कैप्टन के कारण पंजाब में सत्ता गंवा सकती है कांग्रेस! जानें, कैसा रहा है पार्टी का अब तक का इतिहास

पिछले करीब 25 वर्षों के इतिहास को उठाकर देखें तो पता चलता है कि पंजाब में दूसरे राज्यों में कांग्रेस के इतिहास को दोहराया जा सकता है।

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पंजाब में कांग्रेस जहां आंतरिक कलह से परेशान है, वहीं प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह उसके लिए घातक बनते जा रहे हैं। उनके द्वारा अपनी पार्टी के गठन की घोषणा के बाद कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती खड़ी होती दिख रही है। कैप्टन पंजाब में एक बड़ी शख्सियत हैं और सूबे में लोगों पर उनकी अच्छी पकड़ है। चुनाव में उनकी पर्सनालिटी कांग्रेस के लिए खतरनाक साबित हो सकती है।

दोहराया जा सकता है कांग्रेस का इतिहास
पिछले करीब 25 वर्षों के इतिहास को उठाकर देखें तो पता चलता है कि पंजाब में दूसरे राज्यों में कांग्रेस के इतिहास को दोहराया जा सकता है। इतिहास गवाह है कि जिन राज्यों में कांग्रेस के बड़े क्षेत्रीय छत्रपों ने बगावत कर अपनी पार्टी बनाई, उनमें कांग्रेस हाशिये पर चली गई। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, महाराष्ट्र में शरद पवार और आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी इसके उदाहरण के रुप में देखे जा सकते हैं।

कैप्टन ने बो दिए कांग्रेस की राह में कांटे
पंजाब में कांग्रेस मजबूत रही है और 2022 में होने वाले चुनाव में भी उसके सत्ता में वापसी की उम्मीद की जा रही है। अकाली दल के सामने साख का संकट होना और आम आदमी पार्टी के पास दमदार नेता नहीं होना इसका कारण माना जा रहा है। लेकिन इस बीच कैप्टन ने अपनी पार्टी गठन की घोषणा कर उसकी राहों में कांटे बो दिए हैं।

कैप्टन और भाजपा का साथ आना कांग्रेस के लिए घातक
कैप्टन की यह रणनीति भारतीय जनता पार्टी के साथ आने के बाद कांग्रेस के लिए और ज्यादा खतरनाक साबित हो सकती है। भले ही भाजपा की वहां ज्यादा ताकत नहीं है, लेकिन किसान आंदोलन हल करने में कैप्टन को सहयोग कर वह अपनी साख मजबूत कर सकती है और कैप्टन का साथ मिलना उसके लिए वरदान साबित हो सकता है। स्वभाविक तौर पर भाजपा कैप्टन का साथ पाने के लिए बेसब्र है और वह कई बार उन्हें राष्ट्रवादी नेता बताकर उनके लिए अपनी बाहें फैली होने का इशारा किया है।

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कांग्रेस को हो सकता है दोहरा नुकसान
दरअस्ल प्रदेश में दलित नेता चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस ने पंजाब के साथ ही उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के दलितों को भी लुभाने की कोशिश की है, लेकिन पार्टी के लिए प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू को साधना लोहे के चने चबाने जैसा साबित हो रहा है। इस स्थिति में कांग्रेस को दोहरा नुकसान उठाना पड़ सकता है। एक ओर कैप्टन उसके लिए बड़ी चुनौती साबित होंगे, वहीं सिद्धू के न साधे जाने की हालत में पार्टी को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। यह कहना गलत नहीं होगा कि पंजाब में कांग्रेस के लिए आगे कुछ भी आसान होता नहीं दिख रहा है। उसका हाल महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश जैसा हो सकता है।

कांग्रेस के लिए सबक

  • ममता बनर्जी ने 1997 में कांग्रेस छोड़ी और जनवरी 1998 में तृणमूल कांग्रेस पार्टी का गठन कर लिया।
  • शरद पवार ने 1999 में कांग्रेस का साथ छोड दिया और अपनी पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी बना ली।
  • जगन मोहन रेड्डी ने मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने से नाराज होकर 2011 में वाइएसआर कांग्रेस बनाई और 2019 में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कब्जा जमा लिया।

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