भारत बंदः महाराष्ट्र में आपकी सुरक्षा, आपकी जिम्मेदारी

आंदोलनकारी किसान कृषि कानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं, जबकि सरकार उसमें संशोधन करने को तैयार है। लेकिन उसे पूरी तरह रद्द करने से सरकार ने इनकार किया है। इस वजह से किसानों और केंद्र सरकार के बीच टकराव बढ़ती जा रही है।

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दिल्ली में  कृषि कानून का विरोध कर रहे किसान संगठनों ने 8 दिसंबर को भारत बंद का आह्वान किया है। उसका असर महाराष्ट्र के जनजीवन पर भी पड़ना निश्चित है, क्योंकि महाराष्ट्र के महाविकास आघाड़ी सरकार ने बंद का समर्थन किया है। हालांकि दिल्ली में चल रहे किसानों के आंदोलन में महाराष्ट्र के किसानों की ज्यादा भूमिका नजर नहीं आ रही है। इसके बावजूद महाराष्ट्र में बंद का असर देखा जा सकता है। इसे देखते हुए महाराष्ट्र सरकार ने कई एहतियाती कदम उठाए हैं। इसी कड़ी में प्रशासन ने संवेदनशील मार्गों पर एसटी बसें नहीं चलाने का आदेश जारी किया है। इसके साथ ही प्रशासन ने एसटी के सभी डिपो में सावधानी बरतने का निर्देश जारी किया है। इसलिए अगर आप घर से निकलते हैं तो आपकी सुरक्षा की जिम्मेदारी भी आपकी ही है।

अभी तक ये तय नहीं है कि किन मार्गों पर एसटी बसें नहीं चलाई जाएंगी, लेकिन प्रशासन ने निर्देश जारी किया है कि आंदोलन वाले मार्गों पर एसटी बसें नहीं चलाई जाएंगी।

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कृषि बाजार बंद
इस भारत बंद में एपीएमसी के सभी बाजार में व्यवसाय करनेवाले व्यापारी भी शामिल होंगे। इसलिए सभी बाजार बंद रहेंगे। बता दें कि केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए कृषि कानून के विरोध में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के हजारों किसान दिल्ली में पिछले 13 दिनों से आंदोलन कर रहे हैं। उन्होंने आठ दिसंबर को भारत बंद का आह्वान किया है। इस बारे में माथाड़ी कामगार नेता और विधायक शशिकांत शिंदे ने कहा है कि देश के अन्नदाता के आंदोलन में हम शामिल होंगे। नवी मुंबई एपीएमसी सहित राज्य के नाशिक, पुणे, नगर, कोल्हापुर की बाजार समिति भी इस बंद में शामिल होगी।

टकराव बढ़ने के आसार
आंदोलनकारी किसान कृषि कानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं, जबकि सरकार उसमें संशोधन करने को तैयार है। लेकिन उसे पूरी तरह रद्द करने से सरकार ने इनकार किया है। इस वजह से किसानों और केंद्र सरकार के बीच टकराव बढ़ती जा रही है।

कृषि बिल का विरोध क्यों?

  • न्यूनतम समर्थन मूल्य( एमएसपी) को समाप्त किये जाने का डर
  • मंडियां खत्म होने का खतरा
  • मंडियों के अंदर टैक्स लगाने की संभावना, बाहर नहीं लगेगा टैक्स
  • व्यापारी टैक्स बचाने के लिए मंडी के बाहर से करेंगे खरीददारी
  • नये बिलों में एक बिल कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से जुड़ा है। विवाद होने पर किसानों को कोर्ट जाने का अधिकार खोने का डर
  • किसानों को सरकार पर भरोसा नहीं

क्या है कृषि कानून?
1) कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक, 2020
राज्य सरकारों को मंडियों के बाहर की गई कृषि उपज की बिक्री और खरीद पर टैक्स लगाने से रोकता है और किसानों को लाभकारी मूल्य पर अपनी उपज बेचने की स्वतंत्रता देता है। सरकार का कहना है कि इस बदलाव के जरिए किसानों और व्यापारियों को किसानों की उपज की बिक्री और खरीद से संबंधित आजादी मिलेगी, जिससे अच्छे माहौल पैदा होगा और दाम भी बेहतर मिलेंगे। सरकार का कहना है कि इस अध्यादेश से किसान अपनी उपज देश में कहीं भी, किसी भी व्यक्ति या संस्था को बेच सकते हैं। इस अध्यादेश में कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी मंडियों) के बाहर भी कृषि उत्पाद बेचने और खरीदने की व्यवस्था तैयार करना है। इसके जरिये सरकार एक देश, एक बाजार की बात कर रही है।
किसान अपना उत्पाद खेत में या व्यापारिक प्लेटफॉर्म पर देश में कहीं भी बेच सकेंगे। इस बारे में केंद्रीय कृषमंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया कि इससे किसान अपनी उपज की कीमत तय कर सकेंगे। वह जहां चाहेंगे अपनी उपज को बेच सकेंगे जिसकी मदद से किसान के अधिकारों में इजाफा होगा और बाजार में प्रतियोगिता बढ़ेगी।

2) आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में संशोधन
 पहले व्यापारी फसलों को किसानों के औने-पौने दामों में खरीदकर उसका भंडारण कर लेते थे और कालाबाजारी करते थे, उसको रोकने के लिए Essential Commodity Act 1955 बनाया गया था जिसके तहत व्यापारियों द्वारा कृषि उत्पादों के एक लिमिट से अधिक भंडारण पर रोक लगा दी गई थी। अब नए विधेयक आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 आवश्यक वस्तुओं की सूची से अनाज, दाल, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू जैसी वस्तुओं को हटाने के लिए लाया गया है।
इन वस्तुओं पर राष्ट्रीय आपदा या अकाल जैसी विशेष परिस्थितियों के अलावा स्टॉक की सीमा नहीं लगेगी। इस पर सरकार का मानना है कि अब देश में कृषि उत्पादों को लक्ष्य से कहीं ज्यादा उत्पादित किया जा रहा है। किसानों को कोल्ड स्टोरेज, गोदामों, खाद्य प्रसंस्करण और निवेश की कमी के कारण बेहतर मूल्य नहीं मिल पाता है।

3) किसान (संरक्षण एवं सशक्तिकरण)
समझौता और कृषि सेवा अध्यादेश – यह कदम फसल की बुवाई से पहले किसान को अपनी फसल को तय मानकों और तय कीमत के अनुसार बेचने का अनुबंध करने की सुविधा प्रदान करता है। इस अध्यादेश में कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग की बात है। सरकार की मानें तो इससे किसान का जोखिम कम होगा। दूसरे, खरीदार ढूंढने के लिए कहीं जाना नहीं पड़ेगा। सरकार का तर्क है कि यह अध्यादेश किसानों को शोषण के भय के बिना समानता के आधार पर बड़े खुदरा कारोबारियों, निर्यातकों आदि के साथ जुड़ने में सक्षम बनाएगा। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर कहते हैं कि इससे बाजार की अनिश्चितता का जोखिम किसानों पर नहीं रहेगा और किसानों की आय में सुधार होगी। सरकार का यह भी कहना है कि इस अध्यादेश से किसानों की उपज दुनियाभर के बाजारों तक पहुंचेगी। कृषि क्षेत्र में निजी निवेश बढ़ेगा।

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