Delhi Assembly Polls: महिलाएं समझ रही हैं खेल, केजरीवाल की चाल फेल ?

श्रमबल को तरजीह देने वाली आधी आबादी भी मुफ्त की चुनावी रेवड़ियों पर ध्यान देंगी, इसमें काफी संशय है। इसी कारण दिल्ली विधानसभा चुनाव के प्रचार-प्रसार के दौरान महिला वोटरों की उदासीनता दिखने लगी है।

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-नरेश वत्स

Delhi Assembly Polls: अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने अपने चुनावी घोषणापत्र (election manifesto) में एक बार फिर फ्रीबीज की झड़ी (flurry of freebies) लगाई है। अपनी मुहिम में वे कितने सफल होंगे, यह आने वाला समय तय करेगा। इतना जरूर है कि मतदाता मुफ्त की रेवड़ी से ऊबने लगा हैं।

श्रमबल को तरजीह देने वाली आधी आबादी भी मुफ्त की चुनावी रेवड़ियों पर ध्यान देंगी, इसमें काफी संशय है। इसी कारण दिल्ली विधानसभा चुनाव (Delhi Assembly elections) के प्रचार-प्रसार के दौरान महिला वोटरों (women voters) की उदासीनता दिखने लगी है।

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मैदान में 96 महिला उम्मीदवार
5 फरवरी को होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव में उतरे कुल 699 उम्मीदवारों में 96 महिला उम्मीदवार हैं। पर, वैसा उत्साह नहीं दिखता, जितना पिछले चुनावों में दिखा था। जबकि, प्रमुख दल आम आदमी पार्टी (आआपा), भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)और कांग्रेस तीनों महिला वोटरों को रिझाने में मुफ्त के वादों की झड़ी लगाए हुए हैं। कोई 2100 रुपए देने का वादा कर रहा है तो 2500 और 3000 तक। फ्री बस सेवा सभी के एजेंडे में है। सवाल उठता है कि इतने लुभावने वादों के बाद भी महिला वोटरों में उत्साह क्यों नहीं है? इसे लेकर चुनाव आयोग भी चिंतित है। चुनावी समर में लगातार तेजी से गिरता मतदान प्रतिशत चुनावी प्रक्रिया के अलावा लोकतंत्र के लिए भी घातक है। जबकि, बीते 2019 और 2024 के लोकसभा चुनाव में महिलाओं का वोटिंग स्कोर पुरुषों के मुकाबले अधिक था।

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मुफ्त की रेवड़ियों से किनारा
शायद, महिलाएं भी समझ चुकी हैं कि फ्री के नाम पर राजनीतिक दल उन्हें वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल करने लगे हैं। महिलाएं बुनियादी मुद्दों की गंभीरता को अच्छी तरह से समझती हैं। राज्य तरक्की करे, उसमें उनकी भागीदारी हो, उसे ध्यान में रखकर ज्यादातर महिलाओं ने मुफ्त की रेवड़ियों से किनारा करना शुरू कर दिया है। इस संबंध में ताजा और बेहतरीन उदाहरण सामने है।

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बिहार बेहतर उदाहरण
बिहार में जब नीतीश कुमार ने शराबबंदी का ऐलान करके चुनाव लड़ा तो महिलाओं ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया और सत्ता में उनकी शानदार वापसी हुई। देश और सामाजिक उद्धार वाले मुद्दों के प्रति महिलाएं कितनी सजग हैं, इससे बेहतर उदाहरण दूसरा नहीं हो सकता। केंद्रीय स्तर पर जबसे आत्मनिर्भरता की अलख चहुंओर जगी है, महिलाएं भी श्रमबल को ज्यादा तवज्जो देनी लगी हैं। ये अच्छी बात है, इससे राजनीतिक दल अपनी हरकतों से बाज आएंगे। शायद यही कारण है दिल्ली में महिलाओं की चुनाव के प्रति उदासीनता है। क्योंकि, सभी दल मुद्दों-समस्याओं को छोड़ कर फ्री की सेल लगाकर बैठे हैं।

