राज्यपाल की बात, भाजपा में बहुबात

भाजपा के एक कद्दावर नेता, एक पूर्व मंत्री और अब मंत्रिमंडल विस्तार होता है, तो मलाईदार मंत्रिपद के दावेदार माने जानेवाले नेता ने तो सीधे लिख दिया कि, हम राज्यपाल महोदय के विचार से बिल्कुल सहमत नहीं हैं।

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महाराष्ट्र के राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी का गुजराती और राजस्थानी समाज को प्रोत्साहित करना, नए नए सत्ताविहीन हुए नेताओं को अवसर दे गया। चहुंओर से विपक्ष के नेता राज्यपाल महोदय पर मराठी जनता को कम आंकने का आरोप लगाने लगे। लेकिन, बात तब अटपटी लगी, जब राज्यपाल के समर्थन में भाजपा के कुछ नेताओं ने बचाव किया और सोशल मीडिया पर विपक्ष को उत्तर दिया तो कुछ ने राज्यपाल के उस वक्तव्य से किनारा कर लिया।

एक ही पार्टी में एक ही मुद्दे पर दो पक्ष? बात कुछ जमी नहीं। पार्टी के एक कद्दावर नेता, एक पूर्व मंत्री और अब मंत्रिमंडल विस्तार होता है, तो मलाईदार मंत्रिपद के दावेदार माने जानेवाले नेता ने तो सीधे लिख दिया कि, हम राज्यपाल महोदय के विचार से बिल्कुल सहमत नहीं हैं। यह मुद्दा जब तूल पकड़ रहा था, उसी समय भाजपा के ही दूसरे कद्दावर नेता राज्यपाल के समर्थन में उठ खड़े हुए। मुंबई में बड़ी जिम्मेदारी निभा रहे एक विधायक ने तो महाविकास आघाड़ी से प्रश्न ही पूछ लिया कि, महाराष्ट्र के राष्ट्र पुरुष और मराठी अस्मिता की पहचान रहे लोगों का अपमान करनेवालों लोगों के साथ सत्ता साझा करते हुए शिवसेना को मराठी पन का आभास भूल गया था क्या?

भाजपा की परंपरा
वैसे, भाजपा की बात करें तो किनारा करने की उसकी परंपरा रही है। जब किसी नेता द्वारा किया गया वक्तव्य विरोध में जाने लगे तो, तत्काल उससे पल्ला झाड़ते नेता सामने आ जाते हैं। इसके अन्य उदाहरण के रूप में नुपुर शर्मा के प्रकरण को ही देख लीजिये, भाजपा के विचारों के अनुरूप ही वे उस वाद-विवाद कार्यक्रम में बोल रही थीं। परंतु, जब विपक्ष के व्यक्ति ने सीधे ईश्वर की निंदा करना प्रारंभ कर दिया तो उन्होंने उस व्यक्ति के धर्म का उदाहरण देकर आईना दिखा दिया। जिस बात को नुपुर शर्मा ने कहा वह तथ्यपरक बात है, जिसे उस विशिष्ट धर्म की किताब में लिखा गया है, उस धर्म के ज्ञाता सार्वजनिक रूप से बोलते रहे हैं परंतु, वही बात चुंकि, नुपुर शर्मा ने कहा दी थी, जो हिंदू हैं और भाजपा से थीं तो उसका बवाल मच गया। जब बवाल मचा और दुश्मन देश से पोषित लोगों ने दुष्प्रचार किया तो, भाजपा ने फिर पल्ला झाड़ा। आनन फानन में नुपुर शर्मा को निलंबित कर दिया। यही नहीं, नुपुर का समर्थन करनेवाले दिल्ली के नेता नवीन जिंदल को भी पार्टी से बाहर कर दिया।

ये हैं कुछ उदाहरण
अब बात निकली तो, बताते चलें कि, भाजपा ने प्रज्ञा सिंह ठाकुर से भी पल्ला झाड़ लिया था। दस वर्ष पहले तत्कालीन भाजपा प्रवक्ता ने साध्वी प्रज्ञा से भाजपा के संबंध को नकार दिया था। जबकि, वर्तमान समय में भोपाल से भाजपा की सांसद हैं, साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर। यही नहीं, पार्टी तत्कालीन महासचिव राम माधव द्वारा अखंड भारत की बात करने पर भी पीछे हटी थी। राम ने तो मात्र यही कहा था कि, भविष्य में भारत पाकिस्तान और बांग्लादेश एक होकर अखंड भारत का निर्माण करेंगे। इसे विपक्ष ने आड़े हाथों ले लिया। कांग्रेस और माकपा ने तीखी टिप्पणियां की तो भाजपा ने इसे राम माधव के निजी विचार बता दिये। सांसत में अंटके राम माधव ने अपने बयान पर क्षमा मांग ली। आखिर, जिस पार्टी, जिस संगठन के लिए निजी जीवन त्यागकर प्रचारक का चोला धारण किया था, जब वही साथ न हो तो क्या किया जा सकता है।

साथ खड़े रहने की जरुरत
एक राष्ट्रीय पार्टी जिसकी अंतरराष्ट्रीय पहचान है, उसकी ओर से पल्ला झाड़ने की यह क्रिया निश्चित ही मन को खटकती है। आखिर खटके भी क्यों न? जनमत जब अंगद के पांव की तरह जमे रहने के लिए मिला हो तो अपनों के साथ खड़े रहना भी चाहिए, अन्यथा लोगों को लगेगा जो अपने का नहीं वह हमारा क्या होगा?

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