Lok Sabha Elections: यूपी में भाजपा को क्यों मिली कम सीटें? पराजित उम्मीदवारों के प्रदर्शन की होगी समीक्षा

भाजपा ने यूपी की 80 में से सिर्फ 33 सीटें जीती, जबकि 2019 में उसे 63 सीटें मिली थीं। इसके अलावा समाजवादी पार्टी ने 37 लोकसभा सीटें जीतकर भाजपा को राज्य में दूसरे नंबर पर धकेल दिया था।

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Lok Sabha Elections: लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) के नतीजों के बाद विभिन्न पार्टियां अपने-अपने प्रदर्शन का विश्लेषण कर रही हैं। सूत्रों के मुताबिक इसी सिलसिले में उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) (भाजपा) के खराब प्रदर्शन के कारणों की रिपोर्ट मुख्यालय को भेजी गई है।

भाजपा ने यूपी की 80 में से सिर्फ 33 सीटें जीती, जबकि 2019 में उसे 63 सीटें मिली थीं। इसके अलावा समाजवादी पार्टी ने 37 लोकसभा सीटें जीतकर भाजपा को राज्य में दूसरे नंबर पर धकेल दिया था।

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कांग्रेस को 6 सीटें
भाजपा के सहयोगी दलों को 3 सीटें, कांग्रेस को 6 सीटें जबकि चंद्रशेखर आजाद रावण को एक सीट मिली थी। पार्टी की हार पर लगातार विचार-विमर्श हो रहा है। आज सबसे पहले भाजपा कार्यालय में पार्टी पदाधिकारियों की बैठक होगी, जिसमें कानपुर मंडल के पराजित प्रत्याशियों के प्रदर्शन की समीक्षा की जाएगी। खबरों के मुताबिक मुख्य फोकस मलाईदार सीटों पर रहेगा, जिनमें अमेठी, रायबरेली, सुल्तानपुर, फैजाबाद, मुफ्फनगर, इलाहाबाद, सहारनपुर शामिल हैं।

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हार के संभावित कारण क्या रहे?
यूपी में करारी हार के बाद मंथन कर रही भाजपा ने 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। भाजपा को जहां 63 से ज्यादा सीटें जीतने की उम्मीद थी, वहीं 2019 में उसके प्रदर्शन ने लोकसभा चुनाव के नतीजों ने पार्टी को सकते में डाल दिया है। सूत्रों के मुताबिक, पराजित प्रत्याशियों की रिपोर्ट क्षेत्रीय पार्टी मुख्यालय को भेज दी गई है।

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जिसमें भाजपा के कम सीटें जीतने के कारण भी बताए गए हैं:-

  • सार्वजनिक आचरण: जनता में उन सांसदों के प्रति नाराजगी थी, जो दो बार से ज्यादा जीते थे। रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ सांसदों का आचरण भी ठीक नहीं था।
  • टिकट वितरण: राज्य सरकार ने करीब 3 दर्जन सांसदों के टिकट रद्द करने या बदलने को कहा था, लेकिन इस पर ध्यान नहीं दिया गया। टिकट बदले जाते तो नतीजे और बेहतर होते।
  • संविधान की बात: भाजपा संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने के विपक्ष के नारे का मुकाबला नहीं कर पाई। विपक्ष अपने बयान में सफल रहा।
  • समन्वय की कमी: पार्टी पदाधिकारियों और सांसदों के बीच समन्वय ठीक नहीं रहा। यही वजह रही कि इस बार पूरे प्रदेश में बहुत कम घरों तक वोटर स्लिप पहुंची।
  • स्थानीय समर्थन नहीं: कुछ जिलों में विधायकों की अपने ही एमपी उम्मीदवारों से नहीं पटी। विधायकों ने उनका ठीक से समर्थन नहीं किया, जिससे हार हुई।
  • लाभार्थियों से सीधा संवाद नहीं: भाजपा के लाभार्थी 8500 रुपये प्रति माह (कांग्रेस की ओर से) की गारंटी से आकर्षित हुए। यहां भी लाभार्थियों से सीधा संवाद न होना हार का कारण बना।
  • अलोकप्रिय सांसद प्रत्याशी: कई जिलों में सांसद प्रत्याशी की अलोकप्रियता इतनी तीव्र हो गई कि भाजपा कार्यकर्ता घरों से बाहर ही नहीं निकले।
  • कार्यकर्ताओं के प्रति उदासीनता: कार्यकर्ताओं की अनदेखी भी एक बड़ा मुद्दा रहा। निराश और उदासीन जमीनी कार्यकर्ताओं ने पार्टी को वोट तो दिया, लेकिन दूसरों को वोट देने के लिए प्रेरित नहीं किया।
  • पेपर लीक मुद्दा: विपक्ष पेपर लीक और अग्निवीर जैसे मुद्दों पर लोगों का ध्यान भटकाने में सफल रहा।

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