J-K Assembly polls: घाटी में चुनाव, अलगाववादी नेताओं ने लगाया दांव

इससे कश्मीर घाटी का राजनैतिक और सामाजिक वातावरण गरमा गया है। कश्मीरी राजनेताओं की शब्द शैली भी बदली है और मस्जिदों में तकरीरें भी बढ़ीं हैं।

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  • रमेश शर्मा

J-K Assembly polls: यह बांग्लादेश (Bangladesh) के घटनाक्रम का उत्साह हो अथवा कश्मीर (Kashmir) में कट्टरपंथी मानसिकता (radical mindset) से काम करने वालों की रणनीति कि प्रतिबंधित संगठन (strategy of banned organization) जमात-ए-इस्लामी (Jamaat-e-Islami) के पांच सदस्यों (five members) ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा (Jammu and Kashmir Assembly) के लिये निर्दलीय उम्मीदवार (independent candidate) के रूप से नामांकन पत्र भर दिया है।

इससे कश्मीर घाटी का राजनैतिक और सामाजिक वातावरण गरमा गया है। कश्मीरी राजनेताओं की शब्द शैली भी बदली है और मस्जिदों में तकरीरें भी बढ़ीं हैं।

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चुनाव मैदान में पांच पूर्व पदाधिकारी
जम्मू-कश्मीर में हो रहे विधानसभा चुनाव से एक चौंकाने वाली खबर आई है। प्रतिबंधित जमायत-ए-इस्लामी के पांच पूर्व पदाधिकारियों ने निर्दलीय रूप से अपनी उम्मीदवारी घोषित कर दी है। इस संगठन ने 1987 के बाद से किसी चुनाव में हिस्सा नहीं लिया था। 1993 से 2003 के बीच हुये हर चुनाव को “हराम” बताकर बहिष्कार की अपील की थी लेकिन जमात ने इस बार अपनी रणनीति में बदलाव किया है।

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प्रतिबंधित संगठन है जमायत-ए-इस्लामी
जमायत-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध है। जमात से जुड़े कार्यकर्ता अपने बैनर से चुनाव नहीं लड़ सकते इसलिये वे निर्दलीय रूप से चुनाव मैदान में आये हैं। अभी पाँच सदस्यों ने विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में अपने अपने नामांकन पत्र दाखिल किये हैं। संभावना है कि घाटी की कुछ और सीटों पर जमात से जुड़े कार्यकर्त्ता अपने नामांकन भर सकते हैं। जिन पांच सदस्यों ने अपने नामांकन प्रस्तुत किये उनकी शैली कुछ ऐसी थी, जिससे लगता है कि ये पांचों लोग किसी रणनीति के अंतर्गत ही नामांकन पत्र प्रस्तुत करने आये। इन सभी ने एक ही दिन अपने निर्वाचन क्षेत्रों में नामांकन प्रस्तुत किये। दूसरा, सभी ने कार्यकर्ताओं का एक अच्छा समूह एकत्र किया और मीडिया को खबर देकर बात भी की। सबकी बातचीत के विषय अलग थे पर संदेश एक ही था।

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बताया बदलते वक्त की जरुरत
जमात जुड़े जिन लोगों ने पर्चे दाखिल किये उनमें तलत मजीद ने पुलवामा निर्वाचन क्षेत्र से अपनी उम्मीदवारी घोषित की। मजीद ने मीडिया से कहा कि “देश और दुनिया की राजनीति में बदलाव आया है, यह बदलते वक्त की जरूरत है कि हम चुनाव लड़ रहे हैं।” मजीद ने कहा कि “मैं 2014 से जिस एजेण्डे पर काम कर रहा हूं आज भी उसपर कायम हूं।” मजीद ने एक बड़े आंदोलन आरंभ करने की घोषणा भी की। तलत मजीद कश्मीर में जमात-ए-इस्लामी का प्रमुख रहा है। इस संगठन में प्रमुख को “अमीर” कहा जाता है।

