Congress: वामपंथ की चाह, कांग्रेस की खतरनाक राह

बता दें कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक बार फिर जाति सर्वेक्षण और आर्थिक समीक्षा की वकालत करते हुए कहा कि इसका मकसद है यह पता लगाना कि किसके पास कितनी संपत्ति है।

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-कमलेश पांडेय

Congress: कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष (Former President of Congress) और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष (Leader of Opposition in Lok Sabha) राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने कहा है कि यदि उनकी सरकार आई तो सिर्फ जाति जनगणना (Caste Census) ही नहीं बल्कि आर्थिक सर्वेक्षण (Economic Survey) भी होगा। दरअसल, इसके जरिए वह पता लगाएंगे कि किसके पास कितनी संपत्ति है।

फिर नई राजनीति शुरू होगी। इससे साफ है कि जेएनयू के युवा वामपंथी नेताओं (Young Leftist Leaders of JNU) व कार्यकर्ताओं से भरी कांग्रेस अब उस वामपंथ की राह पर अग्रसर है, जो पूरी दुनिया में राजनीतिक तौर पर अप्रासंगिक हो चुका है।

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जाति सर्वेक्षण की वकालत
बता दें कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक बार फिर जाति सर्वेक्षण और आर्थिक समीक्षा की वकालत करते हुए कहा कि इसका मकसद है यह पता लगाना कि किसके पास कितनी संपत्ति है। उन्होंने कहा कि अगर वह सत्ता में आए तो यह भारत का पहला काम होगा। दरअसल, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में “न्याय मंच-अब इंडिया बोलेगा” में छात्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि केंद्रीय सत्ता में आने के बाद उनका पहला कदम आर्थिक सर्वेक्षण के साथ-साथ जाति जनगणना करवाना होगा।

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जाति सर्वेक्षण के पीछे का तर्क
उन्होंने कहा कि देश की 90 प्रतिशत आबादी वाले लोगों को अपनी ताकत का अंदाजा नहीं है और वे इस बात से भी अनजान हैं कि उनके पास भारत की कुल सम्पत्ति में से कितनी संपत्ति है। वे कहते हैं कि उनकी आबादी लगभग 50 प्रतिशत है लेकिन वे यह नहीं जानते कि उनके पास कितनी संपत्ति है। इसलिए हम एक जाति जनगणना करेंगे, जिससे ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) को पता चल जाएगा कि विभिन्न क्षेत्रों में उनकी कितनी भागीदारी है। इससे सच्चाई सामने आ जाएगी।” उन्होंने संकेत दिया कि इससे दलितों, अल्पसंख्यकों, आदिवासियों, गरीब सवर्णों को भी उनकी वास्तविक स्थिति का पता चल जाएगा।

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आर्थिक सर्वे की भी वकालत
वहीं, एक युवा के सवाल का जवाब देते हुए राहुल गांधी ने कहा, “आज क्या हो रहा है कि ओबीसी को मूर्ख बनाया जा रहा है और उन्हें बहुत कुछ बताया जा रहा है, लेकिन मुख्य मुद्दा यह नहीं है कि किसके पास कितनी संपत्ति है। जाति जनगणना के साथ साथ होने वाले आर्थिक सर्वेक्षण से पूरे देश को यह पता लग जाएगा कि हिंदुस्तान का धन कहां है, किसके हाथ में है, पिछड़ों के हाथ में कितना, दलितों के हाथ में कितना, अल्पसंख्यकों के हाथ में कितना, गरीब सामान्य वर्ग और महिलाओं के हाथ में कितना धन है। सबके सामने पूरा साफ हो जाएगा। उसके बाद न्यू पॉलिटिक्स शुरू होगी। उसके बाद ये लोग कहेंगे कि मेरे पचास परसेंट लोग हैं, जबकि मेरे पास 2 परसेंट धन है। इसलिए मुझे 50 परसेंट धन चाहिए। सीधी-सी बात होगी। ये हमारी सोच है, जाति जनगणना पहला कदम है। ये सिर्फ जाति जनगणना नहीं होगी बल्कि ये आर्थिक सर्वे भी होगा।

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बेहद खतरनाक और भ्रामक विचार
हालांकि, राहुल गांधी की टिप्पणी पर भाजपा के सोशल मीडिया प्रमुख अमित मालवीय ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि राहुल गांधी अपने बेहद खतरनाक और भ्रामक विचारों से देश को कहां ले जाना चाहते हैं? वहीं, राजनीतिक मामलों के जानकार बताते हैं कि अब साफ है कि मुस्लिम परस्त राजनीति करने वाले राहुल गांधी अपनी राजनीतिक जागीरदारी पुनः पाने के लिए जिस तरह से ओबीसी, दलित, आदिवासी, गरीब सवर्ण और महिलाओं को उनके हिस्से की संपत्ति मौजूदा अमीरों से लेकर देना चाहते हैं, उससे विदेशी निवेश प्रभावित होगा। धनी लोग अपनी संपत्ति विदेशों में शिफ्ट करने लगेंगे। इससे हर ओर असंतोष फैलेगा और देश में अरब देशों की तरह गृह युद्ध होगा, क्योंकि इतनी आसानी से लोग अपनी सम्पत्ति छोड़ने वाले नहीं हैं।

