भूल गए साइक्लॉन शेल्टर! …वर्ना नैसर्गिक आपदा में लोगों को भटकना न पड़ता

महाराष्ट्र में आई नैसर्गिक आपदा के बाद राजनीति एक से एक बोल बक रही है, परंतु इन आपदाओं से राहत के लिए जो कार्य किये जाने थे उन पर क्यों कार्य नहीं हुआ इसका संज्ञान लेने का समय किसी के पास नहीं है। सूत्रों के अनुसार राज्य के सहायता व पुनर्वसन मंत्री को तो साइक्लॉन शेल्टर जैसी योजना की भनक तक नहीं है।

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महाराष्ट्र में बारिश और बांधों से छोड़े गए अथाह जल ने तबाही ला दी है। कई क्षेत्र जलमग्न हो गए, सवा सौ से अधिक लोगों की जान गई और करोड़ो की संपत्ति बर्बाद हो गई है। इसके पहले समुद्री तूफानों ने बर्बादी की थी। इसे देखते हुए समुद्री किनारे के राज्यों में साइक्लॉन शेल्टर बनाने की योजना छह वर्ष पहले बनाई गई थी। परंतु, महाराष्ट्र ने इतने वर्षों में एक भी साइक्लॉन सेल्टर होम नहीं खड़ा किया। अब जब चहुओर आंसू और दुखों का स्यापा है तो सरकार आश्वासन और राजनीतिक स्टंटबाजी कर रही है।

बर्बाद, लाचार हैं रायगड, सांगली, कोल्हापुर और कोकण के निवासी। यदि साइक्लॉन शेल्टर होम होते तो जलप्लावन में घरों से निकले लोग मारे-मारे घूमने को मजबूर न होते। इसके पहले ताउते चक्रवात और उसके पहले निसर्ग चक्रवात ने बर्बादी की आंधी और तूफान से लोगों को उजाड़ा था। परंतु, राज्य सरकार वर्षों से जानकर भी अंजान हैं। जिन योजनाओं गोवा, केरल, पश्चिम बंगाल और गुजरात जैसे राज्यों ने कदम उठाकर साइक्लॉन शेल्टर होम बना लिये उस पर उन्नत राज्य महाराष्ट्र ने कोई कदम ही नहीं उठाया।

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यह थी योजना
केंद्र सरकार ने नेशनल साइक्लॉन रिस्क मिटिगेशन प्रोजेक्ट (एनसीआरएमपी) शुरू किया है। इसके अंतर्गत आपत्ति काल में प्रभावित लोगों को पर्यायी घर उपलब्ध कराने की योजना थी। महाराष्ट्र के समुद्री किनारे के क्षेत्र में इस योजना के अंतर्गत 11 साइक्लॉन शेल्टर निर्माण की योजना थी। यह योजना 2015 में बनीं थी, जिसके लिए केंद्र और राज्य सरकार को मिलकर खर्च करना है। विश्व बैंक इस योजना के लिए ऋण देने को भी तैयार है, परंतु महाराष्ट्र वह भी नहीं ले पाया।
इस परियोजना के दूसरे चरण के अंतर्गत महाराष्ट्र, गोवा, गुजरात, कर्नाटक, केरल और पश्चिम बंगाल का समावेश है। जिसके लिए कुल 2059.83 करोड़ रुपए की निधि निर्धारित की गई थी। इसमें से 1,029 करोड़ रुपए केंद्र सरकार और 430.76 करोड़ रुपए राज्य सरकार को खर्च करना था। इस कार्य को मार्च 2021 को पूरा होना था, परंतु यह हो नहीं पाया और अब इसकी कालावधि को बढ़ाकर 2022 तक कर दिया गया है।

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महाराष्ट्र में क्या होना था कार्य?
महाराष्ट्र के पश्चिमी छोर पर 720 किलोमीटर का समुद्री किनारा है इसलिए यहां चक्रवात और अतिवृष्टि के कारण बाढ़ का खतरा भी बड़ा है। इस परिस्थिति को देखते हुए कई कार्य किये जाने थे जिससे लोगों को संकट के समय राहत मिल सके।

बहु-उद्देशीय आश्रय – राज्य में नैसर्गिक आपत्ति के समय लोगों को सुरक्षित आश्रय स्थल उपलब्ध कराने के लिए बहु-उद्देशीय आश्रय स्थल बनाने की योजना थी। इनका उपयोग स्कूल, कॉलेज, सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए भी किया जाना था। राज्य में 11 आश्रय स्थल (साइक्लॉन शेल्टर) बनाए जाने थे। इसकी जानकारी एनसीआरएमपी की वेबसाइट पर भी उपलब्ध है, परंतु 2015 से अब तक किसी सरकार ने इस योजना को मूर्तरूप देने का प्रयत्न नहीं किया।

संरक्षक तट – समुद्र में ज्वार के समय पानी किनारे के बहुत अंदर तक आ जाता है। इसके लिए महाराष्ट्र में 22.26 किलोमीटर की संरक्षक दीवार का निर्माण किया जाना है। जिसका कार्य शुरू किया गया है।

भूमिगत केबलिंग – चक्रवात के समय बिजली के खंभों का बड़ा नुकसान होता है। इसलिए समुद्री किनारे के 471 किलोमीटर क्षेत्र में भूमिगत केबलिंग की जाने की योजना है। इसमें 144 किलोमीटर तक भूमिगत केबलिंग का कार्य पूरा हो गया है जबकि 327 किलोमीटर का कार्य अभी किया जाना है।

जिम्मेदारी किसकी?
इस परियोजना की जिम्मेदारी राज्य आपत्ति व्यवस्थापन विभाग के पास है। राज्य के सहायता व पुनर्वसन मंत्री विजय वडेट्टीवार के पास यह जिम्मेदारी है। मंत्रालय में इस कार्य की देखरेख के लिए अधिकारियों की नियुक्तियां भी की गई हैं। परंतु, कुछ कार्य अब तक आधे से अधिक अपूर्ण हैं तो साइक्लॉन शेल्टर जैसी परियोजना अभी तक शुरू भी नहीं हो पाई है।

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