चिराग की चतुराई, नीतीश को रास न आई, एनडीए से अलग हुई लोजपा में कितना दम?

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पटना। बिहार विधान सभा चुनाव को लेकर हर दिन उठा-पटक देखने को मिल रहा है। शनिवार को जहां महागठबंधन से सन ऑफ मल्लाह मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी(वीआईपी) अलग हो गई, वहीं रविवार को लोक जनशक्ति पार्टी ने एनडीए को बाय-बाय कर दिया, हालांकि उसने भारतीय जनता पार्टी के प्रति अपना रवैया नरम रखा है लेकिन जनता दल यू सुप्रीमो और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमारे के खिलाफ “भाजपा तुमसे बैर नहीं, नीतीश तेरी खैर नहीं” का नारा देते हुए मोर्चाबंदी और बढ़ा दी है। लेकिन सवाल यह उठता है कि 2015 में 42 सीटों पर चुनाव लड़कर मात्र दो सीटें लानेवाली लोजपा में कितना दम है?
वैसे कई दिनों से लोजपा के एनडीए से अलग होकर चुनावी अखाड़े में दांव आजमाने की अटकलें लगाई जा रही थीं। हिंदु्स्थान पोस्ट ने अपनी खबरों में पहले ही बता दिया था कि इस बार लोजपा के चिराग एनडीए को रोशन नहीं करेंगे और वह अलग होकर अपना प्रकाश फैलाने की कोशिश करेंगे। हिंदुस्थान पोस्ट की उस खबर पर रविवार को मुहर लग गई।
लोजपा के संसदीय बोर्ड की बैठक में फैसला
लोक जनशक्ति पार्टी के संसदीय दल की बैठक में पार्टी नेताओं ने नीतीश कुमार के नेतृ्त्व में चुनाव लड़ने से साफ मना कर दिया। हालांकि इसकी चर्चा काफी पहले से ही होने लगी थी। दरअस्ल चुनाव के ऐलान होने से पहले ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान ने इसकी पटकथा लिखनी शुरू कर दी थी। इसलिए उन्होंने नीतीश कुमार को घेरना शुरू कर दिया था।
कई मुद्दों पर नीतीश के खिलाफ लिया स्टैंड
चिराग पासवान ने कई मुद्दों पर नीतीश कुमार के खिलाफ बयानबाजी कर पहले ही जता दिया था कि इस बार वो कोई बड़ा खेल करनेवाले हैं। हाल ही में एक वाकया तब हुआ, जब लोजपा ने कोरोना और बाढ़ से ग्रस्त बिहार में चुनाव कराने का पुरजोर विरोध किया। चिराग पासवान ने चुनाव आयोग को लिखी चिट्ठी में यहां तक कह दिया कि अभी चुनाव कराना आम जनता को जानबूझकर मौत के मुंह में धकेलने जैसा है। वहीं नीतीश कुमार की पार्टी बिहार में तय समय पर चुनाव कराने की पक्षधर रही। इस मुद्दे पर भाजपा ने कोई बयान नहीं दिया। पार्टी ने इसे चुनाव आयोग के विवेक पर छोड़ दिया।
नीतीश की नीतियों की आलोचना
चिराग पासवान ने कुछ महीने पहले ही नीतीश कुमार को लेकर एक बड़ा बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि बिहार के मुख्यमंत्री से मिलने का समय मांगिए तो नहीं मिलता। किसी की बात नहीं सुनी जाती है। इसके अलावा बिहार में बाढ़, कोरोना, अपराध, बेरोजगारी और कोरोना लॉकडाउन के समय श्रमिकों की वापसी के मुद्दे पर उन्होंने नीतीश कुमार को घेरा। लेकिन हर बार वे भाजपा के खिलाफ कुछ भी बोलने से बचते रहे। उनके निशाने पर सिर्फ मुख्यमंत्री और जेडीयू होती थी।
योजनाओं में भ्रष्टाचार के आरोप
