राजनीति क्या न करा दे…. इस पर अब तो नेता भी खुलकर कहने लगे हैं, राजनीति में कोई सदा के लिए मित्र या शत्रु नहीं होता। राजनीति के पैंतरेबाज नेताओं के लिए यह अब मंत्र हो गया है। जनता दल युनाइटेड के नेता नीतीश कुमार और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता शरद पवार का राजनीतिक कार्यकाल इसी मंत्र के अनुरूप पैंतरेबाजी से भरा पड़ा है। दोनों ही नेता कब किसके संग गठबंन बना लें और कब बिगाड़ लेंगे इसका अनुमान काल को भी नहीं होता। यह एक ऐसा स्वभाव है जो दोनों ही नेताओं में समानता को दर्शाता है। राजनीतिक जीवन में रंग बदलते नीतीश कुमार और पलटते शरद पवार बहुत ही सामान्य माना जाता है।
वैसे, कांग्रेस से अलग होनेवाले शरद पवार की पैंतरेबाजी का खेल लंबा रहा है, जबकि नीतीश कुमार कब राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और कब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ हो जाएंगे इसका अनुमान लगाना कठिन है। वर्तमान परिस्थिति ऐसी है कि, नीतीश कुमार जनता दल युनाटेड की तीर से भाजपा को घायल कर राष्ट्रीय जनता दल की लालटेन में सत्ता का ईंधन भर रहे हैं।
पवार का पावर गेम – ‘सत्ता सदा साथ रहे’
- 44 वर्ष पहले शरद पवार ने ऐसा पैंतरा बदला कि, वर्ष 1978 में कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री को अपना पद छोड़ना पड़ा था। शरद पवार, 1978 में कांग्रेस के 38 विधायकों को लेकर अलग हो गए थे। उन्होंने ‘समांतर कांग्रेस’ की स्थापना की। जिसके साथ जनता पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टी और शेतकरी कामगार पक्ष जुड़ गए और गठबंधन बना, जिसका नाम रखा गया ‘प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट’। इस फ्रंट के बल पर शरद पवार 18 जुलाई, 1978 को 38 वर्ष की आयु में मुख्यमंत्री बन बैठे। 18 महीने में शरद पवार की ‘प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट’ की सरकार गिर गई।
- सत्ता विहीन शरद पवार लगभग 6 वर्ष तक विपक्ष में बने रहे और फिर पैंतरा बदला। 7 दिसंबर, 1986 में शरद पवार ने कांग्रेस पार्टी में वापसी की, इसका लाभ मिला, राजीव गांधी की कृपा और वसंतदादा पाटील व मुख्यमंत्री शंकरराव चव्हाण के बीच शीत युद्ध का लाभ लेते हुए शरद पवार दूसरी बार 26 जून, 1988 में मुख्यमंत्री बन गए। इसके बाद पवार दो बार और मुख्यमंत्री बने, परंतु, कभी भी पूरा पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए।
- शरद पवार राज्य और केंद्र सरकार में मंत्री पद पर बने रहे, वर्ष 1998 में सोनिया गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद का कार्यभार संभाला। मार्च 1999 में भारतीय जनता पार्टी की अटल बिहारी के नेतृत्व में सरकार बनी, लेकिन एआईडीएमके के नेतृत्व में जे.जयललिता द्वारा समर्थन वापस लिये जाने से सरकार गिर गई। इस परिस्थिति में कांग्रेस ने सरकार बनाने का दावा प्रस्तुत किया, जिसमें मुलायम सिंह यादव ने सोनिया गांधी के विदेश मूल का मुद्दा उठाते हुए समर्थन न देने की घोषणा की। सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री होने के विरोध में शरद पवार ने भी विरोध का बिगुल फूंका और 15 मई 1999 को हुई कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में भारत में जन्में व्यक्ति को ही प्रधानमंत्री बनाने की भूमिका रखी। प्रधानमंत्री पद का सपना देखनेवाले शरद पवार ने कांग्रेस को दूसरी बार जोर का धक्का दिया। 25 मई, 1999 को शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर ने मिलकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नाम से अपना एक दल स्थापित किया।
- सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर कांग्रेस से विद्रोह करनेवाले शरद पवार ने वर्ष 1999 में फिर उसी कांग्रेस से गठबंधन किया। भाजपा और शिवसेना की युति सरकार को सत्ता से दूर करने के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन किया और विलासराव देशमुख के मुख्यमंत्रित्वकाल में सरकार स्थापित की, इस सरकार में एनसीपी नेता छगन भुजबल उपमुख्यमंत्री बनाए गए थे।
