हरियाणा : इसलिए लाया था अविश्वास प्रस्ताव और विपक्ष की हो गई….!

राज्य में अक्टूबर 2019 में भाजपा और जेजेपी के बीच गठबंधन पर सहमति बनी थी। इसके अनुसार भाजपा के पास मुख्यमंत्री पद और जेजेपी के पास उपमुख्यमंत्री पद दिया गया।

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राज्य सरकार के विरुद्ध विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था। जिस पर घंटों की बहस के बाद मतदान हुआ। विपक्ष ने मनोहरलाल खट्टर और दुष्यंत चौटाला की सरकार पर तीखे कटाक्ष किये। लेकिन वो अविश्वास मत में मात खा गई।

प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी और जननायक जनता पार्टी की गठबंधन सरकार है। आंकड़ों को देखें तो कुल 90 विधान सभा की सीटों वाली विधान सभा है जिसमें भाजपा-जेजेपी के पास बहुमत है। लेकिन कांग्रेस ने अचानक किसान आंदोलन को लेकर सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाया है। इसका सबसे कारण किसान आंदोलन की आड़ में पंजाब जीती कांग्रेस को अब हरियाणा से भी आस है। लेकिन, उसकी आशाओं पर पानी फिर गया और 55 विधायकों के समर्थन के साथ खट्टर की सरकार विश्वास मत हासिल प्राप्त करने में सफल रही।

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पंजाब के बाद कांग्रेस का मिशन हरियाणा
किसान आंदोलन के परिप्रेक्ष्य में पंजाब स्थानीय निकाय चुनाव में बड़ी जीत प्राप्त करनेवाली कांग्रेस का मनोबल ऊंचा है। दिल्ली की सीमाओं पर संयुक्त किसान मोर्चा आंदोलन कर रहा है। इस आंदोलन में पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों की भूमिका सबसे अधिक है। इसके कारण हरियाणा के नेताओं में भी असंतोष है। मतदाताओं की नाराजगी न लेने के लिए जेजेपी के विधायकों का एक गुट सरकार से समर्थन खींचने की मांग भी कर चुका है। इन सभी परिस्थितियों का लाभ लेने के लिए कांग्रेस राज्य सरकार गिराकर सत्ता समीकरण साधने की कोशिश में है।

हमेशा विपक्ष को मिली असफलता
राज्य में विपक्ष हमेशा सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव का उपयोग करता रहा है। लेकिन यह भी सच्चाई है कि जितनी बार भी विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव लाया है वह हमेशा औंधे मुंह ही गिरा है।

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ये अविश्वास प्रस्ताव लाने की प्रक्रिया
राज्य में सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव नियम 65 के अंतर्गत लाया जाता है। इसके अंतर्गत किसी मु्द्दे, नीति या निर्णय के विरुद्ध 18 विधायक हस्ताक्षर करके अविश्वास प्रस्ताव की नोटिस दे सकते हैं।

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