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सवर्णों के पास बढ़ी है शहरी सम्पत्ति
राहुल गांधी को यह पता होना चाहिए कि देश में अब ग्राम भूमि सवर्णों से ओबीसी-दलितों-अल्पसंख्यकों-आदिवासियों की ओर हस्तांतरित होती जा रही है। यह कांग्रेस की सरकारों की नीतियों और उनको हटाकर विकसित हुई समाजवादी राजनीति करने वाले दलों की नीतियों की करामात है। वहीं, शहरों की ओर शिफ्ट हो रहे सवर्णों के पास शहरी सम्पत्ति बढ़ी है, लेकिन ओबीसी-दलितों-आदिवासियों-अल्पसंख्यकों आदि ने भी ऐसी नई सम्पत्ति खूब बनाई है। इससे संपत्ति के समान बंटवारे का उनका विचार पिछले लोकसभा चुनाव 2024 की तरह ही उन पर भारी पड़ जाएगा। क्योंकि तब वह केंद्रीय सत्ता में आते आते यदि चूक गए तो उसके पीछे उनकी इन्हीं बयानबाजियों का हाथ है।

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चीनी-रूसी सांठगांठ से प्रभावित
देखा जाए तो मौजूदा वैश्विक परिस्थितियों में सरकारी नौकरियों में जातीय आरक्षण जैसे निकृष्ट विचार के बाद जनसंख्या आधारित संपत्ति के बंटवारे का विचार कांग्रेस का ऐसा जाहिल विचार है, जो भारत के विकास को पुनः अवरुद्ध कर देगा। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस रणनीतिकार चीनी-रूसी सांठगांठ से प्रभावित और सीआईए-आईएसआई के बैक डोर पॉलिसी आधारित षड्यंत्रों से अनुप्राणित हैं, जिनका मकसद है कि अमेरिका, रूस, चीन के समकक्ष स्तर तक उठ चुके मोदी युगीन भारत को उलजुलूल सियासी विवादों में फंसाकर पीछे धकेल दिया जाए। यदि इसे समझने में राहुल गांधी नादानी दिखा रहे हैं तो यह एक खतरनाक राजनीतिक ट्रेंड है, जिस ओर भाजपा भी इशारा कर चुकी है।

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परवान पर मुफ्तखोर राजनीति
वहीं, कुछ लोगों का कहना है कि जातीय जनगणना और आर्थिक सर्वेक्षण की मांग पर अड़े रहने से राहुल गांधी को लोकसभा चुनाव 2029 में बहुमत भी मिल सकता है, क्योंकि मुफ्तखोर राजनीति एक बार फिर से परवान चढ़ती जा रही है। जब हजार-दो हजार की गारंटी देने वाले दलों पर मतदाता फिदा हो सकते हैं तो यहां पर तो राहुल गांधी संपत्ति ही देने-दिलाने के कोरे आश्वासन दे रहे हैं। वैसे भी फ्री उपहार की राजनीति आप, कांग्रेस होते हुए यह भाजपा व अन्य दलों तक पहुंच चुकी है।

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सियासी भूल-पर-भूल
हालांकि, अब यह स्पष्ट होता जा रहा है कि कभी संविधान, कभी जातीय जनगणना और कभी आर्थिक सर्वेक्षण के राग अलाप कर राहुल गांधी सियासी भूल-पर-भूल करते जा रहे हैं। दरअसल, भाजपा और मोदी को कमजोर करने की जल्दबाजी में वह जिस तरह से क्षेत्रीय दलों के मुद्दों पर सियासी बॉलिंग करने की भूल कर रहे हैं, इससे क्षेत्रीय दल पुनः मजबूत होंगे, जो उनकी राष्ट्रीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय छवि को मटियामेट कर देंगे। क्योंकि उन्हें यह पता होना चाहिए कि ओबीसी-दलित नेताओं को कमजोर कांग्रेस पसंद है, मजबूत नहीं। इंडिया गठबंधन को गत लोकसभा चुनाव 2024 में मिली आंशिक सफलता के बाद नेतृत्व के सवाल पर मचा घमासान उनकी आंख खोलने को काफी है।

