Indi Alliance: कांग्रेस; लोकसभा में मजबूरी, विधानसभा में दूरी

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-अंकित तिवारी

Indi Alliance: राजद (RJD) अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) ने हाल ही में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री (Chief Minister of West Bengal) और टीएमसी (TMC) प्रमुख ममता बनर्जी (Mamta Banerjee) के विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व करने के प्रयास को अपना समर्थन देकर इंडी ब्लॉक (Indi Block) में हलचल मचा दी है। ममता के इंडी ब्लॉक का नेतृत्व करने की इच्छा के बारे में पूछे जाने पर लालू ने संवाददाताओं से कहा, “ठीक है, दे देना चाहिए। हम सहमत हैं।” यह पूछे जाने पर कि क्या कांग्रेस आपत्ति कर सकती है, लालू ने कहा: “इससे कोई फर्क नहीं पड़ता…ममता को दे दो।”

2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को चुनौती देने के लिए बने इंडी गठबंधन का उद्देश्य विपक्ष को एकजुट करना था। यह एक ऐसा प्रयास था, जो राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के खिलाफ एकजुटता दिखाने के लिए महत्वपूर्ण माना गया। हालांकि, जब प्रदेशों में विधानसभा चुनावों की बात आती है, तो तृणमूल कांग्रेस , राष्ट्रीय जनता दल, आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी जैसे विपक्षी दल कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने से कतराते नजर आते हैं।

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राज्यों में कांग्रेस का कमजोर प्रदर्शन
कांग्रेस, जो कभी पूरे देश की राजनीति पर हावी थी, अब राज्यों में अपना आधार खो चुकी है। विभिन्न राज्य के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन सहयोगी दलों के लिए बोझ बना देता है। कुछ प्रमुख राज्यों में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन पर नजर डालते हैं:

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पश्चिम बंगालः टीएमसी के गढ़ में कांग्रेस शून्य
2021 पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 294 में से एक भी सीट नहीं जीती। इसके विपरीत, ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस ने 213 सीटें जीतीं और वे तीसरी बार राज्य की मुख्यमंत्री बनीं। कांग्रेस का खराब प्रदर्शन टीएणसी के लिए एक स्पष्ट संदेश है कि राज्य में उसे कोई लाभ नहीं मिलेगा। साथ ही वाम दलों से कांग्रेस की निकटता ममता बनर्जी को सख्त नामंजूर है।

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बिहारः महागठबंधन की सबसे कमजोर कड़ी
2020 बिहार विधानसभा चुनावों में, कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन केवल 19 सीटें जीत पाई। इसके विपरीत, राष्ट्रीय जनता दल ने 144 सीटों में से 75 सीटें जीतकर गठबंधन में अपनी स्थिति मजबूत की। कई रादद नेताओं ने खुलेआम कहा कि कांग्रेस की कमजोर प्रदर्शन क्षमता महागठबंधन की जीत में बाधा बनी। साथ ही लालू यादव के ताजा बयान ने यह साबित कर दिया है कि वह कांग्रेस को ज्यादा सीरियस नहीं मानते।

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दिल्ली और पंजाबः आप से वर्चस्व की लड़ाई
दिल्ली में 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 70 में से 0 सीटें जीतीं। वहीं, आप ने 62 सीटों पर जीत दर्ज की। पंजाब में 2022 में आप ने कांग्रेस से सत्ता छीनते हुए 117 में से 92 सीटें जीतीं। कांग्रेस महज 18 सीटों पर सीमित रह गई। आप के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन करना न केवल राजनीतिक रूप से नुकसानदेह है, बल्कि मतदाताओं के लिए भी अप्रासंगिक संदेश देता है। यह भी देखना वाली बात है कि दोनों राज्यों में आप ने कांग्रेस से सत्ता छीनी है, जिसमें 2015 में शीला दीक्षित के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार और पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह और फिर चरणजीत सिंह चन्नी के नेतृत्व वाली पंजाब सरकार शामिल है। विश्लेषकों की माने तो दोनों का वोट बैंक भी एक ही है।

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उत्तर प्रदेशः सपा के जमीन पर कांग्रेस की फसल
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का प्रभाव दशकों से घटता जा रहा है। 2022 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 403 में से केवल 2 सीटें जीतीं। इसके विपरीत, समाजवादी पार्टी ने 125 सीटें जीतीं और भाजपा का सामना करने के लिए मुख्य विपक्षी पार्टी बनी। सपा को कांग्रेस के साथ गठबंधन में फायदा नजर नहीं आता, क्योंकि कांग्रेस का वोट शेयर नगण्य है। साथ ही 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस का गठबंधन दो ‘लड़कों की जोड़ी’ नारे की तरह फ्लॉप रहा था।गठबंधन पर विपक्षी दलों को आपत्ति क्यों? यह सवाल मन में आना स्वभाविक है।

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1- कमजोर संगठन और नेतृत्व
कांग्रेस का राज्यों में संगठनात्मक ढांचा और नेतृत्व दोनों कमजोर हैं, जबकि टीएमसी, राजद, आप और सपा ने अपने-अपने राज्यों में मजबूत जमीनी नेटवर्क बनाए हैं, वहीं कांग्रेस का प्रदर्शन लचर रहा है।

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2- सीट बंटवारे पर विवाद
राजनीतिक गठबंधनों में सीट बंटवारे को लेकर मतभेद हमेशा होते हैं। बिहार में राजद के नेताओं ने कांग्रेस पर जरूरत से ज्यादा सीटें मांगने का आरोप लगाया। वहीं पश्चिम बंगाल में टीएमसी को लगता है कि कांग्रेस को सीटें देने से भाजपा को फायदा हो सकता है।

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3- कांग्रेस की विश्वसनीयता की कमी
दिल्ली, पंजाब और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में कांग्रेस को मतदाता “कमजोर विकल्प” के रूप में देखते हैं। ऐसे में इन दलों को डर है कि कांग्रेस के साथ गठबंधन करने से उनका खुद का वोट बैंक कमजोर हो सकता है।

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4- क्षेत्रीय दलों की महत्वाकांक्षा
ममता बनर्जी, तेजस्वी यादव, अरविंद केजरीवाल और अखिलेश यादव जैसे नेता अपने-अपने राज्यों में मजबूत नेतृत्वकर्ता के रूप में उभरे हैं। कांग्रेस के साथ जुड़ने से इनकी छवि कमजोर हो सकती है और मतदाताओं में भ्रम पैदा हो सकता है।

इंडी गठबंधन में वर्चस्व की लड़ाई

राष्ट्रीय स्तर पर, इंडी गठबंधन एकजुटता दिखाने का प्रयास है, लेकिन राज्य स्तर पर मतभेद स्पष्ट हैं।

  • टीएमसी की ममता बनर्जी बंगाल में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर भाजपा के खिलाफ अपने अभियान को कमजोर नहीं करना चाहतीं।
  • राजद के लालू यादव और तेजस्वी यादव कांग्रेस के खराब प्रदर्शन से दूर रहना चाहते हैं, ताकि महागठबंधन जीतने का संयोग बने।
  • आप के अरविंद केजरीवाल कांग्रेस के साथ जुड़ने से दिल्ली और पंजाब में अपना वर्चस्व खो सकते हैं।
  • सपा के अखिलेश यादव के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन करना उत्तर प्रदेश में भाजपा के खिलाफ उनकी रणनीति को कमजोर करेगा।

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