-रमेश सर्राफ धमोरा
Criminalization of politics: हमारे देश के राजनेताओं में दिन-प्रतिदिन नैतिकता कम होती जा रही है। कई बड़े नेता आए दिन विवादास्पद बयान देखकर चर्चाओं में बने रहते हैं। वहीं, बहुत से निर्वाचित विधायकों, सांसदों, मंत्रियों सहित अन्य जनप्रतिनिधियों पर आपराधिक मामले दर्ज हो रहे हैं। जिससे राजनीति के क्षेत्र में काम करने वालों की छवि खराब हो रही है।
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राजनीति दागदार
देश की राजनीति में आज अपराध का इतना घालमेल हो गया है कि पता ही नहीं चलता कि कौन-सा जनप्रतिनिधि अपराधी है और किसकी छवि स्वच्छ है। अपराधी प्रवृत्ति के लोगों के नेता बनने से जहां राजनीति दागदार हुई है। वहीं, नेताओं की जनता की दूरी भी बढ़ने लगी है। मौजूदा समय में राजनीति, व्यवसाय बन चुकी है। राजनीति में वही लोग सफल होते हैं, जो या तो बड़े नेताओं के परिवार से हैं या फिर बहुत पैसे वाले हैं। राजनीति के क्षेत्र में अब सेवा, संगठन, वफादार कार्यकर्ताओं का कोई महत्व नहीं रह गया है। राजनीति पूरी तरह पैसों की चकाचौंध में लिप्त हो गई है।
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पैसे के बल पर राजनीति
एक समय था, जब धरातल पर काम करने वाला पार्टी कार्यकर्ता आगे चलकर जनप्रतिनिधि बनता था। जमीन से उठकर आगे आने वाला नेता आम जनता से जुड़ा रहता था और वह जनता के सुख-दुख से वाकिफ होता था। इसलिए वह आमजन के हित में काम करता था। मगर अब लोग पैसे के बल पर पैराशूट से उतरकर राजनीति करने लगे हैं। पैसे के बल पर चुनाव जीत जाते हैं। इसलिए उन्हें आमजन की समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं रहता है। ऐसे नेता पांचसितारा संस्कृति के वाहक होते हैं। ऐसे नेता राजनीति में आने के लिए पहले खूब पैसा खर्च करते हैं और जब किसी पद पर पहुंच जाते हैं तो जमकर भ्रष्टाचार कर पैसा कमाते हैं। ऐसे लोगों के कारण ही आज राजनीति समाज सेवा की बजाय व्यवसाय बन गई है।
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कृष्ण कुमार बिड़ला को गिल ने हराया
1971 के लोकसभा चुनाव में झुंझुनू सीट पर देश के सबसे बड़े औद्योगिक घराने के कृष्ण कुमार बिड़ला को हराने वाले शिवनाथ सिंह गिल को मैंने 1998 से 2003 में विधायक के रूप में देखा है। वह अपने क्षेत्र से जयपुर जाते या अपने घर से विधानसभा जाते हमेशा सरकारी बस का ही उपयोग करते थे। कभी निजी गाड़ियों से नहीं घूमते थे। इसी के चलते उन्होंने राजनीति में 50 साल लंबी पारी खेली थी। वह ईमानदार थे इसीलिए ईमानदारी से रहते थे।
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कार्यकर्ता के पास भी लाखों की गाड़ी
आज हम देखते हैं कि राजनीतिक दलों के छोटे-छोटे कार्यकर्ता भी कई लाख रुपये की महंगी गाड़ियों में घूमते हैं। पार्टी का कोई नेता उनसे यह नहीं पूछता है कि इतनी महंगी गाड़ियां खरीदने के लिए पैसे कहां से आते हैं। सबको पता है कि राजनीति में आज छुटभैया नेता भी सत्ता की दलाली में पैसा कमा रहे हैं। दलाली के पैसों में बड़े नेताओं का भी हिस्सा होता है। इसीलिए उनकी तरफ कोई अंगुली नहीं उठाता है।
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45 प्रतिशत विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज
चुनाव सुधार पर काम करने वाले गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की रिपोर्ट में सामने आया है कि देश के 45 प्रतिशत विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। इस संगठन ने देश के 28 राज्यों और विधानसभा वाले तीन केंद्र शासित प्रदेशों के कुल 4123 विधायकों में से 4092 के चुनावी हलफनामे का विश्लेषण किया है। जिसमें आंध्र प्रदेश के सबसे ज्यादा 174 में से 138 यानी 79 प्रतिशत विधायकों ने, जबकि सिक्किम में सबसे कम 32 में से सिर्फ एक विधायक 3 प्रतिशत ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए हैं। तेलुगु देशम पार्टी के सबसे ज्यादा 134 विधायकों में से 115 यानी 86 प्रतिशत पर आपराधिक मामले दर्ज हैं।
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54 विधायकों पर हत्या के आरोप
उक्त रिपोर्ट से पता चला कि 1861 विधायकों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज होने की घोषणा की है। इसमें 1205 पर हत्या, हत्या की कोशिश, अपहरण और महिलाओं के खिलाफ अपराध जैसे गंभीर आरोप हैं। रिपोर्ट के अनुसार 54 विधायकों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत हत्या के आरोप हैं। वहीं, 226 पर धारा 307 और भारतीय न्याय संहिता की धारा 109 के तहत हत्या की कोशिश के आरोप हैं। इसके अलावा 127 विधायकों पर महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामले दर्ज हैं। इनमें 13 पर भारतीय न्याय संहिता की धारा 376 और 376 (2)(द) के तहत बलात्कार का आरोप है। धारा 376 (2)(द) एक ही पीड़ित के बार-बार यौन उत्पीड़न से संबंधित है।