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कांग्रेस नेताओं के पास थी अधिक संपत्ति
इसके अलावा, राहुल गांधी को संपत्ति के बारे में अपने विचार भी स्पष्ट कर देने चाहिए क्योंकि संपत्ति दो तरह की होती है- चल सम्पत्ति और अचल संपत्ति। देशी संपत्ति और विदेशी सम्पत्ति। व्यक्तिगत संपत्ति और संस्थागत सम्पत्ति। राष्ट्रीय संपत्ति और निजी संपत्ति। नामी सम्पत्ति और बेनामी सम्पत्ति। भूमि संपत्ति और मौद्रिक संपत्ति। मकान, दुकान, कोठी, फैक्ट्री, स्वर्णाभूषण आदि। विभिन्न प्रकार के वाहन, मशीन, गैजेट्स आदि। आजकल राजनीतिक दल, कम्पनी, एनजीओ, ट्रस्ट, फर्म, स्कूल, कॉलेज, विश्विद्यालय, रेस्टोरेंट, होटल आदि भी बहुत बड़ी संपत्ति बन चुकी हैं। चर्चा है कि ये सम्पत्ति पहले कांग्रेसी नेताओं व उसके समर्थकों के पास ज्यादा थी, जिसे बचाने के लिए लोग भाजपाई या समाजवादी बन चुके हैं। कुछ लोग तो दलितवादी या आदिवासी दलों से भी जुड़ चुके हैं। इसलिए राहुल को बताना चाहिए कि वो किस-किस चीज की गणना करेंगे। सबसे बड़ी बात शिक्षा और हुनर जो मानव संसाधन है, उससे ही उपर्युक्त सम्पत्ति खड़ी होती है, उसका बंटवारा कैसे करेंगे।

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बयान के चलते सुर्खियों में राहुल गांधी
दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी, जो अक्सर अपने बयान के चलते सुर्खियों में रहते हैं, उनका एक बयान ही अब उन पर भारी पड़ रहा है। क्योंकि यूपी के बरेली जिले की एक अदालत ने उन्हें आर्थिक सर्वेक्षण संबंधी बयान को लेकर नोटिस जारी किया है। जिसके मुताल्लिक राहुल गांधी को सात जनवरी 2025 को कोर्ट में पेश होने के लिए कहा है। अधिवक्ता वीरेन्द्र पाल गुप्ता ने बताया कि बरेली जिला एवं सत्र न्यायालय ने बयान को लेकर गत शनिवार को गांधी को नोटिस जारी किया और सुनवाई के लिए सात जनवरी 2025 की तारीख तय की है।

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संपत्ति का बंटवारा
बता दें कि बरेली के सुभाषनगर के निवासी और अखिल भारतीय हिंदू महासंघ के मंडल अध्यक्ष पंकज पाठक ने अधिवक्ताओं गुप्ता और अनिल द्विवेदी के जरिए राहुल गांधी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराने के लिए सांसद-विधायक अदालत (एमपीएमएलए कोर्ट) में याचिका दायर की थी, जिसे अदालत ने 27 अगस्त को निरस्त कर दिया था। इस आदेश को चुनौती देते हुए सत्र अदालत में पुनर्विचार याचिका दायर की गई। क्योंकि राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव के दौरान एक सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि अगर इंडी गठबंधन की सरकार आई तो हम आर्थिक सर्वेक्षण कराएंगे। इस सर्वे के आधार पर संपत्ति का बंटवारा होगा। जिसकी भागीदारी अधिक होगी अगर उसकी संपत्ति कम है को कम आबादी जिसकी संपत्ति ज्यादा है, उससे लेकर कम संपत्ति वालों को दी जाएगी। इसलिए राहुल के इस बयान का काफी विरोध हो रहा था।

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इंदिरा गांधी से शुरुआत
उल्लेखनीय है कि इसके पहले कांग्रेसी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में ही सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकार की श्रेणी से हटा दिया गया था, जिसकी तब खूब आलोचना हुई थी। वैसे आपातकाल के दौरान भी वामपंथियों ने कांग्रेस का साथ दिया था। हल पटक दो खेत हमारा- वाले नारे और सिक्किमी कानून को भी कांग्रेस का समर्थन हासिल था, जो रूस से उसकी दोस्ती का प्रतिफल था। उसके और उसके समाजवादी मित्रों के कार्यकाल में नक्सलवाद, अलगाववाद और आतंकवाद भी खूब फला-फूला। इसलिए कांग्रेस को आत्मनिरीक्षण करना चाहिए, अन्यथा वह वामपंथियों की तरह कांग्रेस मुक्त भारत के सपने को पूरा करने में खुद ही अपना बड़ा योगदान देगी।

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