Lok Sabha Elections 2024: जानिये, पहले चरण में महाराष्ट्र में किस सीट पर कैसा बन रहा है समीकरण

महाराष्ट्र की इन सीटों पर जीत का गणित इस बात पर भी निर्भर करता है कि कांग्रेस बीजेपी के अलावा मैदान में उतरे 'बीआरएसपी' वंचित बहुजन अघाड़ी, बीएसपी और निर्दलीय उम्मीदवारों को कितने वोट मिलते हैं।

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Lok Sabha Elections 2024: पूरे मध्य भारत में गर्मी की लहर के बीच, लोकसभा चुनाव 2024 के पहले चरण से पहले महाराष्ट्र के विदर्भ के बड़े हिस्से में हाई-वोल्टेज प्रचार जोर पकड़ चुका है, जिसमें मुख्य रूप से भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी लड़ाई देखने को मिलेगी। कांग्रेस पांच निर्वाचन क्षेत्रों नागपुर, रामटेक (एससी), चंद्रपुर, भंडारा-गोंदिया और गढ़चिरौली-चिमूर (एसटी) में मैदान में है। इन पर कुल 97 उम्मीदवार मैदान में हैं, जिनमें दो हाई-प्रोफाइल भाजपा नेता नितिन गडकरी, जो केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री हैं, और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महागठबंधन सरकार में वरिष्ठ मंत्री सुधीर मुनगंटीवार शामिल हैं। गडकरी नागपुर से तो मुनगंटीवार चंद्रपुर से मैदान में हैं।

नागपुर में गडकरी के लिए बीजेपी की तैयारी
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डाॅ. मोहन भागवत के करीबी सहयोगी और दो बार के सांसद गडकरी का मुकाबला कांग्रेस उम्मीदवार विकास ठाकरे, नागपुर पश्चिम से विधायक और ऑरेंज सिटी के पूर्व मेयर से है। ठाकरे को वंचित बहुजन अघाड़ी प्रमुख प्रकाश अंबेडकर का समर्थन प्राप्त है। अंबेडकर ने महाविकास अघाड़ी के साथ गठबंधन टूटने के बावजूद उनकी उम्मीदवारी का समर्थन किया है। 2014 और 2019 में, गडकरी ने कांग्रेस के दिग्गजों विलास मुत्तेमवार और नाना पटोले को हराया था। पटोलो मोदी के खिलाफ विद्रोह कर भाजपा छोड़ने वाले पहले नेता थे। गडकरी को काम पूरा करने के लिए जाना जाता है। उन्हें भारत के हाईवे मैन के रूप में जाना जाता है, लेकिन वह अक्सर दिल से बोलते हैं और बिना किसी हिचकिचाहट के अपनी बात कहते हैं। भाजपा के संकटमोचक उप मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष चन्द्रशेखर बावनकुले, दोनों नागपुर के मूल निवासी हैं। ये गडकरी के लिए कई सभाओं को संबोधित कर चुके हैं।

मुनगंटीवार को कड़ी चुनौती
चंद्रपुर में, राज्य के वन और सांस्कृतिक मामलों के मंत्री और चंद्रपुर से छह बार विधायक रहे सुधीर मुनगंटीवार को कांग्रेस उम्मीदवार प्रतिभा धानोरकर से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। उनके दिवंगत पति बालू धानोरकर ने भाजपा के दिग्गज हंसराज को हराया था। मुनगंटीवार ने नई दिल्ली में नए संसद भवन और अयोध्या में राम मंदिर के लिए अपने गृहनगर में सागौन की लकड़ी भेजने का बीड़ा उठाया था। दरअसल, राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता विजय वडेट्टीवार अपनी बेटी शिवानी को इस सीट (लोकसभा चुनाव 2024) से मैदान में उतारने के इच्छुक थे, लेकिन आलाकमान ने इनकार कर दिया। चंद्रपुर अपनी कोयला खदानों के लिए प्रसिद्ध है और इसका समृद्ध इतिहास है।

रामटेक की लड़ाई में शिवसेना का भरोसा!
महाराष्ट्र में रामटेक लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र, आधिकारिक तौर पर ग्रामीण नागपुर का हिस्सा है। यह राज्य के 48 निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस सीट पर कांग्रेस ने श्याम कुमार बर्वे को उम्मीदवार बनाया है, जिन्होंने नामांकन रद्द होने के बाद अपनी पत्नी रश्मि बर्वे की जगह ली है। रश्मि के जाति प्रमाण पत्र को चुनौती दी गई, जिससे उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया। राजू पार्वे सेना उम्मीदवार के तौर पर चुनाव (Lok sabha 2024) लड़ रहे हौं। रामटेक सीट पर बीजेपी और शिंदे सेना के बीच लंबे समय से खींचतान चल रही थी, लेकिन आखिरकार जीत शिवसेना की हुई। हालांकि, शिवसेना ने अपने मौजूदा सांसद को हटा दिया और विधायक पार्वे को टिकट दिया, जो पिछले महीने ही कांग्रेस से पार्टी में आए हैं। रामटेक लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व 1984 और 1989 में पूर्व प्रधान मंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने किया था। 2009 में इस सीट से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मुकुल वासनिक ने जीत हासिल की थी। 1999 से 2007 के बीच इस क्षेत्र में शिवसेना का प्रवेश शुरू हुआ। पिछले दो चुनावों 2014 और 2019 में आपने अविभाजित शिवसेना के हिस्से के रूप में सीट जीती। विभाजन के बाद वह शिंदे समूह में शामिल हो गए।

