नेशनल हेराल्ड प्रकरण में कार्रवाई करते हुए प्रवर्तन निदेशालय ने यंग इंडिया के कार्यालय को ताला बंद कर दिया है। यह संस्थान गांधी परिवार के स्वामित्व वाली संस्था है। इस कार्रवाई के साथ ही साथ कांग्रेस मुख्यालय की भी चौकसी बढ़ा दी गई है। इसके पहले यंग इंडिया के कार्यालय पर छापे के समय कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने जमकर हो हल्ला किया था
मंगलवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने नेशनल हेराल्ड से संबंधित 12 स्थानों पर छापे मारे थे। जिसमें दिल्ली स्थित मुख्य कार्यालय समेत अन्य स्थानों का समावेश है। इसके एक दिन बाद ईडी ने यंग इंडिया जो नेशनल हेराल्ड की परिसंपत्तियों और ऋणों को लेकर बनाई गई है, उसके कार्यालय को ताला जड़ दिया गया है। एजेंसी ने आदेश दिया है कि, कार्यालय को न खोला जाए। आरोप के अनुसार असोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड के अंतर्गत छपनेवाले समाचार पत्र नेशनल हेराल्ड की जिन संपत्तियों को यंग इंडिया में स्थानांतरित किया गया, उसका कुल मूल्य आठ सौ से दो हजार करोड़ रुपए के बीच है, जिसे मात्र 50 लाख रुपए देकर ले लिया गया है।
आर्थिक अनियमितता के लगे आरोप
26 फरवरी 2011 में कांग्रेस ने ऋण के बोझ से दबे असोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (नेशनल हेराल्ड) की 90 करोड़ रुपए की देनदारी को अपने जिम्मे ले ली। जिसका व्यापारिक अर्थ ये लगा कि, कांग्रेस पार्टी ने नेशनल हेराल्ड की संचालनकर्ता कंपनी असोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड को 90 करोड़ रुपए का ऋण दिया है।
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सोनिया गांधी और राहुल गांधी की 38-38 प्रतिशत, मोतीलाल वोरा और ऑस्कर फर्नांडिस के 24-24 प्रतिशत हिस्सेदारी वाली एक कंपनी यंग इंडियन लिमिटेड की स्थापना की गई। जिसे असोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड के नौ करोड़ शेयर सौंप दिये गए। यंग इंडियन लिमिटेड को कांग्रेस पार्टी द्वारा दिये गए 90 करोड़ रुपए का भुगतान करना था। परंतु, कांग्रेस ने इस ऋण को माफ कर दिया। जिसका अर्थ ये हुआ कि, 10 रुपए मूल्य के नौ करोड़ शेयर के साथ असोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड का मालिकाना यंग इंडियन लिमिटेड को बिना किसी भुगतान के ही मिल गया।
नेशनल हेराल्ड की स्थापना
नेशनल हेराल्ड समाचार पत्र वर्ष 1938 में पंडित जवाहरलाल नेहरू और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा शुरू किया गया था। इसे असोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) द्वारा प्रकाशित किया जाता था। यह कांग्रेस का मुखपत्र हुआ करता था। नेशनल हेराल्ड के साथ ही उर्दू में कौमी आवाज और हिंदी में नवजीवन का प्रकाशन भी होता था, जो वर्ष 2008 तक चला और इसके बाद 90 करोड़ रुपए के ऋण के कारण बंद हो गया था। इस कंपनी के वर्ष 2010 में 1057 शेयर धारक थे। वर्ष 2011 में इस कंपनी के ऋण और संसाधनों को यंग इंडिया लिमिटेड में स्थानांतरित कर दिया गया।