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दिवसर सीट से नामांकन
जमात के एक अन्य प्रमुख कार्यकर्ता नजीर अहमद ने दिवसर सीट से नामांकन प्रस्तुत किया और एक अन्य कार्यकर्ता एजाज अहमद ने जैनपोरा से दावेदारी प्रस्तुत की है। जमात के पदाधिकारी रहे सर्जन बरकती की बेटी सुगरा बरकती ने भी अपना नामांकन पत्र भरा। सर्जन बरकती की पहचान अलगाववादी कट्टरपंथी के रूप में रही है। वह आतंकवादियों को फंडिग के आरोप में अभी जेल में है। सर्जन बरकती की बेटी सुगरा बरकती ने अपना नामांकन प्रस्तुत करते हुये मीडिया से कहा कि वे अपने पिता की ओर से नामांकन भर रहीं हैं। जमात के एक और पूर्व नेता सायर अहमद रेशी ने पुलगाम विधानसभा से नामांकन पत्र प्रस्तुत किया। रेशी ने कहा कि वे “कश्मीरियत” के लिये चुनाव लड़ रहे हैं। रैशी ने मतदाताओं से अपील की है कि वे अंतरात्मा की आवाज के आधार पर मतदान करें।

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कट्टरपंथियों से संबंध
कश्मीर की मस्जिदों और मदरसों के रूप में जमात-ए- इस्लामी का एक बड़ा नेटवर्क है। कश्मीर की जिन मस्जिदों से कट्टरपंथ के प्रचार की खबरें आती हैं अथवा जिन मदरसों में आतंकवादी तैयार होने की खबरें आती है, वे जमायत-ए-इस्लामी के प्रभाव वाले क्षेत्र माने जाते हैं। पाकिस्तान के कुछ आतंकवादी संगठनों से संपर्क होने के आरोप भी इस संगठन पर लगे हैं। भारत सरकार ने वर्ष 2019 में इस संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया था। कुछ लोग गिरफ्तार हुये और लगभग तीन सौ लोगों को नजरबंद किया गया था लेकिन धीरे-धीरे कुछ लोग रिहा हुये और कुछ से नजरबंदी हटाई गई। इसी साल फरवरी माह में यह प्रतिबंध पाँच साल के लिये और बढ़ा दिया गया है।

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बड़े राजनैतिक आंदोलन की तैयारी
कश्मीर के इस चुनाव में जमात-ए-इस्लामी से जुड़े पांच लोगों के नामांकन आते ही कश्मीर के सामाजिक और राजनीतिक वातावरण में हलचल तेज हो गई है । नामांकन पत्र प्रस्तुत करते समय मजीद और सुगरा के वक्तव्य से स्पष्ट है कि जमात कश्मीर में बड़े राजनैतिक आंदोलन की तैयारी कर रही है। कश्मीर में पनप रहे अलगाववाद और कट्टरपंथ के पीछे भी इस संगठन के कुछ कार्यकर्ताओं की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जाती है।

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सत्ता परिवर्तन
इस संगठन के राजनैतिक अभियान का उद्देश्य केवल सत्ता परिवर्तन या सत्ता प्राप्त करने तक सीमित नहीं होते। वे सामाजिक कट्टरवाद से भी भरे होते हैं। भारत का इतिहास ऐसी घटनाओं से भरा है। हाल ही बांग्लादेश के घटनाक्रम में भी इसकी झलक मिलती है। बांग्लादेश में छात्र आंदोलन आरक्षण के विरुद्ध था लेकिन यह कब सत्ता परिवर्तन की ओर मुड़ गया, किसी को पता न चला। वह हिंसा केवल सत्ता परिवर्तन तक सीमित न रही। पूरे बांग्लादेश में एक साथ हिन्दुओं के घरों पर हमले हुये। हत्याएं हुईं, घर तोड़े गये, संपत्ति लूटी गई। कई उन छात्रों को भी मार डाला गया जो आंदोलन का हिस्सा थे। यह माना गया है कि उस कथित छात्र आँदोलन के पीछे जमात-ए-इस्लामी का हाथ था। इस संगठन पर वहाँ भी प्रतिबंध था लेकिन नई सरकार ने आते ही यह प्रतिबंध हटा लिया है।

