India’s Foreign Policy: भारत की विदेश नीति की शुरुआत 1947 से ही नहीं हुई है । विदेश नीति की इतिहास नीति का वर्णन महाभारत और रामायण में मिलता है । देश की आजादी से पहले और बाद में कई स्वतंत्रता सेनानियों ने विदेश नीति को लेकर बात कही है। भारत की विदेश नीति जितनी ऐतिहासिक है, उतना ही विश्व के बदलते स्वरूप के अनुसार नयापन लिए हुए है। ये विचार वीर सावरकर के पोते और स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के चेयरमैन रणजीत विक्रम सावरकर ने व्यक्त किए।
दिल्ली के लक्ष्मीबाई कॉलेज में दो दिवसीय आईसीएचआर नेशनल कॉन्फ्रेस का आयोजन किया गया। इसका विषय था, भारत की प्राचीन और मार्डन विदेश नीति का ऐतिहासिक संदर्भ यानी Reclaiming Bhartiya Perspectives on Videsh Niti in Ancient and Modern Historical Thinking.वीर सावरकर के पोते और स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के चेयरमैन रणजीत विक्रम सावरकर इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे।
वीर सावरकर ने दिया था समुद्री बेड़े को मजबूत करने का सुझाव
रणजीत सावरकर ने भारत की विदेश नीति को रेखांकित करते हुए कहा कि विदेशी संबंधों में समुद्री शक्ति को बढ़ाना प्राथमिकता माना जाता है। उन्होंने भारत की प्राचीन और मार्डन विदेश नीति का ऐतिहासिक संदर्भ यानी Reclaiming Bhartiya Perspectives on Videsh Niti in Ancient and Modern Historical Thinking कार्यक्रम में कहाल कि स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई के दौरान अंडमान जेल में रहते हुए अंडमान के समुद्र के साथ भारत के समुद्री बेड़े को मजबूत करने की जरूरत पर बल दिया था । अगर ऐसा होता तो भारत को मुंबई आतंकी हमला नहीं झेलना पड़ता था।
सावरकर ने दूसरे देशों से संबंध बनाने पर दिया था जोर
रणजीत सावरकर ने कहा कि वीर सावरकर 1857 के अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह को स्वतंत्रता की पहली लड़ाई मानते थे। वीर सावरकर ने भारत की विदेश नीति को महत्वपूर्ण मानते हुए स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई के दौरान ही दूसरे देशों के साथ संबंध बनाने पर जोर दिया था। ऐसा कहना उचित नहीं होगा कि भारत की विदेश नीति (1947) स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से शुरू हुई है। हमारे धार्मिक ग्रंथ रामायण , महाभारत में इसका उल्लेख मिलता है। ऐसा कहना उचित नहीं होगा कि भारत की विदेश नीति आजादी के बाद 1947 से शुरू हुई है। हमारे धार्मिक ग्रंथ रामायण , महाभारत में इसका उल्लेख मिलता है।
भारतीय मूल्यों के महत्व पर जोर
दिल्ली यूनिवर्सिटी के कॉलेज लक्ष्मीबाई कॉलेज की प्रिंसिपल प्रत्युष वत्सला ने भारत की विदेश नीति में भारतीय मूल्यों के महत्व पर जोर दिया । श्री राम की विदेश नीति की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उन्हें छोटे राज्य कभी संदेह की दृष्टि से नहीं देखते थे। स्वयं राम आर्यावर्त जैसे महान साम्राज्य के संरक्षण होने के बाद भी सबसे बराबरी का व्यवहार करते थे। मित्र का शत्रु शत्रु होता है इस नीति पर चलकर ही श्री राम ने किष्किंधा के राजा बलि का वध करके वहां का शासक एक बार फिर सुग्रीव को बनाने में मदद की थी। पहले सुग्रीव ही किष्किंधा के राजा थे, जिन्हें बलपूर्वक बाली ने हटा दिया था। अग्नि पुराण में भी भारत की विदेश नीति का जिक्र मिलता है।
विदेश नीति पर हमारी संस्कृति और मूल्यों का प्रभाव
कॉन्फ्रेंस की कन्वीनर भारती छिब्बर ने कहा कि भारत की विदेश नीति पर हमारी संस्कृति और मूल्यों का प्रभाव साफ देखा जा सकता है । उन्होने कहा कि स्वातंत्र्यवीर सावरकर की विदेश नीति पर विचार, श्यामा प्रसाद मुखर्जी का कश्मीर के अलगाववाद के खिलाफ लड़ाई और पंडित दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानववाद के बारे में नई पीढ़ी को जानकारी देने की आवश्यकता है।
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विदेशों से अच्छे संबंध स्थापित
वरिष्ठ पत्रकार नेहा खन्ना ने भारत की वर्तमान विदेश नीति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में दूसरे देशों के साथ अच्छे संबंध स्थापित हुए हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस और यूक्रेन दोनों ही देशों का दौरा किया है।
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