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46 प्रतिशत सांसदों पर आपराधिक मामले दर्ज
एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की रिपोर्ट के अनुसार 543 लोकसभा सदस्यों में से 251 (46 प्रतिशत) के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। उनमें से 27 को दोषी ठहराया गया है। रिपोर्ट के अनुसार लोकसभा में चुने जाने वाले आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे उम्मीदवारों की यह सबसे बड़ी संख्या है। कुल 233 सांसदों (43 प्रतिशत) ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए थे। जबकि 2014 में 185 (34 प्रतिशत), 2009 में 162 (30 प्रतिशत) और 2004 में 125 (23 प्रतिशत) सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। 2024 में लोकसभा के लिये चुने गये 251 उम्मीदवारों में से 170 (31 प्रतिशत) पर बलात्कार, हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण और महिलाओं के खिलाफ अपराध सहित गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। विश्लेषण से पता चला कि यह 2019 में 159 (29 प्रतिशत) सांसदों, 2014 में 112 (21 प्रतिशत) सांसदों और 2009 में 76 (14 प्रतिशत) सांसदों की तुलना में भी वृद्धि है।
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भाजपा के 39 प्रतिशत विधायकों पर मामले दर्ज
एडीआर के अनुसार 18वीं लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी भाजपा के 240 विजयी उम्मीदवारों में से 94 (39 प्रतिशत) ने आपराधिक मामले घोषित किए हैं। कांग्रेस के 99 विजयी उम्मीदवारों में से 49 (49 प्रतिशत) ने आपराधिक मामले घोषित किए हैं और समाजवादी पार्टी के 37 उम्मीदवारों में से 21 (45 प्रतिशत) पर आपराधिक आरोप हैं। विश्लेषण में पाया गया कि 63 (26 प्रतिशत) भाजपा उम्मीदवार, 32 (32 प्रतिशत) कांग्रेस उम्मीदवार और 17 (46 प्रतिशत) समाजवादी पार्टी उम्मीदवारों ने गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए हैं। इसमें कहा गया है कि सात (24 प्रतिशत) टीएमसी उम्मीदवार, छह (27 प्रतिशत) डीएमके उम्मीदवार, पांच (31 प्रतिशत) टीडीपी उम्मीदवार और चार (57 प्रतिशत) शिवसेना उम्मीदवार गंभीर आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं।
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प्रदेशों की स्थिति
- केरल के 20 में से 19 (95 प्रतिशत) सांसदों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें से 11 गंभीर अपराधों से जुड़े हैं।
- तेलंगाना के 17 में से 14 (82 प्रतिशत), ओडिशा के 21 में से 16 (76 प्रतिशत), झारखंड के 14 में से 10 (71 प्रतिशत) और तमिलनाडु के 39 में से 26 (67 प्रतिशत) सांसदों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे लंबित हैं।
- उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, बिहार, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में लगभग 50 प्रतिशत सांसदों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं।
- हरियाणा 10 और छत्तीसगढ़ 11 सांसद में केवल एक-एक सांसद पर आपराधिक मामले दर्ज हैं।
पंजाब के 13 में से 2, असम के 14 में से 3, दिल्ली के 7 में से 3, राजस्थान के 25 में से 4, गुजरात के 25 में से 5 और मध्य प्रदेश के 29 में से 9 सांसदों पर आपराधिक मामले लंबित हैं।
कुल 4,732 आपराधिक मामले लंबित
एक जनवरी 2025 तक वर्तमान या पूर्व विधायकों के खिलाफ कुल 4,732 आपराधिक मामले लंबित थे। इनमें सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में 1,171 मामले दर्ज हैं। ओडिशा (457), बिहार (448), महाराष्ट्र (442), मध्य प्रदेश (326), केरल (315), तेलंगाना (313), कर्नाटक (255), तमिलनाडु (220), झारखंड (133) और दिल्ली (124) मुकदमे लंबित हैं।
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राजनीति में अपराधियों की संख्या में वृद्धि
उपरोक्त आंकड़ों को देखने से लगता है कि हमारे देश की राजनीति में अपराधियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। यदि समय रहते इस पर लगाम नहीं लगाई गई तो यह देश की राजनीतिक व्यवस्था के लिए नासूर बन जाएगी। एक समय ऐसा होगा जब राजनीति का पूरी तरह अपराधीकरण हो जाएगा और स्वच्छ छवि के लोग राजनीति से दूर होते चले जाएंगे। सरकार को भी इस दिशा में कड़े कदम उठाने होंगे तभी राजनीति में बढ़ती अपराधियों की संख्या पर लगाम लग पाएगी।
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