अखिल भारतीय कैडर (आईएएस, आईपीएस और आईएफओएस) सेवा नियमों में प्रस्तावित बदलावों का समर्थन करते हुए सोमवार को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव अपूर्व चंद्र ने कहा कि केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति की संख्या बढ़नी चाहिए। वर्तमान समय में मात्र 18 प्रतिशत अधिकारी ही केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं जबकि, यह संख्या 40 प्रतिशत होनी चाहिए। इसलिए केन्द्र सरकार के कामकाज को सुचारु रूप से चलाने के लिए ज्यादा से ज्यादा संख्या में केन्द्रीय प्रतिनियुक्तियां होनी चाहिए। इसके उलट राज्य सरकार इसे अपने अधिकारों पर हमला मान रही हैं। इस प्रस्ताव के पास होने पर भारतीय प्रशासनिक सेवा (कैडर) या अखिल भारतीय कैडर के अधिकारियों का चाबी पूरी तरह से केंद्र सरकार के हाथ आ जाएगी।
उल्लेखनीय है कि राज्य सरकारें पर्याप्त संख्या में आईएएस अधिकारियों को नहीं भेज रहे हैं, जिससे केंद्र सरकार का कामकाज प्रभावित हो रहा है। डीओपीटी के अनुसार सीडीआर पर आईएएस अधिकारियों की संख्या 2011 में 309 से घटकर 223 हो गई है। उप सचिव एवं निदेशक स्तर पर आईएएस अधिकारियों की संख्या 2014 में 621 से बढ़कर 2021 में 1130 हो जाने के बावजूद केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर ऐसे अधिकारियों की संख्या 117 से घटकर 114 हो गई है।
क्यों आया चर्चा में?
केंद्र सरकार के अधीन कार्मिक एवं प्रशिक्षण (डीओपीटी) ने राज्य सरकारों को लिखा है कि, केंद्र सरकार भारतीय प्रशासनिक सेवा (कैडर) या अखिल भारतीय कैडर के अधिकारियों के नियम-1954 के अंतर्गत नियम 6 जो अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति से संबंधित है, में संशोधन का प्रस्ताव करती है।
इस प्रस्ताव के पास हो जाने पर भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस), भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) और भारतीय वन सेवा (आईएफओएस) के अधिकारियों की केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए राज्य सरकार की अनुमति लेने की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी।
विपक्षी दलों की राज्य सरकारों का विरोध
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार के इस निर्णय के विरोध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा (कैडर) के अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति में राज्य सरकारों की भूमिका समाप्त करने के प्रस्ताव को वापस लेने की मांग की है। पश्चिम बंगाल के अलावा केरल और तमिलनाडु की सरकार भी विरोध कर रही हैं।
राज्य सरकार का डर
राज्य सरकारों को भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति के अधिकार छिनने से एर बड़ा डर सता रहा है। वह है कि, इसके कारण केंद्र सरकार इन अधिकारियों पर सीधा नियंत्रण प्राप्त कर लेगा। ऐसी स्थिति में राज्य सरकार के अधीन कार्य करनेवाले अधिकारियों पर नियंत्रण केंद्र सरकार का ही चलेगा। यानि, सत्ता में न होने के बाद भी केंद्र सरकार इन अधिकारियों के बल पर राज्य में शासन करेगी।