तालिबान के कब्जे के बाद सवाल उठाए जा रहे हैं कि अफगानिस्तान को लेकर भारती की क्या रणनीति है? इसे लेकर भारत की मोदी सरकार ने भले ही कोई बड़ी जानकारी नहीं साझा की हो, लेकिन सच यह है कि वह इसे काफी गंभीरता से ले रही है और इसे लेकर वह काफी सावधानियां बरत रहा है।
भारत अफगानिस्तान में तालिबान की गतिविधियों पर पैनी नजर बनाए हुए है और वह इसके लिए कई देशों के साथ संपर्क में है। ये ऐसे देश हैं, जो तालिबान सरकार के स्वरुप को देखकर ही उसके बारे में निर्णय लेंगे।
तालिबान पर भरोसा नहीं
भारत के साथ ही ऐसे कई देश हैं जिन्हें तालिबान पर भरोसा नहीं है और वे उसकी सरकार को मान्यता देने की पक्ष में नहीं हैं। अफगानिस्तान पर विश्व स्तर पर रणनीति बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एक और बैठक करने पर भी चर्चा जारी है। इस बैठक का उद्देश्य तालिबान पर दबाव बढ़ाना है।
पाकिस्तान आतंकवादी सगंठनों का केंद्र
अफगानिस्तान के काबुल पर आतंकी हमले की जिम्मेदारी आईएस खुरासान ने ली है, लेकिन तालिबान में आतंकी गुटों के गठजोड़ की आशंका के मद्देनजर वे एक साथ आ सकते हैं। भारत ने अपने खुफिया एजेंसियों से मिले फीडबैक से स्पष्ट है कि अफगानिस्सान में सक्रिय तमाम आतंकी गुटों की तालिबान लड़ाकों से सांठगांठ है। इनको संरक्षण और खुराक पाकिस्तान की आईएसआईएस से ही मिल रही है।
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तालिबान की कथनी और करनी में अंतर
तालिबान ने भले ही नरम रुख अपनाने की बात कही है लेकिन उसकी कथनी और करनी में अंतर समय-समय पर स्पष्ट होता रहा है। इसलिए कोई भी देश उसकी बातों पर ज्यादा भरोसा नहीं कर सकता। इसके लिए भारत समेत दुनिया भर के कई देश वहां की गतिविधियों पर नजर बैनाए हुए हैं और वेट एंड वॉच की नीति अपना रहे हैं।
इन देशों के संपर्क में भारत
तालिबान के नए अमीरात की मान्यता के संबंध में फैसले को लेकर भारत का कूटनीतिक दबाव काम आ रहा है। रुस और ईरन जैसे देश भी इस संबंध में भारत से रायशुमारी में जुटे हैं। भारत की अमेरिका के आलावा रुस, ईरान, कतर, तजाकिस्तान,जर्मनी, इटली समेत कई अन्य देशों से बातचीत हुई है।