- अक्टूबर 2019 में हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा और शिवसेना की बीच सरकार स्थापना की बात बिगड़ी तो राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के अध्यक्ष शरद पवार ने रिमोट कंट्रोल की भूमिका निभाई। शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे के सदा निशाने पर रहे शरद पवार ने बालासाहेब ठाकरे के पुत्र उद्धव ठाकरे को आगे करके एनसीपी और कांग्रेस के साथ महाविकास आघाड़ी के रूप में गठबंधन खड़ा किया और राज्य सरकार बनाई।
सत्ता के लिए काम, मिला पलटू राम का नाम
सत्ता मिले, संगत बदलने को सदा तैयार, यह गति अब नीतीश कुमार की हो गई है। पिछले 22 वर्ष 6 महीने में आठवीं बार मुख्यमंत्री बन सकते हैं। उनकी राजनीतिक पैंतरेबाजी महाराष्ट्र में शरद पवार से कम शातिर नहीं है। उनकी राजनीतिक पैंतरेबाजी ऐसी है कि, उन्हें पलटू राम का प्रशस्ति पत्र भी मिला हुआ है। अब तक चार बार नीतीश कुमार ने राजनीतिक पाले बदले हैं, जबकि जेडीयू के संस्थापक सदस्य शरद यादव को भी बाहर का रास्ता दिखाने में कमी नहीं छोड़ी। इस सबके बाद उनका नाम मिस्टर क्लीन के नाम से जाना जाता है।
- नीतीश कुमार 1974 से जय प्रकाश नारायण के आंदोलन से जुड़े थे। 1977 में राजनीतिक जीवन की शुरूआत करने के बाद 1985 में पहली बार हरनौत से विधायक बने। राजनीतिक पैंतरेबाजी का पहला धक्का नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव को दिया। दोनों ही नेता उस समय जनता दल में हुआ करते थे। वर्ष 1994 में नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव का विरोध किया और जॉर्ज फर्नांडिस के साथ मिलकर समता पार्टी का गठन किया। वर्ष 2003 में समता पार्टी का जनता दल (युनाइटेड) में विलय कर लिया। उस समय शरद यादव जनता दल युनाइटेड (जेडीयू) के अध्यक्ष थे और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार थे। इस समय जेडीयू भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के साथ थी।
- वर्ष 2013 में लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान समिति का अध्यक्ष बनाए जाने से नाराज होकर नीतीश कुमार ने एनडीए से नाता तोड़ लिया। भाजपा और जेडीयू का यह साथ 17 वर्षों तक रहा। पहली बार 1998 में दोनों दल साथ आए थे।
- वर्ष 2015 में नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव से फिर हाथ मिलाया। नीतीश कुमार ने जेडीयू, राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के साथ महागठबंधन खड़ा किया और वे मुख्यमंत्री बने। लेकिन 26 जुलाई, 2017 में अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। इसके साथ ही महागठबंधन भी समाप्त हो गया। नीतीश कुमार के इस कदम ने क्षुब्ध बड़े भाई लालू प्रसाद यादव ने उस समय नीतीश कुमार को नया नाम दिया ‘पलटू राम’ का।
- 27 जुलाई, 2017 को नीतीश कुमार ने भारतीय जनता पार्टी के साथ सरकार बनाई।
- वर्ष 2017 में महागठबंधन तोड़ने से नाराज शरद यादव ने नीतीश कुमार के भाजपा के साथ जाने के निर्णय का स्पष्ट रूप से विरोध किया। जिसका परिणाम यह हुआ कि, जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार ने शरद यादव को ही पार्टी से बाहर कर दिया।
- वर्ष 2020 के विधान सभा चुनाव में भाजपा के 74 विधायक और जेडीयू के 43 विधायक निर्वाचित हुए थे। इसके बाद भी भाजपा ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया। इस सबको पीछे छोड़ते हुए नीतीश कुमार ने 9 अगस्त, 2022 को राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से नाता तोड़ते हुए, सत्ता के पुराने साथी रहे राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के संग एक बार फिर सरकार बनाने की घोषणा कर दी।