मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव में बोल रहे थे। उन्होंने हिंदुत्व की याद दिलानेवाले नेता विपक्ष देवेंद्र फडणवीस के एक-एक सवाल का चुन-चुनकर उत्तर दिया। लेकिन स्वातंत्र्यवीर के आत्मार्पण दिन पर ट्वीट तक न करने और कांग्रेसियों की दुष्प्रचार पुस्तिका कांड पर प्रलंबित कार्रवाई का उल्लेख तक नहीं किया। हां, एक बात जरूर है कि उन्हें ये जरूर याद है कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के काल में स्वातंत्र्यवीर को भारत रत्न देने की मांग से संबंधित दो पत्र केंद्र सरकार के पास भेजे गए थे।
एक कहावत है कि जब कोई सवाल खड़ा करे तो उसपर उत्तर देने के बजाय दूसरे मुद्दे उठाकर उसे उलझा दो। यही हुआ महाराष्ट्र विधान सभा में, जहां नेता प्रतिपक्ष देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को हिंदुत्व की याद दिलाई थी। उन्होंने कहा था कि, मुख्यमंत्री और उनके कार्यालय को स्वातंत्र्यवीर सावरकर के आत्मार्पण दिवस पर एक ट्वीट करने की भी सुध नहीं रही जबकि संभाजी नगर के मुद्दे को भूल गए हैं।
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स्वा. सावरकरांना देशद्रोही आणि समलैंगिक म्हणणाऱ्या काँग्रेसच्या मांडीला मांडी लावून शिवसेना सत्तेसाठी बसली आहे, त्याच काँग्रेसने सावरकरांविरुद्ध सत्तेत आल्यावर पुस्तक काढलं आणि मुख्यमंत्री आम्हाला हिंदुत्व शिकवायला निघाले आहेत ! – @Dev_Fadnavis pic.twitter.com/ZvcRIS1ode
— भाजपा महाराष्ट्र (@BJP4Maharashtra) March 3, 2021
नेता प्रतिपक्ष के तीखे सवालों को झेल चुके मुख्यमंत्री ने दूसरे दिन इसका ऐसा उत्तर दिया कि एक बार तो आपा भी खो दिया। स्वातंत्र्यवीर सावरकर के मुद्दे पर देवेंद्र फडणवीस के प्रश्नों का उत्तर देने के बजाय मुख्यमंत्री ने फडणवीस और केंद्र सरकार पर ही सवाल खड़ा कर दिया। उन्होंने, कहा कि राज्य सरकार ने दो बार स्वातंत्र्यवीर सावरकर को भारत रत्न देने की मांग का प्रस्ताव केंद्र के पास भेजा था। इस पर क्या हुआ? लेकिन, मुख्यमंत्री अपने आक्रामक अंदाज का प्रदर्शन करते हुए स्वातंत्र्यवीर पर किये गए मूल प्रश्न पर चुप्पी साध गए।
नया नहीं है मुख्यमंत्री का ये व्यवहार
मुख्यमंत्री बनने के बाद उद्धव ठाकरे के व्यवहार में बड़ा परिवर्तन आया है। इसका उदाहरण एक साल पहले घटी घटना है। 3 जनवरी, 2020 को स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के कार्याध्यक्ष रणजीत सावरकर और उनके साथ विश्वस्त मंडल के सदस्य मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से मिलने गए थे। इस भेंट का मुद्दा था कि कांग्रेस ने स्वातंत्र्यवीर सावरकर के विरुद्ध झूठे आरोपों की एक पुस्तिका ‘शिदोरी’ का प्रकाशन करके बांटी थी। इसमें स्वातंत्र्यवीर पर अनाप-शनाप आरोप लगाए गए थे। कांग्रेस के दुष्प्रचार पर कार्रवाई की मांग को लेकर ज्ञापन देने स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक का प्रतिनिधिमंडल गया था। उस समय मुख्यमंत्री कार्यालय में बैठे थे और कुछ कार्य में थे जिसके कारण प्रतिनिधिमंडल को प्रतीक्षालय में बैठने के कहा गया। बहुत समय बीतने के बाद अचानक बताया गया कि मुख्यमंत्री तो दूसरी ओर से निकल गए। जिसके बाद स्मारक के इस प्रतिनिधिमंडल ने उनके सचिवालय को पत्र सौंप दिया।
इस पत्र को देने के ठीक एक वर्ष बाद सदन में मुख्यमंत्री, स्वातंत्र्यवीर सावरकर को भूलने के प्रश्न का उत्तर दे रहे थे लेकिन उन्होंने उस पत्र पर कार्रवाई का उल्लेख नहीं किया और न ही आत्मार्पण दिवस पर एक भी आदरांजलि का संदेश न जारी करने का कारण बताया।
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