Court: महिलाओं और बच्चों के खिलाफ हिंसा की हालिया घटनाओं, जिसके बाद सार्वजनिक आक्रोश, आरोपियों को तत्काल फांसी की सजा देने की बढ़ती मांग ने अदालतों से जनता की अपेक्षाओं को बढ़ा दिया है। कई लोगों ने लंबित अदालती कार्यवाही में न्याय में देरी का अनुभव किया है। इसलिए अदालतों का कामकाज दिन के दो सत्र यानी दो पालियों में संचालित करने के विकल्प पर विचार करना जरूरी है, यह राय राज्य विधान परिषद की उपाध्यक्ष डॉ. नीलम गोरे ने पत्रकारों से बातचीत में व्यक्त की.
पीड़ितों को मिलेगा न्याय
वर्तमान समय में विभिन्न सत्र, सिविल कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक लाखों मामले लंबित हैं और 75 प्रतिशत से अधिक लोग आरोप सिद्ध नहीं होने के बावजूद जमानत के इंतजार में राज्य की विभिन्न जेलों में बंद हैं। इसी तरह, महिलाओं के खिलाफ हिंसा के अपराध से जुड़े कई मामले अदालती देरी के कारण लंबित रहते हैं। गोरे ने राय व्यक्त की कि ऐसे मामलों का जल्द से जल्द निपटारा किया जाए तो महिलाओं के साथ-साथ पीड़ित बच्चों के माता-पिता को भी न्याय मिलेगा।
सरकार को कराना चाहिए इंफ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध
डॉ. नीलम गोरे ने आगे कहा कि राज्य सरकार को न्यालालाय को बुनियादी ढांचा भी उपलब्ध कराना चाहिए ताकि अदालत में लंबित मामलों का त्वरित तरीके से निपटारा किया जा सके। डॉ गोर्हे ने मंत्रालय और विधानमंडल संवाददाता संघ का दौरा करने के बाद मंत्रालय में पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत की।
डॉ. गोरे ने बताते हुए कहा, हमने व्यक्तिगत रूप से कल्याण, राजगुरु नगर, लोनावला के संबंधित पुलिस अधिकारियों से संपर्क किया है और उन्हें निर्देश दिया है कि वे आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने का प्रयास करें। डॉ. गोर्हे ने कहा कि उन्होंने प्रभावित परिवारों से भी संपर्क किया है और उन्हें सहायता प्रदान की है।
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