अभी हाल ही में लोजपा के नेताओं ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की महत्वाकांक्षी योजना सात निश्चय पर सवाल उठाए थे। लोजपा के प्रदेश प्रवक्ता श्रवण अग्रवाल ने बिहार सरकार की सात निश्चय योजना को फेल करार दिया था। लोजपा का कहना था कि सात निश्चय को लोजपा नहीं मानती है। श्रवण अग्रवाल ने कहा कि सात निश्चय पार्ट वन में भ्रष्टाचार हुआ है और पार्ट-2 को भी हम लोग नहीं मानेंगे। बता दें कि सीएम नीतीश कुमार ने सत्ता में वापसी पर सात निश्चय पार्ट-2 शुरू करने का ऐलान किया है।
बिहार फर्स्ट-बिहारी फर्स्ट यात्रा
चिराग पासवान ने बिहार फर्स्ट-बिहारी फर्स्ट यात्रा निकाली थी। इसके जरिए वे पूरे राज्य में गए। अपनी पार्टी की सोच को लोगों तक पहुंचाया। इसे पार्टी को मजबूत करने के लिए एक महत्वपूर्ण यात्रा के तौर पर देखा गया। इस दौरान उन्होंने अपनी पार्टी की जमीनी हकीकत की तहकीकात ली और यात्रा के समापन के बाद से प्राप्त फीडबैक पर काम करते हुए 143 सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना बनाई। वैसे सच तो यह है कि चिराग पासवान के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है। उनकी पार्टी अलग से भी चुनाव लड़कर कम से कम पांच सीटों पर तो जीत दर्ज कर ही सकती है। सच तो यह है कि उनके वोट बैंक पर पहले से ही डाका डाला जा चुका है। कुछ जेडीयू को चले जाएंगे और कुछ महागठबंधन को मिलेंगे। बाकी जो बचेंगे वही लोजपा की झोली मे गिरेंगे। वैसे चिराग को यह पता है और उनकी नजर इस नहीं 2025 के चुानव पर है। वे भविष्य में मुख्यमंत्री बनने का सपना पाले हुए हैं। लेकिन तब उनका कंपिटीशन आरजेडी के तेजस्वी यादव से होगा।
नीतीश ने पहले ही कर ली है तैयारी
सियासित के चतुर खिलाड़ी नीतीश कुमार को इस बात का अहसास हो गया था और उन्होंने भी इंतजाम शुरू कर दिया था। उन्होंने इसी वजह से दो दलितों और महादलितों को लेकर दो बड़े फैसले लिए। सबसे पहले तो उन्होंने दलितों की हत्या होने पर उसके परिजनों में से एक को सरकारी नौकरी देने का ऐलान किया, वहीं अपने पुराने साथी पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को अपने साथ ले आए। इस तरह उन्होंने चिराग पासवान के दलित और महादलित वोट बैंक को तोड़ने की बड़ी चाल चलकर लोजपा को अपनी तरफ से आजाद कर दिया। उन्होंने लोजपा को अपने कोटे से सीट देने से साफ मना कर दिया और इस मसले को भाजपा के पाले में डाल दिया। उन्होंने साफ कह दिया था कि लोजपा की समस्याओं का समाधान करने का काम भाजपा का है। बिहार चुनाव के ऐलान के दिन नीतीश कुमार ने कहा था कि 2015 में लोजपा और भाजपा साथ थे तो ये उनकी जिम्मेदारी है।
चिराग का भाजपा के प्रति नरम रुख
इस पूरी पक्रिया के दौरान एक बात गौर करने वाली रही कि लोजपा और चिराग पासवान ने कभी भी भाजपा या उसके नेतृत्व के खिलाफ कुछ भी नहीं बोला।  एक-दो दिन पूर्व ही लोजपा का एक पोस्टर सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था, जिसमें लिखा था, ‘मोदी से कोई बैर नहीं, नीतीश तेरी खैर नहीं।’ इसे देखते हुए राजनीतिक हलकों में आरोप लगाया जा रहा है कि चिराग पासवान को जेडीयू और नीतीश की खिलाफत करने के लिए भाजपा से समर्थन मिल रहा है। हालांकि इस आरोप में कितनी सच्चई है, ये तो वक्त ही बताएगा।

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