-नरेश वत्स
Delhi Politics: दिल्ली (Delhi) में पार्टी की करारी शिकस्त के साथ-साथ खुद भी चुनाव हारने के बाद आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) के संयोजक अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) अब पंजाब (Punjab) की राजनीति में अपनी सक्रियता तेज करते हुए अपनी सरकार बचाने में जुट गए हैं।
इसका संकेत इस बात से मिलता है कि दिल्ली की सत्ता से बाहर होने के महज तीन दिन बाद ही पंजाब के विधायकों की बैठक बुलाने को लेकर सियासी गलियारों में चर्चा तेज हो गई है। दिल्ली में हार के बाद पंजाब के विधायकों की टूट की आशंका से अरविंद केजरीवाल की परेशानी और बढ़ती दिख रही है।
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कांग्रेस करेगी खेला?
आम आदमी पार्टी के 35 विधायकों के कांग्रेस में जाने की चर्चाएं तेज हो गई हैं । दिल्ली के बाद पंजाब में भी आम आदमी पार्टी पर संकट मंडराने लगे हैं। केजरीवाल ने भाजपा और कांग्रेस से एक साथ दुश्मनी मोल ली है। राजनीतिक गलियारों में यह सवाल पूछा जा रहा है कि पंजाब में सत्ता को लेकर आम आदमी पार्टी भला कब तक खैर मनाएगी? अरविंद केजरीवाल का दिल्ली मॉडल फेल हो गया है तो किसी और की बात क्या मायने रखती है। भाजपा दिल्ली के बाद पंजाब में भी अरविंद केजरीवाल को हटाना चाहती है।
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भाजपा पहुंचाएगी कांग्रेस को लाभ
कांग्रेस भी आम आदमी पार्टी का पंजाब से पूरी तरह सफाया चाहती है। कांग्रेस और भाजपा भले ही राजनीति के दो ध्रुव पर खड़े नजर आते हैं। लेकिन केजरीवाल के मामले में दोनों ने एक दूसरे को भरपूर लाभ पहुंचाया है।
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कांग्रेस लेगी केजरीवाल से बदला
कांग्रेस दिल्ली विधानसभा चुनाव में जीरो पर सिमट गई है । लेकिन पंजाब में कांग्रेस एक प्रमुख विपक्षी दल है । कांग्रेस ने पंजाब में भगवंत मान सरकार पर हमले तेज कर दिए हैं । कांग्रेस का मानना है कि जब तक आम आदमी पार्टी को पंजाब की सत्ता से बाहर करने का ये सही समय है चूंकि आम आदमी पार्टी ने ही पंजाब में कांग्रेस से सत्ता छीनी है। लेकिन पंजाब में भी कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी समस्या आपसी गुटबाजी है। पार्टी में हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पार्टी में गुटबाजी लगातार बढ़ती जा रही है । राहुल गांधी के पास इस गुटबाजी को रोकने का कोई भी समाधान नहीं है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि देश के सभी राज्यों से कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई है । अब कांग्रेस को आम आदमी पार्टी के कमजोर होने के बाद पंजाब में अपनी सम्भावनाएं नजर आने लगी हैं ।
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भाजपा का वेट एंड वॉच
पंजाब में भाजपा अपने आपको अकेले अपने दम पर खड़ा कर रही है। पंजाब में भाजपा अपने पुराने सहयोगी शिरोमणी अकाली दल के भरोसे राजनीति करती आई है । लेकिन किसान आंदोलन के दौरान कृषि कानून के मुद्दे पर शिरोमणि अकाली दल ने एनडीए का साथ छोड़ दिया था । तब अकाली दल की हरसिमरत कौर केंद्र में मंत्री हुआ करती थीं । इसके बाद भाजपा ने पंजाब में अकेले चलने का फैसला लिया और पंजाब विधानसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस के बागी कैप्टन अमरिंदर सिंह को भाजपा में शामिल किया ।लेकिन पार्टी को उसका कोई फायदा नहीं मिला ।
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भाजपा के सामने विकल्प
पंजाब में भाजपा का कोई मजबूत आधार नहीं है ।इसलिए वहां भाजपा को भी अरविंद केजरीवाल की तरह एक भगवंत मान की सख्त जरूरत है । ये मानकर चलना चाहिए मौका मिलने पर भाजपा पंजाब में सता में आने के लिए कोई प्रयोग कर सकती है । पहला ये कि आम आदमी पार्टी में टूट हो और खुद भगवंत मान भाजपा की बात मान लें या आम आदमी पार्टी के भीतर से कोई सिंधिया, हिमंता या शिंदे बनकर भाजपा के साथ आ जाए।
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अब पंजाब में सक्रिय स्वाति मालीवाल
आम आदमी पार्टी की राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल ने आप पंजाब में आम आदमी पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। अपने एक्स हैंडल पर स्वाति मालीवाल ने एक वीडियो जारी करके कहा कि यह पंजाब के जीरकपुर का वीडियो है । इस वीडियों में खुलेआम डी सिल्टिंग के नाम पर चोरी हो रही है । उन्होंने सवाल किया कि अरविंद केजरीवाल ने कहा था मैं रेत की चोरी रोककर 20 हजार करोड़ रुपए बचाऊंगा। अब पंजाब में ऐसा हाल है कि कर्मचारियों को सैलरी देने तक के पैसे नहीं है । वे 20 हजार करोड़ रुपए कहां गए ?
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भाजपा या कांग्रेस को लाभ?
दरअसल पंजाब की राजनीति अलग है। पंजाब एक ऐसा राज्य है, जिसे समझना बहुत मुश्किल है । भाजपा दिल्ली जैसे परिणाम पंजाब में नहीं दोहरा सकती, क्योंकि पंजाब की समस्याएं और लोग बहुत अलग हैं। जहां तक भाजपा की पंजाब में बात है, तो पार्टी जब तक खेती के मुद्दों को संबोधित नहीं करती है, तब तक वहां भाजपा के लिए कोई प्लेटफार्म तैयार करना बहुत मुश्किल होगा । कांग्रेस की जो रणनीति दिल्ली के लिए थी, वही पंजाब के लिए भी है। आम आदमी पार्टी का नुकसान साफ तौर पर देखा जा सकता है , लेकिन इसका लाभ कांग्रेस को मिलने की संभावना अधिक है।
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अब बिहार में महासंग्राम
दिल्ली में भाजपा की जीत हरियाणा और महाराष्ट्र में लगातार दो चुनाव में जीत के बाद आई है । लोकसभा चुनाव में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद भाजपा की जीत की हैट्रिक ने स्थिति को बदल दिया है। दिल्ली की जीत से उत्साहित भाजपा ने बिहार में 243 विधानसभा सीटों में से 225 सीटे जीतने का लक्ष्य रखा है। यहां इस साल के आखिर में चुनाव होने हैं ।बिहार में पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने महागठबंधन के हिस्से के रूप में लड़ी गई 70 सीटों में से केवल 19 सीटें जीती थीं । दूसरी ओर राष्ट्रीय जनता दल ने जिन 144 सीटों पर चुनाव लड़ा, उनमें से 80 सीटें हासिल की और राज्य में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी । लेकिन बिहार में भाजपा मजबूत स्थिति में दिखाई दे रही है ।
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