राज्य सरकार ने पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान विपक्षी नेता देवेंद्र फडणवीस की महत्वाकांक्षी जलयुक्त तालाब योजना की जांच करने का फैसला किया था। फिलहाल जांच रिपोर्ट अब राज्य सरकार को सौंप दी गई है। यह रिपोर्ट लगभग 70 पन्नों की है। जिनमें ज्यादा अनियमितता और भ्रष्टाचार के संदेह हैं, उनकी जांच भ्रष्टाचार विरोधी ब्यूरो से कराई जाएगी।
भ्रष्टाचार की शिकायतें
बता दें कि कुछ माह पहले ठाकरे सरकार ने प्रदेश की जलयुक्त तालाब योजना की जांच के लिए सेवानिवृत्त अतिरिक्त मुख्य सचिव विजय कुमार की अध्यक्षता में चार सदस्यीय समिति नियुक्त की थी। कमेटी ने अब अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंप दी है। तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के दौरान, जलयुक्त तालाब योजना बहुत लोकप्रिय हुई थी। हालांकि, इस योजना में सोलापुर सहित राज्य की कई जगहों पर बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार की शिकायतें मिली थीं।
गठित की थी जांच कमेटी
इस संबंध में राज्य सरकार ने एक जांच कमेटी का गठन किया था। जांच कमेटी के सदस्यों ने मौके का दौरा कर राज्य सरकार को रिपोर्ट सौंप दी है। रिपोर्ट में कमेटी ने जलयुक्त शिवार योजना के एक हजार कार्यों की जांच करने की सिफारिश की है, जिनमें से 900 कार्यों की जांच भ्रष्टाचार विरोधी ब्यूरो के माध्यम से की जाएगी। पता चला है कि शेष 100 कार्यों की विभागीय जांच कराई जाएगी।
कैग ने लगाई थी फटकार
कैग ने इस महत्वाकांक्षी योजना की विफलता के लिए फडणवीस सरकार को जिम्मेदार ठहराया था। कैग ने कहा था कि 9,634 करोड़ रुपये खर्च करने के बावजूद योजना पानी की जरूरतों को पूरा करने और भूजल स्तर बढ़ाने में विफल रही है। इसे फडणवीस के लिए एक बड़ा झटका माना गया था।
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बदनाम करने का प्रयास
ठाकरे सरकार द्वारा इस योजना की जांच कराने के निर्णय पर भारतीय जनता पार्टी ने अपनी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। पार्टी विधायक आशीष शेलार ने कहा है कि यह देवेंद्र फडणवीस की महत्वाकांक्षी योजना को बदनाम करने की साजिश है। ठाकरे सरकार ने इस योजना को बंद करके प्रदेश के दूर-दराज में काम करने वाले मजदूरों के पेट पर लात मारने का काम किया है।
स्थानीय अधिकारियों को सौंपी गई थी जिम्मेदारी
शेलार ने कहा कि मूल रूप से जलयुक्त तालाब योजना जिला परिषद, कृषि विभाग, जल संरक्षण विभाग, लघु सिंचाई, वन विभाग जैसे 7 विभिन्न विभागों के माध्यम से लागू की गई थी। इन विभागों के स्थानीय अधिकारियों को जिला कलेक्टर के अधीन कार्य करने का अधिकार दिया गया था। इसकी मुख्य जिम्मेदारी कलेक्टर की थी यानी निर्णय लेने का अधिकार स्थानीय अधिकारियों के पास था। उन्होंने कहा कि जहां-जहां योजनाओं में भ्रष्टाचार की जानकारी मिली थी, उनकी जांच के आदेश देवेंद्र फडणवीस ने दिए थे।