महेश सिंह
Lok Sabha elections 2024: आखिर वो बात सामने आ ही गई, जिसकी चर्चा थी। लोकसभा चुनाव के दौरान जिस तरह भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने आरएसएस से दूरी बनाये रखी, उसकी चर्चा बुद्धिजीवियों और मीडिया में पहले से ही होती रही थी। दूरी बनाना तो छोड़िए, उससे भी एक कदम आगे बढ़कर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने जो बयान दिया था, उसे लेकर हैरानी होना स्वाभाविक ही है। उन्होंने कह दिया कि अब हमें आरएसएस की जरुरत नहीं है। अब भाजपा अपने दम पर चुनाव लड़ सकती है। जब लोकसभा चुनाव प्रचार चरम पर था, ऐसे समय में नड्डा के इस बयान ने पार्टी को कितना नुकसान पहुंचाया, यह शोध का विषय हो सकता है, लेकिन यह सच है कि इससे नड्डा के साथ ही भाजपा के बदलते तेवर का खुलासा हो गया। हालांकि संघ ने नड्डा के इस बयान पर धैर्य रखा और चुनाव समाप्त होने तक किसी ने भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। लेकिन बात दिल में लगने वाली थी। इसलिए चुनाव के बाद इशारों में ही सही, संघ सरसंचालक डॉ. मोहन भागवत सहित इंद्रेश कुमार जैसे नेताओं ने भी भाजपा को अपना संदेश दे ही दिया।
मोदी बनाम इंडी गठबंधन
दरअस्ल जेपी नड्डा ही नहीं, पार्टी के अन्य कुछ नेताओं में चुनाव प्रचार के दौरान अहंकार के भाव देखने को मिले। हालांकि यह सबको पता है कि भाजपा ने यह चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा और स्थानीय सांसदों तथा नेताओं को किनारे रखा। पूरे चुनाव प्रचार पर दृष्टिपात करें तो यही लगता है कि यह चुनाव मोदी बनाम विपक्षी गठबंधन लड़ा गया था। अब जब भाजपा को मनचाहे परिणाम नहीं मिले हैं तो यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या पार्टी का यह निर्णय सही था। नरेंद्र मोदी पार्टी ही नहीं, देश और दुनिया के सर्वमान्य नेता हैं। इसमें कोई शक नहीं है, लेकिन सच यह है कि लोकसभा जैसा महत्वपूर्ण चुनाव लड़ते समय और भी चेहरे व मुद्दे होने चाहिए थे। ऐसा नहीं हुआ। इसका खमियाजा पार्टी को कम सीटों पर जीत हासिल कर चुकाना पड़ा।
व्यक्ति से बड़ा होता हैल दल
पार्टी हमेशा व्यक्ति से बड़ी होती है। नेता आते-जाते रहते हैं लेकिन पार्टी वटवृक्ष की तरह खड़ी रहती है। भाजपा में भी जनसंघ से लेकर अब तक के बदलाव को देखा जा सकता है। बदलते नेताओँ को देखा जा सकता है। लेकिन नरेंद्र मोदी की छवि ऐसी बनाई जा रही है, जैसे वे पार्टी से बड़े हों। हालांकि यह भी सच है कि उनके कार्यकाल में पार्टी ने नई ऊंचाई प्राप्त की है। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं हो सकता कि पार्टी का महत्व ही खत्म हो गया। देश-दुनिया ने चुनाव प्रचार के दौरान देखा कि प्रधानमंत्री स्वयं भारतीय जनता पार्टी का नाम लेने से परहेज कर रहे थे। वे अपने नाम को आगे कर ही प्रचार कर रहे थे। वे हर भाषण में मोदी की गारंटी जैसे नारे देते थे। वे कहते थे मोदी जो कहता है वह करता है। यह मोदी की सरकार है, घर में घुसकर मारती है। इस तरह की बातें करना गलत तो नहीं है, लेकिन अपने नाम के साथ भारतीय जनता पार्टी के गौरवशाली इतिहास को भी जनता के सामने रखना बेहतर होता। मात्र मोदी के महिमामंडन से पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा।
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अन्य नेताओं ने भी किया अनुसरण
जब पीएम मोदी ने स्वयं पार्टी और पार्टी के पूर्व के नेताओं को चुनाव प्रचार में किनारे कर दिया, तो पार्टी के अन्य नेताओं ने भी यही किया। अमित शाह, जेपी नड्डा, योगी आदित्यनाथ जैसे नेताओं ने भी उनका अनुसरण किया। इन नेताओं ने भी चुनाव प्रचार के दौरान वही बातें कहीं, जो मोदी कह रहे थे। इस तरह मोदी के साथ ही अन्य नेताओं ने भी पार्टी को दरकिनार किया और सभी मोदी-मोदी करते दिखे। निश्चित रूप से इसका प्रभाव पार्टी के वोटबैंक पर पड़ा, जिसका परिणाम यह हुआ कि पार्टी को 2019 के 303 के मुकाबले मात्र 240 सीटों पर संतोष करना पड़ा।
नेताओं के लिए बड़ी चेतावनी
लोकसभा चुनाव 2024 के परिणाम भाजपा और पार्टी नेताओं के लिए बड़ी चेतावनी है। हालांकि अच्छी बात यह है, जनता ने एनडीए सरकार को जनादेश दे दिया है। लेकिन कम सीटें आना भाजपा के लिए बड़ा सबक है। भविष्य में उसे जनता की इस चेतावनी को गंभीरता से लेकर अपनी रणनीति में बदलाव करना होगा। उसे व्यक्ति के साथ ही पार्टी को भी महत्व देना होगा। अहंकार त्याग कर जनता के कल्याण की बात और काम करना होगा। विपक्ष पर हमला करते समय भी धैर्य और भाषा की मर्यादा का पालन करना होगा। इससे भी बड़ी बात, उसे आरएसएस के प्रति सम्मान का भाव रखकर उससे सहयोग लेते रहना होगा। क्योंकि भाजपा को यहां तक पहुंचाने नें आरएसएस की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है।