वर्ष 1993 और वर्ष 1998 के विधान सभा चुनावों में कांग्रेस को मिले बहुमत से दिग्विजय सिंह, नेता से मुख्यमंत्री मटेरियल के रूप स्थापित हो गए। लेकिन 2003 के विधान सभा चुनावों में उनका चुनाव प्रबंधन का भाषण फेल हो गया और प्रदेश में राजनीतिक पैंतरेबाजी के माहिर माने जानेवाले दिग्विजय सिंह का गेम प्लान उन्हीं पर भारी पड़ी गया। इसी काल में उन्हें एक उपनाम मिला, जिसके गुण आज तक उनका पीछा कर रहे हैं।
वर्ष 2003 में विधान सभा चुनाव होने थे। कांग्रेस की कमान मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के हाथों में थी। 1993 में 320 सीटों में से कांग्रेस ने 174 सीटों पर जीत अर्जित कर सत्ता में आई थी, जो 1998 में 172 सीटों पर आ गई। इस जीत से प्रफुल्लित दिग्विजय सिंह की जीभ भी इसी काल में भटकनी शुरू हो गई थी और बिजली, पानी और सड़क के लिए तरस रहे मध्य प्रदेश में उन्होंने सत्ता प्राप्ति के लिए कुशल प्रबंधन की नई बांक देनी शुरू कर दी।
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मिल गया नया नाम
वर्ष 2003 में दिग्विजय सिंह को भारतीय जनता पार्टी से टक्कर देने के लिए मैदान में थीं उमा भारती। संन्यास आश्रम से राजनीति में प्रवेश करनेवाली संन्यासिन उमा भारती ने दिग्विजय सिंह के बयानों के बाद उन्हें एक उपनाम दे दिया ‘मिस्टर बंटाधार’। संन्यासिन उमा भारती द्वारा दिया गया यह उपनाम तो मानों दिग्विजय के राजनीतिक जीवन पर ग्रहण बनकर उभरा।
बिल्कुल गलत पकड़े दिग्गी राजा
बिजली, पानी, सड़क (बिपासा) के लिए तरस रहे मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह (दिग्गी राजा) ने प्रबंधन से चुनाव जीतने का आलाप शुरू किया था। एक सभा में उन्होंने ललकारते हुए भाजपा को कहा कि,
“आप मुझे आज जहां पा रहीं हैं, अगले 10 साल तक यहीं पाएंगी”
दूसरी सभा में बोले,
“कांग्रेस हार ही नहीं सकती, यदि हार गई तो मैं 10 वर्ष तक सत्ता से दूर रहूंगा”
ये बातें बताती हैं कि दिग्विजय सिंह कैसे सफलता में चूर होकर आगे की खाई को नहीं पहचान रहे थे। उनकी दोनों ही चुनौती उन पर ऐसी भारी पड़ी कि मतदान में न सिर्फ उनका बल्कि कांग्रेस का भी बंटाधार हो गया। स्पष्ट बहुमत से सरकार चला रही कांग्रेस मात्र 38 सीटों पर सिमट गई और उसके बाद से पिछले 18 वर्षों से सत्ता के सपने देख रही है, हालांकि बीच में कमल हटाकर कुछ समय के लिए कांग्रेस के कमलनाथ खिल गए थे, परंतु लगता है दिग्विजय सिंह के लिए तो कांग्रेस और राजनीति में मात्र विवाद और विषाद ही रह गया है।
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