Lok Sabha Election 2024: परिवारवादी पार्टियां लोकतंत्र के लिए खतरनाक, पढ़ें पूरी खबर

राजनीतिक जानकारों की मानें तो 2024 के लोकसभा चुनाव में भाई-भतीजावाद ज्यादा देखने को मिल रहा है। भारतीय लोकतंत्र में वंशवाद का प्रभाव लंबे समय से रहा है।

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– अमन दुबे

देश में इन दिनों लोकतंत्र (Democracy) का महापर्व चल रहा है। 7 चरणों (7 Phases) में होने वाले लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) 19 अप्रैल को शुरू हुए और दूसरे चरण का मतदान (Voting) 26 अप्रैल को हुआ। चुनाव के पहले चरण में 66.14 प्रतिशत और दूसरे चरण में 66.71 प्रतिशत मतदान हुआ।

राजनीतिक जानकारों की मानें तो 2024 के लोकसभा चुनाव में भाई-भतीजावाद (Nepotism) ज्यादा देखने को मिल रहा है। भारतीय लोकतंत्र में वंशवाद का प्रभाव लंबे समय से रहा है। आजादी के बाद कई राजघरानों ने राजनीति संभाली, वहीं कई क्षेत्रीय दलों की सत्ता में बढ़ती भागीदारी के साथ ही उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh), बिहार (Bihar) और महाराष्ट्र (Maharashtra) समेत कई राज्यों में परिवारवाद की राजनीति पनपने लगी। इस लोकसभा चुनाव में देश में वंशवाद की परंपरा का एक नया स्तर सामने आया है। देश की 543 लोकसभा सीटों में से कई पर राजनीतिक परिवारों के उम्मीदवार मैदान में हैं। कई राज्यों में सत्ताधारी दलों के उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतरे हैं, वहीं कई राज्यों में भाजपा भी भाई-भतीजावाद की शिकार हुई है।

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प्रधानमंत्री का हमला
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब वंशवाद की राजनीति पर हमला करते हैं तो उनका पहला निशाना नेहरू-गांधी परिवार होता है। इसके बाद वे तमिलनाडु के करुणानिधि, बिहार के लालू और उत्तर प्रदेश के मुलायम आदि परिवार पर निशाना साधते हैं। राजनीतिक जानकारों के अनुसार, अगर दिल्ली जाना है तो देश के तीन राज्यों में राजनीतिक पार्टी की अच्छी पकड़ होनी चाहिए। उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटें हैं। माना जाता है कि केंद्र में सरकार बनाने में उत्तर प्रदेश की अहम भूमिका होती है।

यादव बनाम यादव
समाजवादी पार्टी की स्थापना मुलायम सिंह यादव ने की थी। अक्टूबर 2022 में उनका निधन हो गया। उनके निधन के बाद समाजवादी पार्टी पहली बार चुनाव लड़ रही है। सपा में 2024 के लोकसभा चुनाव में बड़ा बदलाव हुआ है। अखिलेश यादव ने यादवों को सिर्फ पांच सीटें दी हैं। ये सभी यादव उनके परिवार के सदस्य हैं। सपा कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लोकसभा चुनाव लड़ रही है। अनुबंध में उन्हें 62 सीटें मिली हैं। सपा ने अब तक 59 उम्मीदवारों की घोषणा की है। लेकिन इसमें सिर्फ पांच यादव हैं।

सपा में परिवारवाद

सीट  परिवारवाद उम्मीदवार
मैनपुरी डिंपल यादव
कन्नौज अखिलेश यादव
आजमगढ़ धर्मेंद्र यादव
फिरोजाबाद अक्षय यादव
बदायूं आदित्य यादव

75 प्रतिशत सीटों पर वंशवाद
महाराष्ट्र में तीन प्रमुख दलों द्वारा लोकसभा चुनाव सीटों के लिए मैदान में उतारे गए वंशवादी खेमे के 48 उम्मीदवारों में से लगभग 75 प्रतिशत राजनीतिक वंशवादी हैं। महाराष्ट्र में महाविकास आघाड़ी के तीनों दलों के बीच 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए सीटों के बंटवारे पर सहमति बन गई है। लेकिन,75 प्रतिशत उम्मीदवारों को परिवारवाद के चलते सीटें मिल गई हैं। राज्य की 48 लोकसभा सीटों में से उद्धव ठाकरे की शिवसेना 21 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। कांग्रेस को 17 और शरद पवार की एनसीपी को 10 सीटें मिली हैं।

