सर्वोच्च न्यायालय ने इलेक्टोरल बांड को चुनौती देने से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई के तीसरे दिन 2 नवंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने निर्वाचन आयोग को निर्देश दिया कि वो 30 सितंबर तक के इलेक्टोरल बांड के सभी आंकड़े दाखिल करे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये आंकड़े दो हफ्ते के अंदर सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री में सीलबंद लिफाफे में दाखिल किए जाएं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निर्वाचन आयोग स्टेट बैंक और राजनीतिक दलों से फंड का आंकड़ा ले। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग से पूछा कि हमारे आदेश के बावजूद 2019 के बाद कोई डेटा क्यों नहीं दाखिल किया गया। कोर्ट ने कहा कि मौजूदा योजना में खामियां हैं। विधायिका चाहे तो और ज्यादा पारदर्शिता वाली योजना ला सकती है। संतुलन बनाने का काम कार्यपालिका को करना है ना कि न्यायपालिका को।
कुछ बातों पर विचार करने की जरूरत
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि इस मामले में कुछ बातों पर विचार करने की जरूरत है। पहला ये कि नकद लेन-देन को कम करने की आवश्यकता है। दूसरा कि चेक, ड्राफ्ट या प्रत्यक्ष डेबिट जैसे अधिकृत बैंकिंग चैनलों का उपयोग हो। तीसरा इस स्कीम में पारदर्शिता हो। चौथा कि ये स्कीम किकबैक (रिश्वतखोरी) की स्वीकृति को वैध बनाने का एक तरीका ना बने।
चीफ जस्टिस ने कहा थाः
एक नवंबर को सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि इलेक्टोरल बांड चुनिंदा लोगों के लिए ही गोपनीय है। किसने किस पार्टी को कितना डोनेशन दिया है, इसके बारे केवल एजेंसियों या स्टेट बैंक को पता होगा। यह योजना सभी राजनीतिक दलों को समान अवसर नहीं देती है। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि सत्ताधारी पार्टी के खाते में ही अधिक चंदा जाता है। यही हकीकत है। तब चीफ जस्टिस ने पूछा था कि आखिर ऐसा क्यों है कि सत्ताधारी पार्टी को अधिक चंदा जाता है। तब मेहता ने कहा था कि मैं ऐसा कोई अनुमान नहीं लगा सकता कि इसकी वजह क्या है, लेकिन आंकड़े यही बताते हैं।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए प्रशांत भूषण
सुनवाई के दौरान 31 अक्टूबर को याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा था कि विदेशी मुद्रा विनिमय कानून में संशोधन के जरिये भारत में रजिस्टर्ड विदेशी कंपनी भी चंदा दे सकती है। पहले इस पर पूर्ण रूप से रोक था। इस पर चीफ जस्टिस ने पूछा था कि इसका इलेक्टोरल बांड से कोई मतलब नहीं है। पहले राजनीतिक दलों को कारपोरेट चंदे की सीमा थी, लेकिन अब ये सीमा नहीं है। इसके लिए कई संशोधन किए गए। पहले कारपोरेट को इसका खुलासा करना होता था कि उसने किसे चंदा दिया। अब कारपोरेट ने किसे चंदा दिया ये खुलासा नहीं करना है, बल्कि कुछ चंदे का खुलासा करना है।
इलेक्टोरल बांड को दी गई है चुनौती
इलेक्टोरल बांड को चुनौती देने से संबंधित याचिकाओं के मामले पर अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने 30 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में अपना हलफनामा दाखिल किया। अटार्नी जनरल ने कहा है कि ये मुद्दा न्यायिक समीक्षा का नहीं है और न ही ये ऐसा विषय है जिस पर कोर्ट दिशानिर्देश जारी करे। इस मसले पर संसद में बहस होनी चाहिए। इलेक्टोरल बांड किसी भी मौजूदा अधिकार का उल्लंघन नहीं करता और यह योजना खुद ही गोपनीयता प्रदान करती है। इलेक्टोरल बांड संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत जायज है। इस अनुच्छेद में केंद्र सरकार मौलिक अधिकारों पर कुछ प्रतिबंध लगा सकती है।
पांच सदस्यीय संविधान बेंच में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं।
Join Our WhatsApp Community