कहीं हो न जाए ‘सफा’!

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देश की सबसे बड़ी नगरपालिका मुंबई महानगरपालिका के लिए 2022 में कराए जाने हैं। लेकिन उसकी तैयारी अभी से सभी पार्टियों ने शुरू कर दी है। शिवसेना, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ ही समाजवादी पार्टी भी इसमें पीछे नहीं रहना चाहती। हालांकि जिस तरह से पिछले कुछ वर्षों में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएमआई ने बिहार विधानसभा में पांच सीटों पर जीत हासिल की है, उसे देखते हुए कहा जा रहा है कि कहीं वह सपा के गढ़ पर कब्जा कर उसका सफाया न कर दे।

सपा की बैठकों का दौर जारी
फिलहाल समाजवादी पार्टी में बैठकों का सिलसिला शुरू हो गया है। अभी तो वह अपने दम पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। लेकिन भविष्य में वह किसी अन्य पार्टी के साथ मिलकर चुनाव मैदान में ताल ठोंक सकती है।
वर्तमान में मुंबई में उसके छह नगरसेवक हैं। जबकि एक समय इसके 21 नगरसेवक हुआ करते थे। लेकिन 1997 से  शुरू हुआ उसका पतन अब तक जारी है। यहां तक कि मुसलमान बहुल इलाकों मानखुर्द शिवाजी नगर आदि इलाकों में भी वह जीत हासिल करने में नाकाम रही है।

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20 वर्षों में 21 से 6 पर सपा
फिलहाल बीएमसी में सपा के मात्र 6 नगरसेवक हैं। इससे पहले के चुनाव में पार्टी के 9 नगरसेवक चुनकर आए थे। यानी पांच साल में पार्टी के तीन नगरसेवक कम हो गए। 2002 और 2012 के बीएमसी चुनाव में सपा के 9 नगरसेवकों ने जीत हासिल की थी। जबकि 2007 और 2017 में क्रमशः 7 और 6 सीटों पर पार्टी ने जीत प्राप्त की थी। सिंगल डिजीट आंकड़े से पहले 1997 में समाजवादी पार्टी के सबसे ज्यादा 21 नगरसवेक चुनकर आए थे। लेकिन 20 वर्षों के सफर में यह आंकड़ा छह पर पहुंच गया है।

कई नेताओं ने छोड़ दी पार्टी
समाजवादी पार्टी के गढ़ मानखुर्द गोवंडी शिवाजी नगर, कुर्ला, बांद्रा पूर्व, शिवडी, वडाला, कुर्ला, जोगेश्वरी, कांदिवली पूर्व और मस्जिद बंदर आदि इलाकों को माना जाता है। लेकिन गोवंडी शिवाजी नगर को छोड़कर किसी भी इलाके में उसे सफलता नहीं मिली। इस बीच असलमम शेख, मोहसीन हैदर, वकारुनिस्सा अंसारी,अकलाख अंसारी ने पार्टी को राम-राम कह दिया।

आगे भी जारी रहा पार्टी छोड़ने का सिलसिला
2007 में समाजवादी पार्टी के 7 नगरसेवकों ने जीत हासिल की थी। उसके बाद समाजवादी पार्टी अशरफ आजमी ने भी पार्टी छोड़ दी। इसके बावजूद अबू आजमी ने अपने दम पर पार्टी को जिंदा रखा। लेकिन नेताओं के पार्टी छोड़ने का सिलसिला जारी रहा और नवाब मलिक के साथ ही बशीर शेख और हुसैन हलवाई आदि ने पार्टी को अलविदा कह दिया।

पार्टी को नये नेतृत्व की जरुरत
वास्तव में पिछले कुछ वर्षों में पार्टी का प्रभाव कम हुआ है और मुस्लिम इलाकों में भी उसके लिए जीत हासिल करना बड़ी चुनौती बन गई है। इसका कारण पार्टी में ऊर्जा और नतृत्व की कमी है। महानगरपालिका में भी पार्टी का कोई जुझारु नगरसेवक नहीं बचा है। रईस शेख की पहचान दबंग नगरसेवक के रुप में थी लेकिन उनके विधायक बनने के बाद वो भी बीएमसी के चुनाव में ज्यादा सक्रियता नहीं दिखा पाएंगे। इसलिए अब बीएमसी में नेतृत्व करने के लिए पार्टी को नये नेता तलाशने की जरुरत है।

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