मध्य प्रदेश में उप-चुनावों की सरगर्मी है। यहां 3 नवंबर को तय होगा कि सत्ता पर शिवराज रहेंगे या कमलनाथ वापसी करेंगे। यह चुनाव इसलिए भी विशेष है क्योंकि पहली बार है कि एक साथ किसी राज्य में 28 सीटों पर उप-चुनाव हो रहा है।
मध्य प्रदेश में कांग्रेस के दर्द की दवा बन सकता है उप-चुनावों का परिणाम जबकि, कमल खिला रहे इसके लिए आवश्यक है 28 विधान सभा उप-चुनावों का परिणाम बीजेपी के हक में आए। इन दोनों ही परिणामों के लिए संबंधित दोनों दल एंड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। राज्य में 3 नवंबर को मतदान होगा और 10 नवंबर को मतगणना होगी।
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इस्तीफे से रिक्त हुई हैं अधिकतर सीटें
एमपी के जिन 28 सीटों पर मतदान होना है उनमें से 25 सीटें ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों के कांग्रेस से इस्तीफे के बाद रिक्त हुई हैं। बाकी बचीं तीन सीटों में से दो सीटें कांग्रेस विधायकों के निधन से और एक सीट भाजपा विधायक के निधन से रिक्त हुई है।
क्यों आई इतनी सीटों पर उप-चुनाव की नौबत?
इस साल मार्च में कांग्रेस के 22 विधायकों के त्यागपत्र देकर भाजपा में शामिल होने के कारण प्रदेश की तत्कालीन कांग्रेस सरकार अल्पमत में आ गई थी, जिसके कारण कमलनाथ ने 20 मार्च को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद 23 मार्च को शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी। इसके बाद कांग्रेस के तीन अन्य विधायक भी कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए।
कमल की राह आसान, कमलनाथ के लिए चुनौती
मध्य प्रदेश विधान सभा में बहुमत के लिए बीजेपी को मात्र 9 विधायकों की आवश्यकता है जबकि कांग्रेस को 28 सीटों पर जीत की आवश्यकता है। यदि संख्या के आधार पर देखा जाए तो यह उप-चुनाव बीजेपी के लिए बहुत आसान माना जा रहा है। जबकि जिन 28 सीटों पर उप-चुनाव हो रहे हैं उनमें से 27 सीटें कांग्रेस की थीं। इसलिए भाजपा को इन सीटों पर जीत हासिल करना इतना आसान भी नहीं है।
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12 मंत्री भी मैदान में…
28 सीटों के उप-चुनाव में 12 मंत्रियों सहित कुल 355 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। भाजपा ने उन सभी 25 लोगों को अपना प्रत्याशी बनाया है, जो कांग्रेस विधायक पद से इस्तीफा देकर पार्टी में शामिल हुए हैं।
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