक्का कर दिया है। अब ये दोनों पिता पुत्र एनडीए के साथ हैं।
राजनीति में सब जायज है
नीतीश कुमार को कभी नहीं छोड़ने के वादे और दावे करने वाले मांझी ने अपने फैसलों से हमेशा ये साबित किया है कि राजनीति में सब जायज है। उन्होंने भाजपा के साथ जाने के संकेत पहले ही दे दिए थे। बस समझ लीजिए कि उनकी एनडीए में एंट्री का औपचारिक ऐलान ही बाकी रह गया था, वो भी पूरा हो गया।
मांझी के आने से भाजपा को लाभ
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी महादलित समाज से हैं और भाजपा को उम्मीद है कि उनके एनडीए के साथ आने से उसे महादलितों के साथ ही दलितों का भी समर्थन मिलेगा।
लोजपा पर भी नजर
मांझी के साथ ही भाजपा की नजर लोजपा के दोनों धड़ों पर भी है। हालांकि ये दोनों ही गुट घोषित या अघोषित रूप से भाजपा के साथ ही हैं, क्योंकि ये महागठबंधन के साथ नहीं हैं और इनके साथ भाजपा के साथ आने के आलावा कोई और विकल्प नहीं है। चिराग पासवान बिहार विधानसभा चुनाव में अपने दम पर चुनावी अखाड़े में उतरकर पार्टी का हश्र देख चुके हैं। इसलिए चिराग पासवान और उनके चाचा पशुपति पारस पहले से ही 2024 का चुनाव एनडीए के साथ मिलकर लड़ने का मन बना चुके हैं।
वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी साबित होंगे तुरूप का पत्ता
वीआईपी के मुकेश सहनी पर भी भाजपा की नजर है। महागठबंधन और नीतीश कुमार के जनता दल यूनाइटेड से खार खाए बैठे सहनी भाजपा के लिए तुरूप का पता साबित हो सकते हैं। मल्लाह समाज में उनकी अच्छी पकड़ है और भाजपा को उन्हें साथ लेने से उसकी ताकत बढ़ सकती है। मुकेश सहनी के पास भी वर्तमान में कोई रास्ता नहीं है और वे भाजपा के साथ मिलकर 2024 में अपनी और अपनी पार्टी की किस्मत आजमा सकते हैं।
उपेंद्र कुशवाहा के पास और कोई रास्ता नहीं
इनके साथ ही हाल ही में पार्टी से निष्कासित उपेंद्र कुशवाहा को भी भाजपा एक बार फिर आजमा सकती है। कुशवाहा समाज में अच्छी पैठ रखने वाले उपेंद्र कुशवाहा पहले भी एनडीए के साथ थे, लेकिन बीच में नीतीश कुमार के साथ चले गए थे। यहां तक कि उन्होंने अपनी पार्टी को भी जेडीयू में विलय करने की घोषणा कर दी थी। एक बार फिर न घर के न घाट के रहे उपेंद्र कुशवाहा के सामने भाजपा के साथ जाने के आलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है।
नीतीश कुमार की सफलता पर शक
23 जून को पटना में होनवाली विपक्ष की बैठक को तभी सफल माना जाएगा, जब इसमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी, सोनिया गांधी या प्रियंका गांधी स्वयं मौजूद रहें। कांग्रेस सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक इन तीनों नेताओं के आने की उम्मीद कम है। बैठक में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के शामिल होने की संभावना है।