पुरानी परंपरा
महाराष्ट्र की राजनीति में वंशवाद शब्द का पुराना नाता है। परिवारवाद की राजनीति में अगर कोई बड़ा चेहरा है तो वो हैं शरद पवार। पवार ने अपनी बेटी सुप्रिया सुले के लिए बारामती सीट छोड़ी थी। इस लोकसभा चुनाव में शरद पवार के भतीजे अजीत पवार भी इस सीट पर कूद पड़े हैं। उन्होंने अपनी पत्नी सुनेत्रा पवार को मैदान में उतारा है। अब देखना होगा कि मतदाता किस पवार को जिताते हैं।

महाराष्ट्र कांग्रेस में परिवारवाद की राजनीति

सीट  परिवारवाद  उम्मीदवार
चंद्रपुर प्रतिभा सुरेश धानोरकर
सोलापुर प्रतिभा सुरेश धानोरकर
कोल्हापुर शाहू महाराज
नंदुरबार गोवाल पडवी
मुंबई उत्तर मध्य वर्षा गायकवाड़

शरद पवार की परिवारवाद राजनीति

सीट  परिवारवाद  उम्मीदवार
बारामती सुप्रिया सुले
वर्धा अमर काले
माधा धैर्यशील मोहिते पाटिल

शिवसेना (उबाठा)  

सीट  परिवारवाद  उम्मीदवार
उस्मानाबाद ओमराजे निंबालकर
हटकनंगले सत्यजीत पाटील
मुंबई उत्तर पश्चिम अमोल कीर्तिकर
मुंबई उत्तर पूर्व संजय दीना पाटील

बिहारः लालू यादव द फैमिली मैन
लालू यादव के परिवारवाद प्रेम ने एक समय बिहार की राजनीति को तहस-नहस कर दिया था। उनके परिवार की वजह से बिहार में विकास नहीं हुआ, राज्य में जंगलराज और गुंडाराज चरम पर था। नीतीश कुमार के साथ मिलकर लालू यादव ने बिहार में सरकार बनाई और खूब सत्ता के लड्डू खाए और अपनी बेटियों को भी खिलाए। लालू यादव और राबड़ी देवी के कुल 9 बच्चे हैं,जिनके लिए लालू यादव ने बिहार के विकास को छोड़कर बच्चों के विकास को कैसे बेहतर बनाया जाए, इस पर ध्यान दिया। लालू यादव के 2 बेटे और 7 बेटियां हैं।

इस बार भी परिवारवाद हावी
बिहार में इस बार का लोकसभा चुनाव बेहद खास है। राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद यादव खुद तो लोक सभा चुनाव नहीं लड़ पाएंगे, लेकिन इस बार उन्होंने बड़ा दांव खेला है। उन्होंने अपनी दोनों बेटियों को मैदान में उतारा है। सिंगापुर में रहने वाली रोहिणी आचार्य ने राजनीति में कदम रखते हुए सारण जैसे अपने पुराने गढ़ से चुनाव लड़ने की चुनौती दी है। जबकि बड़ी बेटी मीसा भारती तीसरी बार पाटलिपुत्र से चुनाव लड़ रही हैं। मीसा को 2014 और 2019 के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। फिलहाल यह देखना दिलचस्प होगा कि लालू की दोनों बेटियां अपने पिता की उम्मीदों पर कितनी खरी उतरती हैं।

बुआ और भतीजे का प्रेम!
पश्चिम बंगाल की राजनीति में बुआ-भतीजावाद काफी हावी है। मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी को बंगाल की राजनीति में काफी सक्रिय कर दिया है। दो बार के सांसद अभिषेक बनर्जी डायमंड हार्बर लोकसभा सीट से तीसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं। इस समय उन्हें तृणमूल में नंबर दो का नेता माना जाता है। हालांकि, अभिषेक से पहले ममता ने अपने परिवार के किसी भी सदस्य को सक्रिय राजनीति में नहीं उतारा था। (Lok Sabha Election 2024)

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