चीन ने जी-7 देशों के हिरोशिमा संयुक्त बयान पर राजनयिक विरोध दर्ज कराया है। ड्रैगन ने इन देशों पर बीजिंग के आंतरिक मामलों में दखल देने का आरोप जड़ा है। 19 मई को जारी हिरोशिमा संयुक्त बयान में ताइवान, पूर्वी और दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रामकता को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की गई है।
जी-7 के शिखर सम्मेलन में इन देशों ने लिया हिस्सा
जापान के हिरोशिमा में हुए जी-7 देशों के शिखर सम्मेलन में चीन से संबंधित मुद्दे व्यापक तौर पर उठाए गए। जी-7 में कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका शामिल हैं। संयुक्त बयान का एक अहम हिस्सा चीन को लेकर है। इसमें चिंता जताते हुए यह भी कहा गया है कि वे चीन के साथ ‘रचनात्मक और स्थिर संबंध’ चाहते हैं।
चीन में मानवाधिकारों के हनन पर चिंता
जी-7 देशों ने हिरोशिमा संयुक्त बयान में तिब्बत, हांगकांग और शिनजियांग सहित चीन में मानवाधिकारों के हनन पर चिंता व्यक्त की है। शिनजियांग में बीजिंग पर हजारों उइगर मुसलमानों को जबरन श्रम शिविरों में बंद रखने का आरोप है।
चीन ने लगाया आरोप
-चीन के विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने हिरोशिमा संयुक्त बयान जारी होने के कई घंटे बाद देर रात बयान जारी किया। इसमें कहा गया है कि चीन की गंभीर चिंता के बावजूद जी-7 ने बीजिंग को बदनाम किया। यह सार्वजनिक रूप से चीन के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप है। चीन इस बयान की कड़ी निंदा करने के साथ दृढ़ता से इसका विरोध करता है।विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा- मैं यह स्पष्ट कर रहा हूं कि वो दिन गए जब मुट्ठी भर पश्चिमी देश जान-बूझकर दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में दखल दे सकते थे और वैश्विक मामलों को प्रभावित कर सकते थे।
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-प्रवक्ता ने कहा है कि शिखर सम्मेलन के मेजबान जापान और अन्य संबंधित पक्षों के समक्ष गंभीर आपत्ति दर्ज कराई है। प्रवक्ता ने कहा कि किसी को भी चीन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने में चीन के लोगों की दृढ़ता, संकल्प और क्षमता को कमतर नहीं आंकना चाहिए। हांगकांग, शिनजियांग और तिब्बत से जुड़े मामले विशुद्ध रूप से चीन के आंतरिक मामले हैं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय जी-7 के प्रभुत्व वाले पश्चिमी नियमों को न तो स्वीकार करता है और न ही करेगा।
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