Lok Sabha elections के दो चरणों में हुए कम मतदान(Low voting in two phases) ने राजनीतिक दलों(Political parties) की धड़कनें बढ़ा रखी हैं। कम मतदान को लेकर राजनीतिक दलों, नेताओं और चुनाव आयोग(Election Commission) की अपनी राय है। हालांकि इतिहास के पन्नों को पलटा जाए तो कम मतदान नाराजगी या उदासीनता की बजाय इस बात का प्रतीक भी होता है कि वोटर सरकार बदलने के मूड में नहीं(Voters are not in a mood to change the government) है। उल्लेखनीय है कि चुनाव के दो चरणों में देश में सबसे कम मतदान सबसे ज्यादा सांसद चुनने वाले उप्र में हुआ है।
जानकारों के मुताबिक, कम मतदान के पीछे गर्मी कोई बहुत अहम वजह नहीं है, 2019 में भी गर्मियों में ही चुनाव हुए थे। हां यह जरूर कहा जा सकता है कि वोटर केन्द्र की सरकार(Central Government) बदलने के मूड में नहीं है इसलिए 1971, 1984 और 1989 के लोकसभा चुनावों जैसी कोई बदलाव की लहर नहीं है।
2024 चुनाव, दो चरणों में कम मतदान
उप्र में 19 अप्रैल को पहले चरण में कुल 61.11 फीसदी वोटिंग हुई। साल 2019 के आम चुनाव में इन आठ सीटों पर 66.41 फीसदी वोटिंग रिकार्ड हुई थी। पिछले चुनाव के मुकाबले पहले चरण की इन सीटों पर करीब 5.39 फीसदी कम वोटिंग हुई है। बीती 26 अप्रैल को प्रदेश में दूसरे चरण में वोटिंग प्रतिशत 55.39 रहा। पिछले चुनाव में इन सीटों पर 62.18 प्रतिशत वोट पड़े थे। इस हिसाब से साल 2024 के चुनाव में दूसरे चरण में पिछले चुनाव के मुकाबले 6.79 प्रतिशत कम वोटिंग रिकार्ड हुई।
आंकड़ों के हवाले से
पांचवीं लोकसभा के गठन के लिए 1971 में हुए आम चुनाव में उप्र में 85 सांसद चुने गए। इस चुनाव में वोटिंग प्रतिशत 46.01 रहा। वहीं 1984 में वोटिंग प्रतिशत 55.81 था। वहीं 1989 के आम चुनाव में वोटिग प्रतिशत 51.27 रहा। 1975 की इमरजेंसी के बाद हुए 1977 में हुए चुनाव में उप्र में वोटिंग प्रतिशत 56.44 था। इस चुनाव में भारतीय लोकदल ने प्रदेश की सभी 85 सीटों पर बड़े अंतर के साथ जीत हासिल की थी। कांग्रेस शून्य पर क्लीन बोल्ड हुई थी।
पिछले दो चुनाव में स्थिर रहा वोटिंग प्रतिशत
2014 के आम चुनाव में उप्र में वोटिंग प्रतिशत 58.44 रहा। इस चुनाव में भाजपा ने 80 में से 71 सीटें जीती थी। 2019 के चुनाव में प्रदेश में वोटिंग प्रतिशत में मामूली बढ़ोत्तरी दर्ज की गई। इस चुनाव में 59.21 प्रतिशत वोटिंग हुई। पिछले दो चुनाव के वोट प्रतिशत में कोई बड़ा अंतर नहीं आया। यानी प्रदेश के वोटर केंद्र की मोदी सरकार को बदलने के मूड में नहीं थे। देश में भाजपा को प्रचंड बहुमत मिला। केंद्र में दोबारा भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी।
कम वोटिंग का मतलब
राजनीतिक विशलेषक प्रवीण वशिष्ठ के अनुसार, सामान्य तौर पर बहुत अधिक वोटिंग होने से ऐसा संदेश जाता है कि यह परिवर्तन के लिए उमड़ी भीड़ है, जबकि कम वोट का मतलब होता है कि वोटर्स बदलाव नहीं चाहता है, उसे सत्ता पक्ष में अपने लिए काम होने की उम्मीद दिखती है। बकौल वशिष्ठ, यही नहीं इस बार लोकसभा चुनाव राजनीतिक दल आधारित होने के बजाए प्रत्याशी आधारित देखा जा रहा है इसलिए प्रत्याशी के धर्म व जाति की वजह से वोटरों में भी धार्मिक व जातीय समीकरण हावी दिख रहे हैं। इस बार का मतदान काफी बिखरा नजर आ रहा है।