जानिये, कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए आरपीएन सिंह हैं कौन, जिनकी है इतनी चर्चा!

कुंवर आरपीएन सिंह ने 1989 में राजनीति की बागडोर संभाली और कांग्रेस के साथ जुड़े रहे। यह संबंध 25 जनवरी वर्ष 2022 तक बना रहा।

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जिस पडरौना राजघराने को कांग्रेस की कद्दावर महिला नेता और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पार्टी से जोड़ा था, उस राजघराने के संबंधों में कब कड़वाहट आ गई पता ही नहीं चला। इंदिरा गांधी की बहू सोनिया गांधी उस संबंध को नहीं संभाल सकीं, जिस संबंध के बल पर 42 वर्षों तक पडरौना राजघराना और कांग्रेस एक-दूसरे का हाथ थाम कर चलते रहे।

आइए, पहले उनके पिता के राजनीतिक सफर पर नजर डालते हैंः

‘राजा साहब’ आए हैं, कहकर उनके पिता का किया जाता था स्वागत
पडरौना राजदरबार के कुंवर सीपीएन सिंह ने वर्ष 1969 में पडरौना विधानसभा को अपना राजनैतिक क्षेत्र चुना था। भारतीय क्रांति दल से चुनाव मैदान में उतरे और विधायक बने। उस समय जनता ने ‘राजा साहब’ आए हैं, कहकर उनके पक्ष में खुलकर मतदान किया। फिर, इसी दल से वर्ष 1971 में पडरौना संसदीय सीट से चुनाव मैदान में उतरे। लेकिन इस बार जनता ने उनका साथ नहीं दिया और वे हार गए। सीपीएन सिंह की लोकप्रियता को देखते हुए कांग्रेस की दिग्गज नेता और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें अपनी पार्टी में आने को कहा तथा सीपीएन सिंह ने कांग्रेस को ज्वाइन कर लिया था।

गांधी परिवार के खास बन गए सीपीएन सिंह
कांग्रेस की सक्रिय राजनीति में आने के बाद वर्ष 1980 में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में सीपीएन सिंह संसदीय चुनाव मैदान में उतरे। जीत मिली और वे संसद में पहुंचे। इंदिरा गांधी सरकार में इन्हें केंद्रीय रक्षा राज्यमंत्री का तमगा मिला और कांग्रेस में एक अच्छी स्थिति माना जाने वाला पद पाकर सीपीएन सिंह भी काफी खुश हुए। इसके साथ ही यह संबंध और मजबूत होता गया। वर्ष 1985 में वे पुन: कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतकर संसद पहुंच गए। कांग्रेस से ही वर्ष 1989 में लाेकसभा चुनाव मैदान में थे। पारिवारिक विवाद में उनके चचेरे भाई ने ही गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। इसके बाद उनके पुत्र कुंवर आरपीएन सिंह ने राजनीति की बागडोर संभाली और कांग्रेस के साथ जुड़े रहे। यह संबंध 25 जनवरी वर्ष 2022 तक बना रहा।

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 ऐसा रहा आरपीएन सिंह का राजनैतिक सफर

  • कुंवर आरपीएन सिंह को वर्ष 1996 में पडरौना संसदीय सीट पर हार का समाना करना पड़ा।
  • वर्ष 2009 में यहां से चुनाव जीतकर वे संसद पहुंचे। सड़क ट्रांसपोर्ट एवं कार्पोरेट, पेट्रोलियम एवं केंद्रीय गृह राज्य मंत्री बने।
  • फिर लगातार दो चुनावों में हार मिली, लेकिन पार्टी और क्षेत्र में उनका सियासी कद छोटा नहीं हुआ।
  • कांग्रेस ने राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाया। झारखंड प्रान्त के विधानसभा चुनाव की कमान सौंपी।
  • आरपीएन सिंह की कुशल रणनीति से पार्टी को जीत मिली।
  • यहां आरपीएन सिंह एक किंग मेकर की भूमिका में उभरे।
  • इस्तीफा देने से पहले तक वे झारखंड और छत्तीसगढ़ में पार्टी के प्रभारी थे।
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