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जमात-ए-इस्लामी की स्थापना
जमात-ए-इस्लामी की स्थापना 1941 में हुई थी। तब इस संगठन ने भारत में “खुदा के आदेश” की सत्ता स्थापित करने की घोषणा के साथ अपना कार्य आरंभ किया था। यह संस्था भारत विभाजन के विरुद्ध थी और पूरे भारत में “शरियत के अनुसार” शासन स्थापित करने की पक्षधर थी। भारत विभाजन के बाद जमात का भी विभाजन हुआ और अप्रैल 1948 में भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में अलग-अलग इकाइयाँ बनीं। जमात की पाकिस्तान इकाई ने अभियान चलाया कि राजनीति और प्रशासन दोनों में शरीयत के अनुसार काम हो। 1971 में बांग्लादेश मुक्ति आँदोलन आरंभ हुआ। जमात-ए-इस्लामी ने इसका भी विरोध किया। वह पाकिस्तान समर्थक थी। इसलिए बांग्लादेश में हुये ताजा सत्ता परिवर्तन को जमात-ए-इस्लामी ने आजादी का दिन कहा।

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अलगावादी कट्टरपंथियों की रणनीति
भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में जमात की इस कार्यशैली को देखते हुये ही कश्मीर के वातावरण में गर्माहट आ गई है। कल तक जिस संगठन के जो लोग चुनाव को “हराम” बताते थे वे अब स्वयं चुनाव मैदान में हैं। और कोई बड़ा आँदोलन आरंभ करने की घोषणा कर रहे हैं। जमात से जुड़े सदस्यों का पूरी तैयारी के साथ इस प्रकार चुनाव मैदान में आना कश्मीर के अलगावादी कट्टरपंथियों की रणनीति का दूसरा चरण माना जा रहा है, जिसमें बांग्लादेश के घटनाक्रम से उत्साह आया। हाल ही संपन्न हुये लोकसभा चुनाव में कश्मीर का एक कट्टरपंथी इंजीनियर राशिद जेल में रहकर कश्मीर की बारामूला लोकसभा सीट से दो लाख से अधिक वोटों से चुनाव जीत चुका है। राशिद पर पाकिस्तानी आतंकवादियों से संपर्क और अलगाववाद फैलाने का आरोप है। वह पहली बार 2005 में गिरफ्तार हुआ था। कुछ दिनों में रिहा हो गया था। उसने तिहाड़ जेल में रहते हुये लोकसभा चुनाव जीत लिया। अब माना जा रहा है कि इस परिणाम से प्रभावित होकर कश्मीर के कट्टरपंथी विधानसभा में अपनी उपस्थिति दर्ज करने के लिये मैदान में आये हैं। वहीं, बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के लिये जिस तरह छात्र आँदोलन से रास्ता बनाया गया, हो सकता है उसी से उत्साहित होकर मजीद ने कश्मीर में बड़े आँदोलन की घोषणा की है।

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जमात-ए-इस्लामी से प्रतिबंध हटाने की माँग
आने वाले दिनों में क्या तस्वीर बनेगी यह विधानसभा चुनाव के बाद ही स्पष्ट हो सकेगा लेकिन इन पाँचों उम्मीदवारों के मैदान में आने से कश्मीर के राजनैतिक और सामाजिक दोनों वातावरण में हलचल बढ़ गई है। कश्मीर की प्रमुख राजनेता महबूबा मुफ्ती ने सीधे-सीधे जमात-ए-इस्लामी से प्रतिबंध हटाने की माँग की है। वहीं, दूसरे प्रमुख नेता उमर अब्दुल्ला ने प्रतिबंध हटाने की बात तो कहीं लेकिन एक व्यंग्य भी जोड़ा “पहले चुनाव हराम था अब हलाल हो गया।” इसी के साथ इस शुक्रवार को इन पाँचों निर्वाचन क्षेत्र की कुछ मस्जिदों में तकरीरे भी हुई। हालाँकि इन तकरीरों में राजनीतिक बात नहीं हुई पर इनमें “दीन से जुड़ने” का आह्वान था। मीडिया की खबरों में इन तकरीरों को जमात की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। यह संभावना भी जताई कि महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला की पार्टियाँ यदि कुछ सीटों पर जमात के उम्मीदवारों के लिये विधानसभा पहुँचने का मार्ग बना दें तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। कश्मीर में 18 सितंबर, 25 सितंबर और 01 अक्टूबर को मतदान होगा और 4 अक्टूबर को मतों की गिनती होगी।

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