Assembly elections: संवैधानिक संकट को टालने के लिए, मुख्यमंत्री नायब सैनी के नेतृत्व वाली हरियाणा राज्य विधानसभा को समय से पहले भंग करने की सिफारिश की थी। राज्यपाल बंडारु दत्तात्रेय ने उनकी उसे मंजूरी दे दी है। दरअस्ल विधानसभा की अंतिम बैठक से छह महीने की अवधि समाप्त होने से पहले सदन की बैठक को बुलाने से बचने के लिए विधानसभा भंग करने की सिफारिश की गई थी, जो एक अनिवार्य संवैधानिक आवश्यकता है। राज्य विधानसभा की अंतिम बैठक 13 मार्च को हुई थी और 12 सितंबर से पहले एक सत्र बुलाया जाना था। राज्य में 5 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव होने हैं।
क्या कहता है संविधान?
संविधान के अनुच्छेद 174 के अनुसार, राज्यपाल समय-समय पर राज्य विधानमंडल के सदन या प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर बैठक के लिए बुलाएगा, जैसा वह उचित समझे, लेकिन एक सत्र में इसकी अंतिम बैठक और अगले सत्र में इसकी पहली बैठक के लिए नियत तिथि के बीच छह महीने से अधिक का अंतर नहीं होना चाहिए। भाजपा प्रवक्ता ने कहा, “प्रस्ताव मंजूरी के लिए हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय के पास भेजा गया था। उन्होंने उसकी मंजूरी दे दी है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 174(2)(बी) किसी राज्य के राज्यपाल को राज्य की विधानसभा को भंग करने का अधिकार देता है।”
कार्यवाहक मुख्यमंत्री बने रहेंगे सैनी
राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय द्वारा मंत्रिपरिषद की सलाह पर राज्य विधानसभा को समय से पहले भंग करने की मंजूरी दे दी गई, जो औपचारिकता मात्र थी। हालांकि, सैनी कार्यवाहक मुख्यमंत्री के रूप में काम करना जारी रखेंगे।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
राजनीतिक विशेषज्ञों ने कहा कि भाजपा का आत्मविश्वास कम होना और 16 अगस्त को विधानसभा चुनाव की घोषणा, दो स्पष्ट कारण हैं, जिसके चलते सदन को संक्षिप्त मानसून सत्र के लिए नहीं बुलाया गया। राज्य सरकार की अनिच्छा मंत्रिपरिषद की सलाह पर राज्यपाल द्वारा कई अध्यादेश जारी करने से स्पष्ट है। मुख्यमंत्री नायब सैनी ने संकेत दिया था कि राज्यपाल द्वारा जारी अध्यादेश, जो छह महीने के लिए वैध हैं, अक्टूबर में नई सरकार बनने पर विधानसभा में पेश किए गए विधेयकों से बदल दिए जाएंगे।
भाजपा में बगावत से टेंशन
जून में भाजपा सरकार का समर्थन कर रहे तीन निर्दलीय विधायकों सोमबीर सांगवान (दादरी), रणधीर गोलेन (पुंडरी) और धर्मपाल गोंडर (नीलोखेड़ी) के पीछे हटने के बाद भाजपा सरकार तनाव में थी। 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद की सहयोगी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी), जिससे भाजपा ने 12 मार्च को नाता तोड़ लिया था, ने भी सरकार को समर्थन नहीं देने का फैसला किया, जिससे राज्य विधानसभा में अंकगणित बदल गया और भाजपा और उसके सहयोगियों की संख्या कम हो गई।
विपक्ष ने की थी सरकार को बर्खास्त करने की मांग
विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अल्पमत वाली भाजपा सरकार को बर्खास्त करने की मांग करते हुए कहा था कि विधायकों की खरीद-फरोख्त रोकने के लिए राज्यपाल द्वारा इसे बर्खास्त किए जाने की जरूरत है। हुड्डा ने कहा था कि कुछ जेजेपी विधायकों द्वारा सदन में सरकार का समर्थन करने के लिए पार्टी व्हिप की अवहेलना करने की संभावना है।
चुनाव की घोषणा के कारण बिगड़ा माहौल
विधानसभा चुनावों की घोषणा ने भी एक बाधा के रूप में काम किया क्योंकि अधिकांश राजनीतिक दल और उनके विधायक चुनाव की तैयारियों में व्यस्त हो गए। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि विधानसभा का सत्र न बुलाकर या विधानसभा को भंग न करके नायब सैनी सरकार संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करने के लिए आलोचना का सामना कर सकती थी, इसलिए उसने यह कदम उठाया है।