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महिला मतदाता दिल्ली सरकार से नाराज
महिला मतदाताओं की उदासीनता दिल्ली चुनाव इस बार नई तस्वीर पेश करेगी। मौजूदा सरकार की शराब पॉलिसी को लेकर महिलाएं खासी नाराज हैं। सरकार की नई शराब नीति में ‘एक पर एक फ्री बोतल’ पॉलिसी ने कइयों के घर बर्बाद कर दिए। मौजूदा सरकार अगर सत्ता से बेदखल होती है तो शराब ऑफर उसका मुख्य कारण होगा। शिक्षित व कामकाजी वर्ग मतदान से लगातार दूरियां बनाने लगा है। मतदान के दिन वह छुट्टियां मनाते हैं, बमुश्किल ही घरों से उस दिन बाहर निकलते हैं।

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महिलाओं से जुड़ी योजनाओं की भरमार
दिल्ली में इस बार जितने नए मतदाता जुड़े हैं, उनमें पुरुषों के मुकाबले महिला मतदाता काफी पीछे हैं। ये स्थिति तब है, जब दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने की कोशिश कर रहे तीनों प्रमुख दलों की घोषणाओं में महिलाओं से जुड़ी योजनाओं की भरमार है। आआपा, भाजपा व कांग्रेस तीनों दल आधी आबादी को अपने पाले में करने की भरसक कोशिश में हैं। मुख्य निर्वाचन अधिकारी द्वारा जारी अंतिम मतदाता सूची पर अगर गौर करें तो पुरुष मतदाताओं से महिलाओं की संख्या काफी कम है। इस बार दिल्ली में कुल 1,55,24,858 मतदाता अपने मतों का 5 फरवरी को इस्तेमाल करेंगे, जिनमें पुरुषों की संख्या 85,49,645 और महिलाओं की संख्या 71,73,952 है। बीच में अंतर अच्छा खासा है।

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मतदान बढ़ाने का प्रयास
हालांकि, दिल्ली चुनाव आयोग ने मतदान बढ़ाने को लेकर नायाब तरीका अपनाया है। आयोग ने दिल्ली के तकरीबन सभी स्कूलों को आदेशित किया है कि वह छात्रों के जरिए उनके माता-पिता व अन्य परिवारजनों से मतदान को लेकर लिखित में संकल्पित करवाएं। इसके लिए बाकायदा छात्रों से एक संकल्प पत्र दिया गया है जिस पर उनके अभिभावक वोट देने की कसम को लिखित हस्ताक्षर के साथ स्कूलों में जमा करवा रहे हैं।

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पूर्वांचली मतदाताओं पर नजर
बहरहाल, दिल्ली चुनाव में दो धड़े ऐसे हैं, जो सियासी दलों की नैया इस बार पार लगा सकते हैं। अव्वल, महिला वोटर और दूसरे पूर्वांचल से जुड़े मतदाता वर्ग। दिल्ली में प्रत्येक 10 वोटरों में तीसरा वोटर पूर्वांचली है। अगर इन दोनों वर्गों की उदासनीता चुनाव पर हावी रही तो वोटिंग प्रतिशत और नीचे गिर जाएगा। पिछले दिनों कुछ राज्यों में विधानसभा सीटों पर उप-चुनाव हुए जिनमें दिल्ली से सटी गाजियाबाद सीट पर मात्र 33 फीसदी मतदान हुआ, जिसे देखकर आयोग के ही नहीं, नेताओं के कान खड़े हो गए। जबकि, गाजियाबाद सीट पर महिला वोटरों की संख्या बहुत अच्छी है।

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मुफ्त की रेवड़ियों से परहेज
सवाल ये भी उठने लगा है कि क्या महिलाएं मुफ्त की रेवड़ियां से परहेज करने लगी हैं। अगर ऐसा है तो सुखद तस्वीर कही जाएगी। निश्चित रूप से देश की शिक्षित महिलाएं अब अपने श्रमबल को तरजीह देने लगी हैं। उन्हें देखकर ग्रामीण आबादी भी सजग हुई है। वोटिंग प्रक्रिया में महिलाओं की चुप्पी क्या कहती है, उसे समझना चुनाव आयोग और राजनेताओं के लिए अब जरूरी है।

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