वीर सावरकर से राष्ट्रीय ध्वज को मिला केसरी रंग और चक्र

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राष्ट्रीय ध्वज निर्माण में भी स्वतंत्र्यवीर सावरकर की भूमिका थी। संविधान समिति के अध्यक्ष डॉ.राजेंद्र प्रसाद को ‘तार’ (तत्काल सूचना देने का माध्यम) भेजकर बिनती की थी कि, राष्ट्रीय ध्वज में केसरी रंग का एक पट्टा सम्मिलित किया जाए और चरखे के स्थान पर चक्र को लिया जाए। राष्ट्र के पहले ध्वज के निर्माता और वर्ष 1907 में सोशलिस्ट परिषद में उसे फहराने की प्रेरणा देनेवाले स्वातंत्र्यवीर सावरकर को ज्ञात था कि, कांग्रेसियों के वर्चस्व वाली संविधान समिति में उनके द्वारा निर्मित ध्वज को स्वीकार्यता मिलना असंभव ही है।

स्वतंत्रता प्राप्ति के पहले ध्वज आरोहण के साथ ही विश्व में एक महाशक्ति का अवतरण हुआ। जिस स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन वीर सावरकर ने राष्ट्र को अर्पण कर दिया, उस स्वतंत्रता का स्वागत करने के महोत्सव में कांग्रेस ने स्वातंत्र्यवीर सावरकर को निमंत्रित ही नहीं किया। इसका दु:ख राष्ट्र समर्पित, राष्ट्र देृष्टा वीर सावरकर ने भले ही कभी व्यक्त न किया हो, परंतु यह दु:ख देश के लाखो स्नेहियों को उसी समय सूई की तरह चुभी। इसमें एक नाम था संविधान समिति के अध्यक्ष डॉ.राजेंद्र प्रसाद। जिन्होंने इसे सार्वजनिक रूप से व्यक्त भी किया।

वीर सावरकर ने सबसे पहले महसूस किया राष्ट्रीय ध्वज का महत्व
स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने देश को पहला ध्वज दिया, इसके निर्माण के पीछे एक महत्वपूर्ण लक्ष्य था। जर्मनी के स्टुटगार्ट में 18 से 24 अगस्त, 1907 के मध्य अंतरराष्ट्रीय समाजवादी परिषद का आयोजन किया गया था। इसमें विश्व के 900 प्रतिनिधि साम्राज्यवाद, सैनिकीकरण, स्थानांतरण और महिलाओं के मताधिकार पर चर्चा करनेवाले थे। इसमें भारत को प्रतिनिधित्व मिले और एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में उसकी वैश्विक पहचान हो इसके लिए स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने यह कार्य किया था। इस ध्वज को मादाम कामा ने फहराया था।

कालांतर में वीर सावरकर ने एक और ध्वज का निर्माण किया, जिसमें रंग और उसमें बने प्रतीकों का विशेष ध्यान रखा। उनके अनुसार वह ध्वज हिंदू की जाति ही नहीं समस्त हिंदू धर्म का प्रतीक था। परंतु, इन ध्वजों को बहुसंख्य कांग्रेस सदस्योंवाली संविधान समिति में स्वीकार्यता मिलना असंभव था। इसके बाद भी स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने समस्त हिंदू धर्म और मानव जाति में श्रेष्ठ केसरी रंग और चक्र को स्थान दिलाने का कार्य किया। इसके लिए स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने डॉ.राजेंद्र प्रसाद को  तार लिखकर सूचित किया। जिसे, स्वतंत्र भारत के नए ध्वज में स्थान मिला।

स्वातंत्र्यवीर सावरकर के लिए डॉ.राजेंद्र प्रसाद का दुख
संविधान समिति के अध्यक्ष डॉ.राजेंद्र प्रसाद ने स्वतंत्रता प्राप्ति के अवसर पर अपने भाषण में कहा कि, हमारी मातृभूमि की सेवा के लिए सर्वस्व अर्पण करनेवाले ज्ञात और अज्ञात महान व्यक्तियों का स्मरण करके मेरा अंत:करण भर आया है। इन महान देशभक्तोंने हंसते हुए फांसी को स्वीकार किया, जीवित रहते हुए अंदमान में यमलोक की पीड़ा भोगी, स्वदेश में रहकर लज्जास्पद जीवन जीने के बजाय विदेश जाकर एकांतवास स्वीकार कर लिया था। यदि कांग्रेस पार्टी ने सावरकर को स्वतंत्रता का स्वागत करते हुए उन्हें नियंत्रण देकर सम्मानित किया होता, जिसके लिए सावरकर ने असाधारण कठिनाइयों का सामना किया था और परम बलिदान दिया था, तो यह शिष्टाचार और कृतज्ञता के दोहरे दर्शन से सुशोभित होता।

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