भंडारा-गोंदिया में बड़ी चुनौती
भंडारा-गोंदिया निर्वाचन क्षेत्र से संविधान निर्माता डॉ. बाबा साहब अम्बेडकर चुनाव लड़े थे और हार गये थे। यहां से डाॅ. श्रीकांत जिचकर हार गए थे, उनके बाद केंद्र में मंत्री प्रफुल्ल पटेल हार गए। सबकी निगाहें उस भंडारा-गोंदिया लोकसभा क्षेत्र पर हैं। यहां पहले चरण में 19 अप्रैल को चुनाव हो रहा है और फिलहाल यहां चुनाव प्रचार थम चुका है। 18 उम्मीदवार मैदान में हैं और भाजपा, कांग्रेस, वंचित, बसपा और निर्दलीय व बागियों के कारण यहां चुनावी समीकरण काफी दिलचस्प हो गया है। करीब 25 साल बाद कांग्रेस पार्टी का पंजा चुनाव चिन्ह ईवीएम मशीनों पर दिखाई देगा। अब चूंकि अजीत पवार का गुट बीजेपी के साथ है तो मौजूदा बीजेपी सांसद सुनील मेंढे को महागठबंधन (Lok sabhaElection 2024) का उम्मीदवार बनाया गया है। कांग्रेस ने उनके खिलाफ प्रशांत पडोले को उतारा है। इन दोनों को ही मुख्य उम्मीदवार माना जा रहा है, संजय केवट की पार्टी बीजेपी छोड़कर बीएसपी से मैदान में उतरे संजय कुंभलकर और निर्दलीय सेवक वाघाये भी इस चुनाव में प्रभाव डाल रहे हैं।

2014 में पटोले ने बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा था और प्रफुल्ल पटेल को हराया था। निर्वाचित होने के बाद पटोले ने बीजेपी छोड़ दी। फिर 2018 के उपचुनाव में, एनसीपी ने मधुकर कुकड़े के रूप में निर्वाचन क्षेत्र वापस जीत लिया। 2019 में बीजेपी के सुनील मेंढे ने एनसीपी के नाना पंचबुद्धा को हराया। अब मेंढे मैदान में वापस आ गए हैं और उनके साथ पटेल की ताकत भी आ गई है। लेकिन इस बार बागियों से भी चुनौतियां हैं। मेंढे के लिए बीजेपी प्रत्याशी नितिन गडकरी, योगी आदित्यनाथ, प्रफुल्ल पटेल की सभाओं में जोर-शोर से प्रचार कर अपील की जा रही है कि मेंढे को वोट का मतलब मोदी को वोट है। इसके अलावा परिणय फुके ने भी नाराजगी दूर कर अपना अभियान शुरू कर दिया है। यहां नए उम्मीदवार के लिए पटोले की प्रतिष्ठा दांव पर है।

गढ़चिरौली-चिमूर में कड़ा मुकाबला
क्षेत्रफल के हिसाब से सबसे बड़े लोकसभा क्षेत्र गढ़चिरौली-चिमूर सीट पर बीजेपी और कांग्रेस (Lok sabhaElection 2024) के बीच सीधा मुकाबला होगा। अभियान अपने अंतिम चरण में पहुंच गया है. हालांकि, यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि कौन मजबूत है। हालांकि मौजूदा बीजेपी सांसद अशोक नेतेरी तीसरी बार जीत का दावा कर रहे हैं, वहीं कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. किरसन को बनाया गया। गढ़चिरौली-चिमूर निर्वाचन क्षेत्र में कुल 10 उम्मीदवार मैदान में हैं। निर्वाचन क्षेत्र की छह विधानसभाओं के समग्र माहौल को देखते हुए, महायुति के नेता अशोक और महाविकास अघाड़ी के उम्मीदवार डॉ किरसन के बीच सीधी टक्कर दिख रही है।

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जीत का गणित इस बात पर भी निर्भर करता है कि कांग्रेस बीजेपी के अलावा मैदान में उतरे ‘बीआरएसपी’ वंचित बहुजन अघाड़ी, बीएसपी और निर्दलीय उम्मीदवारों को कितने वोट मिलते हैं। पिछले तीन चुनावों पर गौर करें तो वंचित और बसपा को एक लाख से ज्यादा वोट मिले थे। लेकिन इस साल दोनों पार्टियों की ओर से दिए गए उम्मीदवार ज्यादा प्रभावी नहीं होने के कारण राजनीतिक हलके का ध्यान इस बात पर है कि ये वोट किसे मिलेंगे। इसके साथ ही यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि बहुसंख्यक आदिवासी समुदाय इस समय किसके साथ खड़ा है। विदर्भ में 10 निर्वाचन क्षेत्र हैं, जिनमें से 5 निर्वाचन क्षेत्रों में 19 अप्रैल को चरण-1 में मतदान होगा।

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